कहां गया भ्रष्टाचार, साम्प्रदायिकता और आतंकवाद से लड़ने का जज़्बा? कैसे हो सबका साथ सबका विकास ? | New India Times

अरशद आब्दी/राहुल कोष्टा, झांसी (यूपी), NIT;

कहां गया भ्रष्टाचार, साम्प्रदायिकता और आतंकवाद से लड़ने का जज़्बा? कैसे हो सबका साथ सबका विकास ? | New India Times

वर्तमान सरकार के सत्ता में आने की मुख्य वजह भ्रष्टाचार, बेरोज़गारी, साम्प्रदायिकता और आतंकवाद के विरुध्द सख्त कार्यवाही का वादा और “सबका साथ –सबका विकास” जैसा मनमोहक नारा था। बड़े बड़े वादे किये गए थे, त्वरित कार्यवाही का आश्वासन दिया गया था। तक़रीबन चार साल गुज़रने के बाद क्या यह संभव हो सका ?

देश को उसकी मुख्य समस्याओं से भटका दिया गया। वक़्त का तक़ाज़ा – साम्प्रदायिक नफरत नहीं, साम्प्रदायिक सौहार्द है। आज हिन्दू-मुस्लिम से ज़्यादा देश के नौजवानों को रोज़गार की ज़रूरत है। मीडिया का बड़ा बिकाऊ और कोर्पोरेट हाउसेस की मदद से चलने वाला एक वर्ग यह समझने और अपनी सही ज़िम्मेदारी उठाने को तैय्यार क्यों नहीं?

बहरहाल, मुल्क में हिन्दू-मुसलमान, तीन तलाक़ और गौरक्षा को लेकर चल रही ज़बरदस्त बहसों के बीच, पठानकोट में आर्मी बेस पर हमले में मदद के लिए एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी को आरोपित किया गया, एयरफोर्स के ग्रुप कैप्टन अरुण मारवाह को दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने गिरफ्तार किया । उन्हें और उन जैसे कई अधिकारियों और एक तथाकथित राष्ट्रवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं को पाकिस्तान की ख़ुफिया एजेंसी ISI तक गोपनीय दस्तावेज़ भेजने के जुर्म में गिरफ्तार हैं। कहते हैं कि अपराध का और आतंक का कोई धर्म नहीं होता। इस बार आईएसआई के लिए जासूसी करने के आरोप में हुई गिरफ्तारी से तो यही लगता है कि जैसे आतंकवाद को एक ख़ास धर्म से जोड़ा जाता है, वैसे ही देश के विरुद्ध जासूसी करने वालों का भी एक ख़ास मज़हब है। इतिहास, मुग़लशासन, अंग्रेजों का शासन, भूत और वर्तमान सब पर निष्पक्ष नज़र डालिए तो आप पायेंगे कि एक ख़ास क़िस्म के लोगों ने ही जासूसी कर अपने देश को कमज़ोर किया है। अपराध बोध से ग्रस्त यही वर्ग आज दूसरे मज़हब और जाति के लोंगों के विरूद्ध मनगढ़ंत आधार हीन आरोप लगाकर देश में नफरत का ज़हर बो रहा है और देश को कमज़ोर कर रहा है।

थू है ऐसे बुज़दिल, देशद्रोही और झूठे लोगों पर। जो रहते यहां है, खाते यहां का हैं, अपने को यहां का मूल निवासी होने और इस मुल्क के वारिस होने का दावा करते नहीं थकते और जासूसी करते हैं अपने इसी मुल्क के ख़िलाफ़।

