"हम दूसरों के पाप और अपराध गिनाकर, अपने पाप और अपराध को सही नहीं ठहरा सकते": शहंशाह हैदर आब्दी; बलात्कार व हत्या की घटनाओं को संप्रदायिकता का रंग देने का बढता मिजाज | New India Times

लेखक: सैय्यद शहंशाह हैदर आब्दी

Edited by Arshad Aabdi, झांसी, NIT​"हम दूसरों के पाप और अपराध गिनाकर, अपने पाप और अपराध को सही नहीं ठहरा सकते": शहंशाह हैदर आब्दी; बलात्कार व हत्या की घटनाओं को संप्रदायिकता का रंग देने का बढता मिजाज | New India Times

हम आसिफा के लिए इंसाफ नहीं मागेंगे?
हमने निर्भया के लिऐ भी इंसाफ नहीं मांगा था। जी क्योंकि आपने निर्भया को हिन्दु और बलात्कारियों को हिन्दू मुसलमान बना दिया था।
आपने बलात्कारी में हिंदू मुसलमान देखा और हमने उनमें शैतान देखा।
हमने निर्भया, आसिफा और इन जैसी हर लड़की में अपने घर की परी देखी और आपने उनमें हिन्दू मुसलमान देखा।​"हम दूसरों के पाप और अपराध गिनाकर, अपने पाप और अपराध को सही नहीं ठहरा सकते": शहंशाह हैदर आब्दी; बलात्कार व हत्या की घटनाओं को संप्रदायिकता का रंग देने का बढता मिजाज | New India Times
कठुआ में पीड़ित बच्ची मुस्लिम और बलात्कारी हिन्दू। सासाराम में बच्ची हिन्दू और बलात्कारी मुस्लिम। 
कल तक मज़लूमों के समर्थन में रैली निकलती थीं, धरना प्रदर्शन होते थे। आज ज़ालिमों, हत्यारों और बलात्कारियों के समर्थन में रैलियां निकल रही हैं। 
कितना बदल गया हिन्दुस्तान? हमने तो ऐसी कल्पना भी नहीं की थी। किसने हमारे बीच धर्म और जाति की लकीर खींच दी और कब खींच दी? 
हमारी ख़ुली चुनौती है, याद रखिए, कोई आंदोलन, कोई संगठन कितना भी ताक़तवर क्यों न बन जाये, किसी समाज को न तो समाप्त कर सकता है और न ही देश से निकाल सकता है।
हम सब साथ रहते आये हैं और आगे भी रहना है। अब यह हम पर निर्भर है कि हंसी ख़ुशी मिलकर रहें या लड़ झगड़ कर रहें। एक दूसरे पर उन दोषों के लिऐ दोषारोपण कर रहें जिनके लिए हम दोनों ही ज़िम्मेदार नहीं।​"हम दूसरों के पाप और अपराध गिनाकर, अपने पाप और अपराध को सही नहीं ठहरा सकते": शहंशाह हैदर आब्दी; बलात्कार व हत्या की घटनाओं को संप्रदायिकता का रंग देने का बढता मिजाज | New India Times
यह भी शाश्वत सत्य है कि,” धर्म का जब जब इस्तेमाल सत्ता हासिल करने या सत्ता को मज़बूत करने के लिए हुआ। इंसानियत ख़ून के आंसू रोई है।”
हमें सिर्फ निर्भया या आसिफा के लिये इंसाफ नहीं चाहिए। हमें अपनी हर उस मासूम बच्ची के लिऐ जल्द इंसाफ चाहिए जो ज़ुल्म का शिकार होती है।
हमें हर ज़ालिम के लिए जल्द और सख़्त इंसाफ चाहिए, चाहे वो मुल्ला क़ाज़ी हो या साधु संत।
अब भी वक़्त है, सुधर जाईये । नींद से जागिये। मज़लूम और ज़ालिम को जाति धर्म में ना बांटिए। बिना भेदभाव के मज़लूम को जल्द इंसाफ मिले और ज़ालिम को जल्द सज़ा। हमारा तो यही मानना है। 
जो नेता, जो दल और जो प्रशासनिक मशीनरी भेदभाव करे, उसके विरुद्ध सब मिलकर रैली निकालिए, धरना प्रदर्शन करिए, उसका सशक्त विरोध और बहिष्कार कीजिए।

हम दूसरों के पाप और अपराध गिनाकर, अपने पाप और अपराध को सही नहीं ठहरा सकते।

नहीं मानिये तो भी ठीक क्योंकि मुक़ाबला तो जारी है ही, हमें मुल्क को श्मशान और क़ब्रिस्तान जो बनाना है।
“न सुधरे तो मिट जाओगे, हिन्दुस्तां वालो,
तुम्हारी दास्तां भी न होगी दास्तानों में।”


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By nit

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