अबरार अहमद खान, भोपाल, NIT; नवाबों के दौर से शुरू हुआ इज्तिमा अब दुनियाभर की पहचान बन गया है। दुनिया के पांच बड़े इस्लामिक आयोजन में से एक आलमी तब्लीगी इज्तिमा पहली बार 1944 में भोपाल के ही 14 लोगों के साथ शुरू हुआ था। यह कारवां अब साल-दर-साल आगे बढ़ा और दुनियाभर के लोगों की आस्था का केंद्र बन गया। देश में यह इज्तिमा सिर्फ भोपाल में ही होता है। इसके अलावा पाकिस्तान के रायविंड और बांग्लादेश के टोंगी में भी आयोजन किया जाता है। भोपाल का आयोजन दुनिया में सबसे बड़ा और सबसे पुराना है। इस इज्तिमा में पूरी दुनिया से जमातें रूस, फ्रांस, कजाकिस्तान, इंडोनेशिया, मलेशिया, जाम्बिया, दक्षिण अफ्रीका, कीनिया, इराक, सऊदी अरब, इथियोपिया,यमन, सोमालिया, थाईलैंड, तुर्की और श्रीलंका से हजारों की तादाद में पहुँचती हैं।भोपाल में इज्तिमे की शुरुआत 68 साल पहले नवाबी दौर में हुई थी, पहले एक मस्जिद में मौलाना मिस्कीन साहब ने इसकी नींव रखी थी। पहली बार उनके साथ 14 लोग जुटे थे। उसके बाद ताजुल मस्जिद में इसका आयोजन होने लगा। साल-दर-साल लोगों की आस्था बढ़ने लगी और इसमें शिरकत करने वालों में कई देशों के लोग भी जुड़ने लगे। शिरकत करने वालों की संख्या इतनी बढ़ी कि ताजुल मस्जिद परिसर और उसके आसपास की जमीन भी कम पड़ने लगी। दस साल पहले इसे यहां से 15 किमी दूर ईंटखेड़ी स्थित घासीपुरा में शिफ्ट कर दिया गया। इस साल आलमी तब्लीगी इज्तिमा 26 नवंबर को फजर के बाद शुरू हुआ था।आज रविवार को आलमी तबलीगी इज्तिमा का दूसरा दिन था। जिस में कई उल्माये कराम ने खिताब किया।मौलाना मोहम्मद साद ने अपने सम्बोधन में लोगों से कहा कि अपनी जुबान पर हमेशा काबू रखो ।आगे उन्हों ने कहा कि बड़े ओहदेदारों से ताल्लुक बढ़ाने में अपना वक्त बरबाद मत करो। उन्हों ने युवाओं से कहा कि टी वी एवं इंटरनेट का उपयोग ज़रूरत के मुताबिक़ करो। इस इज्तिमा का समापन 28 नवम्बर को होगा।
Discover more from New India Times
Subscribe to get the latest posts sent to your email.