गंभीर बात ये भी है कि अरुण मारवाह ने देश की ख़ुफिया जानकारी और इंडियन एयरफोर्स के अहम दस्तावेज़, ट्रेनिंग की जानकारी और युद्ध तैयारियों से जुड़ी जानकारी आईएसआई को भेजीं है।जांच में यह भी उजागर हुआ है कि अरुण मारवाह ने ”गगन शक्ति” नाम से किए गए कॉम्बैट एक्सरसाइज़ तक से जुड़ी जानकारियां आईएसआई को भेजीं हैं। एयरफोर्स ने मामले की जांच स्पेशल सेल को सौंपी थी जिसके बाद मुक़दमा दर्ज कर अरुण मारवाह को गिरफ्तार कर लिया गया है और दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने मारवाह को पांच दिन की रिमांड पर भेज दिया। उसके बाद राजस्थान से भी एक अफसर की गिरफ्तारी हुई। वहीं मुज़फ्फरनगर से लश्कर ए तैय्यबा के आतंकी अंकित उर्फ दिनेश गर्ग और अदिश जैन की गिरफ्तारी हुई। ये आंख का कीचड़ पोछने का वक़्त है जनाब। मारवाह..अंकित या ध्रुव, आदिश कोई पहले उदाहरण नहीं हैं.. न ही आख़िरी हैं। न मुल्क से मोहबब्त करने वालों का कोई मज़हब है..न ग़द्दारी करने वालों का। इन पर आरोप है कि ये अपने मोबाइल फोन और अन्य उपकरणों से आईएसआई को ख़ुफिया तस्वीरें और दस्तावेज़ भेजते थे। सवाल ये भी पैदा होता है कि क्या इनके अलावा भी कुछ और लोग आईएसआई के लिए काम तो नहीं कर रहे हैं? इसलिए ये भी जांच का विषय है कि यह लोग देश के ख़ुफिया जानकारी के एवज़ क्या फायदा उठाते हैं ?

रात दिन अपने घरों, दफ्तरों और दलालों के माध्यम से रिश्वत मांगते और खींसे निपोरते लोग शाम होते होते टीवी की बहसों में देश भक्त बन जाते हैं। इनकम टैक्स रिटर्न के हर कॉलम में झूठ भरने वाले बस “वंदे मातरम” का “लाई डिटेक्टर टेस्ट” पास कर सच्चे हो जाते हैं। ज़िंदगी की हर डील में ईमान बेचने वाले मुफ्त में “भारतमाता की जय” के नाम का बुलेटप्रूफ खरीदकर अजेय हो जाते हैं..आखिर क्यों?

क्या ईमान के खून की जाँच बस पाकिस्तान और मुसलमान की मुख़ालफ़त और इन दोनों को आपस में जोड़कर इनके ख़िलाफ़ ज़हर उगल कर पूरी हो जाती है? यह छद्म राष्ट्रवादी देश को और ख़ासकर नौजवानों को गुमराह कर अपनी सत्ता मज़बूत करने के लिए समाज को बांट कर रखना नहीं चाहते हैं? भले ही देश कमज़ोर हो जाये।

यक़ीनन, ये वक़्त थोड़ा रुकने का है.. थोड़ा सोचने का है..इंसान भी दोनों तरफ हैं,हैवान भी दोनों तरफ हैं । आम अवाम को मोहरा बनाकर सियासत की बिरयानी, काजू के आटे की रोटी और शाही पनीर खाकर, डकार लेने वाले भी दोनों तरफ हैं।

जब सुप्रीम कोर्ट के जज ही सुप्रीम कोर्ट की कार्य प्रणाली पर सवाल उठाने लगे तो सोचो देश कहाँ जा रहा है ? भारतीय जनता पार्टी को सत्ता सभाले कुछ ही दिन हुए थे तब देश के विद्वानो ने, प्रबुध्द वर्ग ने इनके कार्य करने की पध्दति पर प्रश्न चिन्ह लगाए थे, तब सत्ता धारी सरकार ने उन्हें ना जाने क्या क्या कहकर अपमानित किया और यह वर्ग ख़ामोश हो गया अब सत्ता धारी स्वतन्त्र और कुछ भी करने को आज़ाद हो गये । कुछ सेलिब्रेटरी ने सरकार के काम करने के ढंग पर सवाल उठाये तो जनता के सामने उन्हें खलनायक बना दिया गया। किसी विपक्षी नेता ने अपनी आवाज़ बुलंद करने की कोशिश की तो उन्हें जेल में डाल दिया गया। सत्ताधारी पार्टी के सदस्य कुछ
ख़िलाफ बोले तो उनका क़द नगण्य कर दिया गया।

