अविनाश द्विवेदी/शेरा मिश्रा, कटनी (मप्र), NIT;
जिले में उद्यानिकी की दिशा में किये जा रहे कार्यों का जायजा लेने विभागीय अमले के साथ बुधवार को प्रभारी कलेक्टर फ्रेंक नोबल ए फील्ड पर निकले। इस दौरान वे सिंघनपुरी और भनपुरा-2 पहुंचे। जहां बेहतर ढंग से नवीन तकनीकों को उपयोग कर उद्यानिकी फसलों का उत्पादन कर रहे कृषकों से उनके खेतों में पहुंचकर प्रभारी कलेक्टर ने जानकारी ली। इस दौरान प्रोजेक्ट डायरेक्टर हॉर्टीकल्चर वीरेन्द्र सिंह भी मौजूद थे।
सिंघनपुरी में प्रभारी कलेक्टर श्री नोबल, शैलेश शर्मा के खेत पर पहुंचे। जहां उन्होने शैडनेट हाउस के भीतर श्री शर्मा द्वारा की जा रही खीरे की खेती को देखा। श्री शर्मा ने कहा कि सर, हमने यहां पर विभिन्न नवीन प्रजाति की सब्जियां लगाई हैं। हम पूर्णतः ऑर्गेनिक खेती कर रहे हैं। खीरे के साथ मल्टीक्रॉप के रुप में धनिया, टमाटर, शिमला मिर्च बोया देखकर इसकी सराहना भी प्रभारी कलेक्टर ने की। हॉर्टिकल्चर के अधिकारियों ने बताया कि श्री शर्मा को शैडनेट हाउस के लिये विभाग द्वारा अनुदान भी दिया गया है।
सिंघनपुरी में ही किये जा रहे मशरुम उत्पादन का जायजा भी प्रभारी कलेक्टर ने अपने विजिट में लिया। उन्होने इसे तैयार करने की प्रक्रिया भी जानी। साथ ही मार्केट में इसके उपयोग और होने वाले मुनाफे के गणित को भी समझा। परंपरागत पद्धति से पहाड़ी क्षेत्र में बेहतर कृषि उत्पादन प्राप्त करने वाले उद्धव साहू के खेत भी प्रभारी कलेक्टर पहुंचे।
उद्धव साहू के खेत में मुधमक्खी पालन का कार्य भी प्रभारी कलेक्टर ने देखा। जिसकी सारी की सारी प्रक्रिया भी उन्होने जानी। इस पर उद्यानिकी विभाग के अधिकारियों ने मधुमक्खी पालन के द्वारा शहद के विक्रय से होने वाले लाभ के विषय में प्रभारी कलेक्टर श्री नोबल को बताया।
उद्यानिकी अधिकारी ने बताया कि एक बॉक्स से लगभग 50 किलो शहद तैयार होता है। हनी बॉक्स के अंदर सबसे पहले फ्रेम में लकड़ी का छत्ता लगाकर मधुमक्खियों को बैठाया जाता है। डब्बे में तीन प्रकार की मधुमक्खियां डाली जाती हैं। क्वीन मक्खी इसमें मुख्य होती है। अगर रानी मक्खी निकल जाती है, तो एक भी मक्खी डिब्बे में नहीं रहती। उसके पीछे सभी मक्खियां निकल जाती हैं। जोकि लगभग तीन किलोमीटर दूर तक फूलों का रस लेने के लिये बाहर जाती हैं और लाकर छत्ते में एकत्र करती हैं। फूलों के रस से ही शहद बनता है। अलग-अलग फूलों का रस बॉक्स के छत्ते में जमा होता है। फूलों का सीजन इसके लिये बेस्ट होता है।
इसके बाद भनपुरा-2 पहुंचकर गुलाब के फूलों की खेती का कार्य भी श्री नोबल ने देखा। श्री नोबल ने पॉली हाउस में की जा रही गुलाब के फूलों की खेती, कटिंग, मार्केटिंग की प्रक्रिया को विस्तार से जाना। साथ ही उन्होने टिशुकल्चर लैब का भी विजिट किया। वहीं टिशुकल्चर के माध्यम से तैयार किये गये अनार के पौधों को भी प्रभारी कलेक्टर ने देखा।
इस दौरान उन्होंने एनआरएलएम की टीम को मधुमक्खी पालन और मशरुम उत्पादन की दिशा में समूहों को जोड़ने के निर्देश भी दिये।
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