वी.के. त्रिवेदी, लखीमपुर खीरी (यूपी), NIT;
भाजपा एक तरफ अपनी ईमानदारी और चरित्र के नाम पर राजनीति कर रही है, वहीं उसके ही कुछ साथी उसके चरित्र को दागदार और ईमानदारी पर प्रश्न चिन्ह लगाने में जुटे हैं। राजनीति में विधायक सांसद होने का मतलब संविधान से ऊपर होना नहीं होता है और विधायक सांसद जैसे जनप्रतिनिधि जनता के सेवक होते हैं। जनप्रतिनिधि होने का मतलब यह नहीं है कि कानून उसके इशारे पर चलकर न्याय का गला घोट दे। अभी दो दिन पहले उन्नाव जिले की रहने वाली एक किशोरी के पिता ने जब अपने और अपनी लाडली बिटिया के साथ हुई कथित जुल्म ज्यादती और पुलिस की भूमिका को लेकर रविवार को मुख्यमंत्री आवास के सामने आत्मदाह करने की कोशिश की और उसके बाद गंभीर रूप से घायल पिता को जेल भेज दिया गया। जेल में बेगुनाह न्याय की बलिवेदी पर संदिग्ध परिस्थितियों में उसकी मौत हो गयी और किशोरी अनाथ अबला बदहवास हो गयी। किशोरी ने अपने जिले के भाजपा विधायक कुलदीप सेंगर पर अरसा एक साल पहले दुष्कर्म करने का आरोप लगाते हुए अदालत में एक वाद दायर किया था। उसका कहना है कि इस दुष्कर्म के वाद को वापस लेने के लिए विधायक के भाई और उनके साथियों ने घर में घुसकर बंदूक की बटों से पीट पीटकर लहूलुहान एवं घायल कर दिया था। किशोरी का कहना है कि न्याय न मिलने पर जब आत्मदाह करने लखनऊ आये तो पुलिस ने विधायक के दबाव में उल्टे उसके पिता के खिलाफ मुकदमा दर्ज करके उन्हें जेल में बंद कर दिया था। रविवार को इलाज के दौरान उसके पिता की जेल में ही विधायक ने हत्या करवा दी है। किशोरी के पिता की मौत के बाद पुलिस न्याय प्रिय बन गयी है और शासन प्रशासन सक्रिय हो गया है। परम्परा के अनुरुप मामला तूल पकड़ते ही थाने के बड़े दरोगा समेत छः पुलिस कर्मियों को निलंबित कर दिया गया है। इतना ही नहीं घटना में नामजद विधायक के भाई समेत चार आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया है। पिता की मौत होने के बाद तत्काल बाद मुख्यमंत्री ने कड़ा रुख अपनाते हुए पूरे प्रकरण की रिपोर्ट और पल पल की स्थितियों की जानकारी देने के आदेश जिलाधिकारी को दिये हैं और सोमवार को राजधानी में उन्हें तलब कर लिया है। तीन बिंदुओं पर मजिस्ट्रेटी जांच के लिये एक एसडीएम को तैनात कर दिया गया है। यहां पर सवाल दुष्कर्म के वाद या मजिस्ट्रेटी जांच का नहीं है बल्कि सवाल इस बात का है कि न्याय मांगने के कारण जानलेवा हमला करने और गंभीर रूप से घायल को जेल भेजने और जेल में इलाज के दौरान हुई संदिग्ध परिस्थितियों में मौत का है। सवाल हमारी मित्र पुलिस की कार्यशैली का है कि इतनी बड़ी दुसाहसिक घटना के बाद अपने कर्तव्यों से विमुख होने का है। यह भी हो सकता है कि विधायक बेगुनाह हो और रंजिशन उन पर दुष्कर्म करने के आरोप लगाये जा रहे हों और बेगुनाह उनके खिलाफ न्यायालय पर वाद कर दिया हो लेकिन इसका मतलब तो यह नहीं हुआ कि सजा के रुप में उसे पीट पीटकर मरणासन्न बनाकर जेल में ठूंस दिया जाये। हो सकता है कि जेल में उसकी हत्या न की गई हो और उसकी मौत जानलेवा पिटाई से घायल होने की वजह से हो गयी हो लेकिन सवाल यह है कि क्या किशोरी को उसकी इज्जत और बाप का साया वापस मिल सकता है? कुछ भी हो इस घटना ने एक बार फिर भाजपा और मुख्यमंत्री को कटघरे में खड़ा कर कार्यशैली पर सवालिया निशान लगा दिया है। जबकि प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री महिलाओं की सुरक्षा की बात करते हैं और उन्हीं के अपने उनकी सभी बातों की अनदेखी कर नगा नाच ,नाच रहे है। क्या यही सुरक्षा व्यवस्था है?
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