हद तो जब हो गयी जब सुप्रीम कोर्ट के चार जज वर्तमान व्यवस्था से अपने को असहज मान रहे थे उन्होंने अपनी इस व्यथा को मिडिया के माध्यम से जनता के सामने रखा तो सत्ता धारी इन चारों जजों को ही गलत ठहराने में लग गये।
सुप्रीम कोर्ट में जो कुछ हुआ है वह उसके न्यायमूर्तियों द्वारा किये जाने के कारण चौंकाने वाला ज़रूर है, पर पिछले कुछ समय से जागरूक जनमानस यह आभास कर रहा है कि न्यायपालिका के शिखर पर सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। 2जी स्पेक्ट्रम तथा मध्य प्रदेश के व्यापम मामले में राजनेताओं की मुक्ति । इसमें संदेह नहीं कि लालू जी को सज़ा मिलनी चाहिए थी परन्तु उसकी टाइमिंग? तमिलनाडु के चुनावों के पूर्व 2जी स्पेक्ट्रम के फ़ैसले के पूर्व आरोपी परिवार की प्रधानमंत्री से भेंट। आरक्षित सीटों के संबंध में हाल ही का फैसला। हाल ही में सम्पन्न चुनावों के पूर्व धारा 370 व राम मंदिर के संबंध में सुप्रीम कोर्ट द्वारा अचानक चिंता व्यक्त कर सरकार समर्थकों को राजनीतिक लाभ का अवसर और फिर अंतहीन चुप्पी, आदि आदि।

कहां गया भ्रष्टाचार, साम्प्रदायिकता और आतंकवाद से लड़ने का जज़्बा? कैसे हो सबका साथ सबका विकास ? | New India Times

सोशल मीडिया पर ऐसे कई फैसलों के संबंध में अपनी राजनीतिक प्रतिबद्धता अनुसार धुरंधर टिप्पणी बाज़ खुलकर एक पक्षीय टिप्पणियाँ करते रहे हैं । अर्थात सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों में कहीं न कहीं विवाद की गुंजाइश रही है। लगता है कि न्यायपालिका भी राजनीति के लपेटे में आती जा रही हो। कहीं कहीं ऐसा आभास सा होने लगा है कि सीबीआई की तरह सुप्रीम न्याय दाता भी पिंजरे के तोते तो नहीं बनते जा रहे हैं? जनता का कोई व्यक्ति अवमानना के डर से अपनी शंका व्यक्त नहीं कर सकता। इसको जनता की ग़ैर समझदारी समझना भी जनता के विश्वास की अवमानना है।

जिस भारत का सपना राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने आज़ादी से पहले देखा था उस सपने को हमारे नीति निर्माताओं ने भारी-भरकम फाइलों के नीचे दबा दिया। आज देश में भ्रष्टाचार हर जगह सर चढ़कर बोल रहा है। एक तरफ जहां हज़ारों करोड़ रुपयों से ज़्यादा के घोटाले हो रहे हैं तो दूसरी तरफ घोटाले करने वाले दाग़ियों को बचाने के लिए क़ानूनी दांव पेंच खेले जा रहे हैं। एक के बाद एक गवाहों की हत्याऐं हो रही हैं। हरेन पंडया से लेकर जस्टिस लोया और उनके दो साथियों की संदिग्ध मौत और मौत का समय गंभीर संदेह पैदा कर रहे हैं। लेकिन भ्रष्टाचार समाप्ति का दावा कर सत्ता प्राप्त करने वाले सत्ताधीशों के कानों पर जूं तक नहीं रेंग रही। काले धन को शेख चिल्ली का ख़्वाब बना दिया गया है। नोटबंदी को आतंकवाद की कमर तोड़ने का दावा भी हवा हवाई साबित हुआ है। आतंकी घटनाएं बढ़ी हैं। सुरक्षा कर्मी शहीद हो रहे हैं। उनकी शहादत को भी आतंकवाद पर कार्यवाही बताकर श्रेय लेने की होड़ मची है।

