पीयूष मिश्रा /अश्विनी मिश्रा, जबलपुर (मप्र), NIT; चित्तौड में ऐतिहासिक जौहर केवल पद्मावती या क्षत्राणियों ने ही नहीं किया था अपितु उनके साथ जौहर करने वाली लगभग 16 हजार स्त्रियां सनातन धर्म की सभी जातियों और वर्णों की थी। अतः पद्मावत फिल्म का मुद्दा केवल पद्मिनी के वंशजों या क्षत्रियों का ही नहीं अपितु यह मुद्दा समग्र सनातनी समाज का है। इस मुद्दे पर इसी परिप्रेक्ष्य में विचार और निर्णय होना चाहिए था पर दुर्भाग्य से ऐसा हो नहीं रहा है। हमारा मानना है कि उच्चतम न्यायालय में हम सनातन धर्मियों का पक्ष ठीक से नही रखा गया है।उक्त उद्गार जबलपुर पधारे पूज्यपाद अनन्तश्री विभूषित उत्तराम्नाय ज्योतिष्पीठाधीश्वर व पश्चिमाम्नाय द्वारका शारदापीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती जी महाराज ने कही।
उन्होंने कहा कि यह ऐतिहासिक तथ्य है कि मुस्लिम आक्रान्ताओं ने हम पर अनेक हमले किए। हमले के बाद विजयी होने पर यह सामान्य नियम था कि मुस्लिम सैनिक हिन्दुओ की पत्नियों, माताओं, बहनों पर टूट पडते थे और उनका अपमान करते थे। ऐसा करते समय कही पर भी यह वर्णन नहीं मिलता है कि वे यह विचार करते हों कि जिस महिला का वे अपमान कर रहे हैं वह क्षत्राणी ही है। इसलिए मुस्लिम आक्रान्ताओं से विजय के बाद सभी हिन्दू महिलाओ में यह आतंक व्याप्त हो जाता था कि अब हमारा अपमान होगा इसलिए चित्तौड विजय के बाद अलाउद्दीन खिलजी और उसके सैनिकों द्वारा अपमानित होने से बचने के लिए रानी पद्मावती के साथ जिन हजारों स्त्रियों ने जौहर किया वे मात्र क्षत्राणियां ही नहीं, अपितु सनातन धर्म की विभिन्न जातियों और वर्णों की मानधनी स्त्रियाँ थीं।
पूज्य शंकराचार्य जी महाराज ने कहा कि इस तरह की घटनाओं के स्मरण से मुस्लिमों के प्रति वैमनस्य का भाव बढता है। अतः फिल्मकारों को ऐसे फिल्मों को बनाने से पहले विचार करना चाहिए। पद्मावती की कहानी को पर्दे पर दिखाने से हम सभी वर्ण जातियों के हिन्दुओं के वे घाव हरे हो जाएंगे जो मुस्लिम आक्रमणकारियों ने हमारी माताओं बहनों पर अपने जुल्म और अत्याचारों से बनाए थे।
पूज्य शंकराचार्य जी महाराज ने पश्चिम बंगाल के ब्राह्मण राजा काला पहाड का इतिहास भी विस्तार से बताया जिसमें काला पहाड के इस्लाम अपना लेने के बाद किए गए आक्रमण के बाद सभी जातियों की महिलाओं के साथ मुस्लिम बलात्कार कर रहे थे और इसी क्रम मे काला पहाड के परिवार की स्त्रियों के साथ भी जुल्म करने लगे थे जिसे देख काला पहाड का जमीर जागा था और उसने इस्लाम का चोला उतारकर उन्हीं के विरुद्ध युद्ध किया था।
पूज्य शंकराचार्य जी महाराज ने केन्द्र व राज्य सरकार से मांग की है कि व्यापक देशहित के लिए पद्मावती जैसी फिल्म पर रोक लगानी चाहिए ताकि देश का वातावरण सौहार्दपूर्ण बना रह सके।
पूज्य शंकराचार्य जी महाराज ने यह भी कहा कि पद्मावती फिल्म का नाम पद्मावत कर देने मात्र से फिल्म का दृश्य आदि नहीं बदल जाएगा और न ही हमारे जख्मों पर मरहम ही लगेगा।
अंग्रेजी राज में गोरी पल्टन भी इसी तरह महिलाओं पर अत्याचार करती थी। इसलिए आज भी हमारे हृदय में उनके लिये घृणा का भाव हैं।
हिन्दू नरेश शिवाजी का उदाहरण है कि जब पराजित मुस्लिम राजकुमारी उनसे विवाह के लिये लाई गई तो उन्होंने उसके साथ बर्बरता नहीं अपितु सम्मान का व्यवहार किया था और कहा था कि यदि हमारी माँ भी इतनी सुन्दर होतीं तो हम भी सुन्दर होते। खेद का विषय है कि ऐसा उदाहरण किसी मुस्लिम शासक ने नहीं रखा। उनके द्वारा किये गये अत्याचारों के स्मरण से हमारे मन में पीड़ा उत्पन्न होती है जिससे उनके प्रति दुर्भाव उत्पन्न होता है, जबकि हमारे संविधान का उद्देश्य सभी सम्प्रदायों के मध्य समन्वय स्थापित करना है।
पूज्यपाद शंकराचार्य जी ने न्यायालयों को सम्बोधित करते हुए कहा कि न्यायाधीश गण स्वतः संज्ञान लेकर आगे आएं क्योंकि यह विषय याचिकाओं का नहीं है अपितु उसी तरह से स्वयं संज्ञान का है जैसे बाल-विवाह, दहेज-उत्पीड़न और बलात्कार की घटनाएं।
Discover more from New India Times
Subscribe to get the latest posts sent to your email.