शेरा मिश्रा/अविनाश द्विवेदी, कटनी (मप्र), NIT; विजयराघवगढ़ कारितलाई मे सांघवी प्राईवेट लिमिटेड सीमेंट प्लांट के स्थापित होने की कवायद लगभग तीन वर्षों से चल रही है, जिसमें विजयराघवगढ़ राजस्व की अहम भूमिका देखी जा रही है। शासकीय भूमि पर अपना कब्जा जमाने में संघवी कोई कसर नहीं छोड रही है, साथ ही गरीब मजदूरों को बेघर किया जा रहा है। शासन ने जिन जमीनों को आदिवासीयों को दे रखा है उन भू स्वामियों से भी जमीन हथियाने का कार्य शासकीय अधिकारियों की मिलीभगत से चल रहा है।
शासकीय तलाब पर स्थापित कार्यालय
सांघवी सीमेंट प्लांट शासकीय तलाब पर स्थापित है, जिसे बडा तलाब भी कहते हैं। इस तलाब के गहरीकरण के लिए शासन ने लाखों की राशि सस्वीकृत ककी लेकिन सरपंच-सचिव से मिली भगत कर प्लांट मैनेजमेंट ने तलाब गहरीकरण योजना को रफा-दफा करा दिया।
मुआवजे की राशि पर कोई नियम कानून नहीं
कारीतलाई में होने जा रहे सांघवी सीमेंट प्लांट को भूमि मुहैया कराने की कवायद प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा कि जा रही है, जिसका उचित मूल्य भी गरीब आदिवासियों को नहीं दिया जा रहा है। वहीं शासकीय अधिकारियों की मिली भगत से नये चेहरों को पनाह दी जा रही है ताकि आने वाले समय में काबिज लोगों को हटाने के नाम पर कम्पनी से फायदा उठाया जा सके। अभी कुछ दिन पूर्व इस शासकीय भूमि पर ताम्रकार और बरगाही अपना कब्जा इस लाभ को देखते हुए जमा रहे हैं कि आने वाले समय में उन्हें अतिक्रमण मुक्त करने का अच्छा खासा मुआवजा मिलेगा। तो वहीं मुनाफे को गौर करते हुए प्रशासनिक अधिकारियों ने भी चुप्पी साध रखी है और बेजा कब्जा धारियों को छूट देकर कब्जा करा रहे हैं, ताकि आने वाले समय में कब्जा मुक्त कराने के नाम पर प्लांट से राशि ऐंठी जाए।
क्षेत्र के लिए कोई समाज सेवी सौगात अभी तक नहीं
कारीतलाई में स्थापित होने वाले प्लांट ने क्षेत्र का शोषण करना प्रारंभ तो कर दिया है लेकिन क्षेत्र के लोगों के लिए न तो एम्बुलेंस की सुविधा दे पाया और न ही स्वास्थ्य सम्बन्धित कोई कार्य। जिस भूमि से गरीब परिवारों का पालन पोषण होता था आज वही गरीब परिवार शासकीय अधिकारीयों के दबाव में आकर भूमि से कबजा तो हटा लिया लेकिन बेघर हुए गरीब दाने दाने को भटक रहे हैं, उनके लिए कोई व्यवस्था नहीं की गई है। इसे कहते हैं घन धर्म सब कुछ गवाना।
बिना फाईनेंस के कम्पनी स्थापित नहीं हो पा रही
जानकारी के अनुसार कारीतलाई सांघवी सीमेंट प्लांट को कोई भी फाइनेंशियल कम्पनी नहीं मिल रही है जिससे कम्पनी का कार्य प्रारंभ हो सके। इन हालात में शासकीय भूमि पर कब्जा दिलाना कहाँ तक उचित होगा? शासकीय अधिकारी बिना कुछ समझे बूझे ही शासकीय जमीन का सौदा गरीबों से करा रहे हैं। वहीं मध्यप्रदेश में कोयले की कमी को देखते हुए शासन ने अभी प्लांट पर रोक लगा रखी है। जिला प्रशासन को पहले प्लांट के दस्तावेजों की जाच करनी चाहिए फिर शासकीय भूमि का खुर्द बुर्द करना चाहिए। सूत्रों की माने तो सांघवी शासकीय भूमि का क्रय करने के उपरांत इस प्लांट की सारी जमीन अन्य प्लांट को दोगुने दामों में बेचने की तैयारी कर रही है।
आला अधिकारियों ने प्लांट स्थापित करने में करोड़ों खर्च करने के लिए दिए थे निर्देश
कारीतलाई सांघवी प्लांट स्थापित करने के लिए सांघवी के मुखिया ने करोड़ों खर्च कर प्लांट स्थापित करने के निर्देश दिए थे किन्तु आज नौबत यह है की प्लांट स्थापित होने के बजाय बिक्रय में तपदील हो रहा है, जिसके लिए स्थानीय मैनेजमेंट जबाबदार है। अगर मुखिया ने क्षेत्र की सेवा करने तथा जन हितैषी कार्य करने के निर्देश दिए तो कम्पनी के हितैषी प्लांट प्रमुख की बातों को तवज्जो क्यों नहीं दे रहे हैं? उनके निर्देशों का पालन क्यों नहीं किया जा रहा है?
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