आज़ादी के दौरान जिस व्यवस्था को संविधान के नीति निर्माताओं ने बनाया था। उसमें आज दोष ही दोष दिखाई दे रहा है, देश में अराजकता, दंगे, भ्रष्टाचार, कन्या भ्रूण हत्या, घरेलू हिंसा, बलात्कार, शारीरिक शोषण और दहेज जैसी समस्याएं अभी बरक़रार हैं जो बताती हैं कि व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गई है। कुछ धार्मिक स्थलों से आधुनिक हथियार निकलना , धर्म गुरूओं का व्याभिचारी और बलात्कारी साबित होना और इसके बाद इनके समर्थकों द्वारा क़ानून व्यवस्था की स्थिति बिगाड़ देना और फिर उनके राजनीतिज्ञों और सत्ताधीशों से सम्बन्ध, क्या देश के लोक तंत्र के लिए अच्छे संकेत हैं?

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने राजनीति को सेवा का माध्यम बनाया था,आज दंगों, अपराधों, हथियारों और बारूद के अनाधिकृत प्रयोग के मास्टर माइंड राजनीति में अहम भूमिका में हैं। महात्मा गांधी ने जिस स्वस्थ समाज की कल्पना की थी वहां हिंसा, घृणा, भ्रष्टाचार, असहिष्णुता ने जगह बना ली है। आज देश में राजनीतिक फायदे के लिए मानवता का लहू बहाया जा रहा है। कोरेगांव और कासगंज दंगे इसका सटीक उदाहरण हैं। वर्तमान में राजनीति अपराध का अड्डा बन चुकी है जिसकी वजह से लोगों का राजनीति और राजनेताओं पर से भरोसा उठ चुका है।

महात्मा गांधी ने सच को भगवान कहा था आज जो जितना बड़ा झूठा वो उतना बड़ा नेता है। धर्म निरपेक्ष राष्ट्र की साफ घोषणा करने वाले संविधान के अनुसार शपथ लेकर सत्ता संभालने वाले ही धर्म निरपेक्षता का मज़ाक़ उड़ा रहे हैं।

एक ओर संविधानानुसार अनुसूचित जाति – जन जाति और पिछड़ों को आरक्षण की सुविधा, दूसरी ओर विभागों में उनके रिक्त स्थान, बैकलोग ही नहीं भरे जा सके। एक ख़ास वर्ग का हर जगह, हर विभाग में कब्ज़ा।
एक ओर मुसलमानों के तुष्टिकरण का हल्ला,दूसरी ओर मुसलमानों की हालत दलितों से बदतर। अब यह तुष्टिकरण है या शोषण? कोई सुनने को तैयार नहीं। देश और समाज के सर्वागीण विकास के लिए इन विरोधाभासों का दूर होना नितांत आवश्यक है।

भ्रष्टाचार हर स्तर पर न सिर्फ मौजूद है बल्कि बढ़ा है। कहां ऊपरी आमदनी कम हुई है कोई तो बताये ? भ्रष्टाचार ख़त्म करने का दावा करने वाली वर्तमान प्रदेश और केन्द्र सरकार ने क्या किया है ?

कुछ उदाहरण देखिए – पहले झांसी रेलवे स्टेशन पर जी.आर.पी. पुलिस वाला 24 घंटे में दोबार हर आटो और आपे वाले से 02 रुपये लेता था, 2014 में यह रक़म 05 रुपये हुई। अब पिछले 06 महीने से यह रक़म 10 रुपये हो गई। झांसी शहर में ही हज़ारों आटोऔर आपे हैं। 20 रुपये प्रति आटो के हिसाब से यह रक़म क्यों ली जाती है? कितनी होती है और कहाँ जाती है। पता कीजिए?
पहले सिम, मोबाइल फोन और आई कार्ड आदि खोने की पर रिपोर्ट लिखाने के लिये थाने में 50 रूपये देने पड़ते थे, अब दीवान जी एफिडेविड के नाम पर 150 लेते हैं। 50 रुपये सिपाही के अलग।

