मो. तारिक, भोपाल (मप्र), NIT;
वकीलों के रवैये पर सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस लिया है ह कठुआ गैंगरेप मामले में सुप्रीम कोर्ट ने लेटर पेटिशन पर संजीदगी इख़्तियार कर जवाब तालिब किया है। काश यह बहुत पहले भी ऐसा ही आदेश पारित होता तो जहां न्याय मिले उन्हीं मा न्यायालयों के परिसरों में घटित होती रहीं कई घटनाएं जहां आम नागरिकों की पैरवी के लिए अधिकृत कानून विद् मारपीट पर उतारू हो जाते हैं।
ये निजाम के लिए सदमा है, जो कानून के हुक्मरानी के उसूल पर मुबनी है और कानून की नजर में सबको बराबर तहफ़्फ़ुज़ पर यकीन न रखना है !
सुप्रीम कोर्ट ने बार काउंसिल ऑफ इंडिया, जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट बार एसोसिएशन, बार कॉउंसिल ऑफ जम्मू कश्मीर और कठुआ जिला बार एसोसिएशन को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है और साफ कहा कि कानून में ये तय है कि कोई भी वकील या एसोसिएशन किसी भी वकील को केस में मुब्तला या मुलजिम को पेश होने से नहीं रोक सकता। अगर वकील अपने क्लाइंट का केस कबूल करता है तो उसकी जिम्मेदारी है कि वो उसके लिए पेश हो। अगर उसको रोका जाता है तो फिर ये कानूनी अमल में रुकावट और कानून हासिल करने में रुकावट माना जाएगा। 46 वकीलों के ग्रुप ने कोर्ट में लेने के लिए अर्जी दाखिल की की थी। अर्जी में मीडिया रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा गया कि 8 साल की बच्ची के रेप और कत्ल के मामले में जिस तरह से बार एसोसिएशन के कई वकीलों ने मुज़ाहिरा किया और क्राइम ब्रांच को चार्ज शीट दाखिल करने से रोका और बाद में जम्मू कश्मीर बार एसोसिएशन के मेम्बर ने स्पोर्ट किया और मुतासरीन के खानदान के साथ साथ उनके वकील को मुलजिमों ने धमकाया।
आसिफा की मरने तक की सच्चाई बिना खाए पिए 8 साल की आसिफ़ा, कई बार अधेड़ मानवखोरों के रेप करने के बाद मरने को तैयार ही थी कि एक फ़ोन आता है, फ़ोन से आवाज़ आती है, “अभी मरने नहीं देना, हम भी करेंगे उसके साथ सेक्स, मरते दम तक सेक्स करना है हमें, मारने के पहले अंतिम बार हम करेंगे बालत्कार”
फ़ोन जाँच अधिकारी यानी पुलिसवाले का होता है। 8 दिन की भूखी मरणासन्न को मुँह पर पानी छिड़ककर होश में लाया जाता है, उसे भूखे पेट अचेत लड़की को नशे और सेक्सवर्धक दवा खिलाया जाता है। और फिर टूट पड़ते है दरिंदे उस लड़की पर, फिर से बलात्कार किया जाता है उस मासूम का, तबतक किया जाता जब तक उसके अंग छतिग्रस्त नहीं हो जाते। आसिफा की अंतिम साँस रुकने का इंतज़ार किया जाता है, फिर भी नहीं दिल भरता तो पत्थर से सर पर मारकर आसिफ़ा को इस जहन्नुम से विदा किया जाता है। वो मासूम बिटिया विदा हो जाती इन हैवानो की दुनिया से अपने दुनिया में।
ये निजाम के लिए सदमा है, जो कानून के हुक्मरानी के उसूल पर मुबनी है और कानून की नजर में सबको बराबर तहफ़्फ़ुज़ पर यकीन न रखना है। इस अर्जी में जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट बार एसोसिएशन, बार कॉउंसिल ऑफ जम्मू कश्मीर और डीजीपी को नोटिस जारी कर डिटेल रिपोर्ट देने को कहा जाए। जम्मू कश्मीर बार एसोसिएशन को हुक्म दिया जाए कि सियासी फायदे के लिए कानून को हाथ में न ले और कानून में रूकावट न पहुंचाया जाए। जम्मू कश्मीर हकूमत को इस बाबत रिपोर्ट देने को कहा जाए। खानदान के तरफ से पेश होने वाले वकील को पूरी सिक्योरिटी दी जाए और उन्हें भी डिटेल रिपोर्ट देने को कहा जाए।
“मेरा भारत” और मानवता के रखवाले देश के प्रत्येक राज्य में शांती, विकास और रोज़गार के लिए निरंतर प्रयासरत रहते हैं और सामाजिक क्रूतिया किस समुदाय व किन धर्मानुयाईयों में नही होती। बड़ी और अच्छी बात तो उस समुदाय की वो आवाज़ लगाकर घटित हों रही घटनाओ-कुकर्मों का एक स्वर में विरोध दर्ज कराते और ज़रूरत पड़ने पर सहायता प्रदान करते रहते हैं। हिंदू, मुस्लिम, सिख या ईसाइ हम सब तो हैं एक मां के ही लाल ! यह तेरा देश नही मेरा भी देश हैं !”
“अब तो फिर वैचारिक द्वंद हैं !”
मो. तारिक़(स्वतंत्र लेखक)
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