पहले पासपोर्ट बनवाने के लिये सत्यापन करने एक एजेंसी का प्रतिनिधि आता था, जिसको चाय पानी और पेट्रोल का पैसा देना पड़ता था। अब यह तीन एजेंसियों के प्रतिनिधियों को दोगना से तीन गुना, जैसा मामला पट जाये, देना पड़ता है।
पहले रेल्वे टिकट कलेक्टर को 100 रुपये तक ही देने पर ट्रेन में बर्थ मिल जाया करती थी , इसे रोकने के रेल्वे के तमाम प्रावधानों के बाद अब पांच सौ रुपये तक देने पड़ते हैं। वो भी इस तर्क के साथ के भाई हम तत्काल का ही तो चार्ज ले रहे हैं। अन्य पब्लिक डीलींग वाले विभागों में भी यही हाल है।

राजनीति का आलम यह हो गया है कि पहले राजनीतिज्ञों ने अपराधियों को शरण दी और अपनी राजनीति को परवान चढ़ाया। बाद में अपराधी भी राजनीतिज्ञ बन गए। राजनीतिक दल लाख अपराध विहीन राजनीति का दावा करें, लेकिन यह जुमले बाज़ी के सिवा कुछ नहीं । राजनीति के हम्माम में सब नंगे हैं।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने राष्ट्रहितैषी उद्योगपतियों के धन का उपयोग आम समाज और देश का भला करने में ख़र्च किया था, आज देश और आम आदमी की संपदा कोड़ियों के दाम उद्योगपतियों को दी जा रही है। आम आदमी की छोटी-2 सुविधाओं में भी कटौती कर उद्योगपतियों को बड़ी-2 सुविधायें दी जा रही है। उद्योगपतियों के हाथों की कठपुतलियां धर्म और विकास का बुर्क़ा पहन कर आम जनता और विशेष कर नौजवानों को गुमराह कर रही हैं। पहले उद्योगपति सत्ता का सम्मान करते थे। प्रधानमन्त्री के सामने उनको बैठने से पहले दस बार सोंचना पड़ता था। आज चुनिन्दा उद्योगपति और उनके परिवार के सदस्य प्रधानमंत्री से गले मिलने से भी नहीं हिचकिचाते। विदेश मंत्री की जगह चुनिन्दा उद्योगपति प्रधानमंत्री जी के साथ विदेश यात्राएँ कर रहे हैं।

कहां गया भ्रष्टाचार, साम्प्रदायिकता और आतंकवाद से लड़ने का जज़्बा? कैसे हो सबका साथ सबका विकास ? | New India Times

वरिष्ठ पत्रकार भाई शैलेन्द्र तिवारी (भोपाल) की बात से पूर्णतय: सहमत होते हुए उनकी बात को अपने शब्दों में लिख रहा हूँ, इस प्रयत्न के साथ की उसकी मूल भावना से खिलवाड़ न हो,”जिस देश में सत्ता के शीर्ष को कारोबारी तय करते हों,वहां पर इस बात के लिए हल्ला मचाया जा रहा है कि देश को चुना लगाकर ललित मोदी, विजय माल्या, नीरव मोदी, ऐमी मोदी और मेहुल चौकसे जैसे लोग कैसे भाग रहे हैं? जो बैंकें आपका जमा पैसा आपको वापस करने के नाम पर सौ नियम क़ायदे थोप देती हैं, वो इन कारोबारियों को कैसे हज़ारों करोड़ क़र्ज़ के तौर पर दे देती हैं? तो आप जान लीजिए…और मन में साफ कर लीजिए कि हम उस देश में जी रहे हैं जहां नेता और कारोबारी देश की सत्ता के हिस्सेदार हैं। कारोबार में नेता साझीदार हैं और सत्ता में कारोबारियों का हिस्सा है।

अब जब यह कारोबारी खेल कर भाग रहे हैं तो सवाल यह नहीं है कि सरकार क्या कर रही है, बल्कि यहां सवाल यह है कि क्या वाकई में हमारे देश का कारोबारी सिर्फ चूना लगाकर ही बड़ा बनना चाहता है? क्या इस देश में कारोबार करने वालों को खुद सरकार चोरी करने के रास्ते सुझाती है? या साफ शब्दों में कहें कि नेता, अफसर और कारोबारियों का एक पूरा गठजोड़ बन गया है जो सत्ता के साथ रहकर देश को चूना लगाने में परहेज़ नहीं करता है। उसको मालूम है कि उसको साफ रास्ता वही सत्ता उपलब्ध कराएगी, जिसके ज़िम्मे उसे सलाखों के पीछे भेजने का ज़िम्मा आएगा। सत्ता में पक्ष और विपक्ष दो पहलू ज़रूर हैं, लेकिन कारोबारियों के लिए दोनों ही एक हैं। क्योंकि दोनों ही कारोबारियों की मलाई को लूट रहे हैं। अभी पांच नाम आ रहे हैं, आने वाले वक्त में और भी नाम आएंगे। इस देश में कारोबार करने के लिए सत्ता का रसूख चाहिए, आप किस पार्टी के साथ जुड़े हैं…यह आपके कारोबार दशा और दिशा तय करता है। अगर अंदाजा नहीं है तो जनाब गौतम शांति लाल अडानी साहब को ही देख लीजिये, कुछ साल पहले तक यह साहब कहाँ थे और आज कहां हैं? जय शाह कहां पहुँच गए? वैसे आपको बता दूं कि गौतम शांति लाल अडानी साहब के लिए हज़ारों करोड़ का एलओयू एसबीआई बैंक ने साइन किया है, जिसका फायदा गौतम शांति लाल अदानी साहब आस्ट्रेलिया में उठा रहे हैं। “मेक इन इंडिया” का नारा और चहेते का कारोबार आस्ट्रेलिया में? यह एलओयू नरेंद्र दामोदर दास मोदी जी की सरकार के आने के बाद हुआ है, इसलिए अगर यह भी कांग्रेस की सरकार में बाहर की गली देखें तो सनद रहे।

कहां गया भ्रष्टाचार, साम्प्रदायिकता और आतंकवाद से लड़ने का जज़्बा? कैसे हो सबका साथ सबका विकास ? | New India Times

सत्ता पाने के लिए पार्टियां पैसों को पानी की तरह बहाती हैं। अब यह पैसा नेताओं के घर से तो आता नहीं है। न ही पार्टियों की ख़ुद की कोई खेती—किसानी या कारोबार है, जिससे उनका ख़र्चा चले। ऐसे में यही कारोबारी ही सोने का अंडा देने वाली मुर्ग़ी होती हैं। एक बात याद रखना कि यह मुर्ग़ी भी समझदार है, जितना लगाती है…उससे कई गुना ज़्यादा मुनाफा वसूलती है। इस मुनाफे के खेल में सरकारों का हिस्सा भी शामिल है। सरकार के हिस्सेदारों का भी हिस्सा इसमें होता है। ये हिस्सेदार अफसर और नेताओं का गठजोड़ होता है। यह एक ऐसा कॉकस होता है, जिसे तोड़ पाना किसी भी सरकार के वश में फिलहाल तो नहीं है। इन्हीं गौतम अडानी की कारोबारी स्पीड को रोकने के लिए कांग्रेसी मुकेश धीरू भाई अंबानी परिवार को नरेंद्र दामोदर दास मोदी की शरण में आना पड़ा।

क्या आपको नहीं मालूम है कि सरकारें कैसे ख़ैरात में अपनी पसंदीदा कंपनियों को ज़मीन बांटती हैं? …कैसे ख़ैरात में ठेके देती हैं?…कैसे इन कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए नीतियां तक बदल दी जाती हैं। तर्क दिया जाता है कि प्रदेश में निवेश का माहौल बनाने के लिए यह सब कुछ ज़रूरी है। अगर कोई आड़े आया तो उसको किनारे लगाने में कहां देर लगती है। अगर भरोसा नहीं तो कभी मध्यप्रदेश सरकार की उद्योग मंत्री रहीं यशोधरा राजे सिंधिया से पूछ लीजिएगा। अंबानी परिवार की कंपनी को बिना किसी वजह के मुनाफा देने का विरोध किया तो मंत्रालय से ही रवाना कर दिया गया। इतना बेइज़्ज़त किया गया कि आज भी नेपथ्य में रहकर राजनीति कर रही हैं। वो तो सिंधिया परिवार से थीं, लेकिन बाक़ियों के बारे में तो पता भी नहीं चल पाता है। हर्षवर्धन साहब को ही देख लीजिये, दवा कारोबारियों ने उन्हें स्वास्थ्य मंत्रालय से एक झटके में ही रुख़सत करा दिया था।

अब सवाल वही है कि कंपनियों को लगभग फ्री में सब कुछ देने के बदले सरकारें उनसे पीछे के रास्ते क्या वसूलती हैं? कभी कल्पना करके देखिए, पांव तले से ज़मीन खिसक जाएगी। जो लोग कहते हैं कि सरकारें कारोबारियों को भागने का मौका दे रही हैं, उनको बता दें कि इस देश में कारोबारी तय करते हैं कि देश की सत्ता को कौन संभालेगा? अगर अंदाजा नहीं हो तो ज़रा पीछे मुड़कर देख लीजिये। अंबानी, अडानी आज सत्ता तय कर रहे हैं। पहले यह काम टाटा और बिड़ला ख़ानदान किया करते थे। गोदरेज और दूसरों को क्यों भूला जाए, वह भी इसके हिस्सेदार थे। समय के साथ नेता नेपथ्य में गए तो यह कंपनियां भी हाशिए पर आ गई हैं। नेपथ्य में जाने का वक्त अंबानी और अडानी का भी आएगा, कब? यह तो सरकार का रुख ही तय करेगा। लेकिन एक बात हिंदुस्तान में पूरी तरह से स्पष्ट है कि यहां सरकारें तय करती हैं कि कारोबार के शिखर पर कौन होगा और कारोबारी तय करते हैं कि सत्ता के शीर्ष पर कौन रहेगा?”

बाक़ी क़समें, वादे, सब बातें हैं, जुमले हैं, जुमलों का क्या ?

देश में पूंजीवादी राजनैतिक व्यवस्था के साथ, साम्प्रदायिकता, भ्रष्टाचार और आतंकवाद के गठजोड़ ने देश में जड़ें काफी मज़बूत कर ली हैं। गौरक्षा, आस्था का नहीं आतंक का प्रतीक बन गया है। गौशालाओं के भी घोटाले सामने आ रहे हैं,गौशालाओं में गौमातायें भूखी मर रही हैं।

बढ़ते घोटाले और साम्प्रदायिक दंगे, बढ़ता धार्मिक और जातीय विद्वेष, बेरोज़गारी के चलते युवा वर्ग का बढ़ता आक्रोश, आपस में ही ईंट का जवाब पत्थर से देने की प्रवृति, संवैधानिक संस्थानों से उठता विश्वास, बढ़ते बलात्कार एक असंतुष्ट और बैचैन समाज की निशानी है। देश पर न सिर्फ आर्थिक ग़ुलामी के बादल मंडला रहे हैं बल्कि लोकतंत्र भी ख़तरे में पड़ता नज़र आ रहा है।

इसलिए अब सारी लड़ाई अच्छा चुनने की और नया रचने की होनी चाहिए, देश को मज़बूत करने और विश्व गुरु बनाने की होनी चाहिए।

वक़्त है एक दूसरे पर दोषारोपण और अविश्वास न कर, सच्चे हिन्दुस्तानी बनने का, एक सूत्र में बंधकर हिन्दू मुस्लिम अलगाव की बात करने वाली गंदी और छिछोरी सोच के साथ धार्मिक और जातीय विद्वेष को नकारने और इन्हें बंद फौलादी मुठ्ठी से जवाब देने का। पूंजीवादी राजनैतिक व्यवस्था के साथ, साम्प्रदायिकता, भ्रष्टाचार और आतंकवाद के गठजोड़ से सशक्त संघर्ष करने का। झूठ को नकार कर सच को अपनाने का। तभी देश और सर्व समाज का समग्र विकास संभव है। आईये मिलकर क़दम बढ़ायें।

मादरे वतन तुझे सलाम। जय हिंद।

लेखक सैय्यद शहंशाह हैदर आब्दी


Discover more from New India Times

Subscribe to get the latest posts sent to your email.

By nit

Discover more from New India Times

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading