गोलमाल है भाई सब गोलमाल है: कुछ दिनों पूर्व ही 118 करोड़ की लागत से बनी सडक हुई जर्जर | New India Times

शेरा मिश्रा/अविनाश द्विवेदी, कटनी (मप्र), NIT; ​गोलमाल है भाई सब गोलमाल है: कुछ दिनों पूर्व ही 118 करोड़ की लागत से बनी सडक हुई जर्जर | New India Timesविजयराघवगढ़ में कुछ दिन पूर्व बनी 118 करोड़ की रोड अभी से टूटने लगी है। रोड निर्माण के समय अनेकों पुल पुलिया निर्माण कराना था लेकिन पेटी ठेकेदार ने सत्ता पक्ष का सहयोग लेकर अच्छा खासा घोटाला कर डाला।आरोप है कि रोड निर्माण में करोड़ों की रोयलटी चोरी की गई है तथा मटेरियल में अच्छी खासी अनियमितता दिखाई दे रही है, जिसकी वजह से आज रोड बनते ही रोड मे गहरे गड्ढे जानलेवा हो चुके हैं। 

बबताया जाता है कि इस रोड की स्वीकृति मिलते ही राजनेताओं के चहरों पर गुलाब सी चमक नजर आ गई थी। सभी अपनी अपनी काबिलियत का गुणगान करते निर्माण होने वाली रोड की प्रसंसा कर रहे थे, किन्तु उन्हीं जन प्रतिनिधियों ने ठेकेदारों को सह देकर रोड निर्माण कार्य को मजाक बना दिया। कहने को तो नयी रोड कटनी से विजयराघवगढ तथा विजयराघवगढ़ से बरही बनाई गई किन्तु इस रोड की हालत देख कर अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस कटनी विजयराघवगढ़ के जनप्रतिनिधी कितने शरीफ होंगे, जिनके संरक्षण में इस रोड का निर्माण हुआ। सत्ता पक्ष के जन प्रतिनिधियों को तो जरा से पानी मे डुब कर मरजाना चाहिए क्योंकि सत्ता में होने के बाद अगर आप के क्षेत्र का यह विकास है तो शर्म बात है। इस क्षेत्र में कहने को तो अनेकों जन प्रतिनिधी हैं, लेकिन जीवत नजर नहीं आ रहे हैं। यह सिर्फ चुनाव के समय जीवित होते हैं। विजयराघवगढ़ में न कोई मूलभूत सुविधा है और न ही किसी योजना का सही क्रियान्वयन होता है, सभी योजनाओं का लाभ हितग्राही को कम अधिकारीयों को जादा होता है। यात्री प्रतीक्षालय नही, सुलभ काम्प्लेक्स नही, विधुत व्यवस्था सही नहीं, पानी की व्यवस्था सही नहीं,  सबसे अहम बात तो यह की बेरोजगारों को रोजगार नही।

 चुनाव के समय जनप्रतिनिधियों ने क्षेत्र की जनता व युवाओं से वादा किया था की क्षेत्र में अनेकों उद्योग होंगे, सभी को रोजगार मिलेगा, कोई बेरोजगार नही रहेगा, लेकिन गिरगिट की तरह रंग बदलने वाले अपने ही वादों को भूल चुके हैं। आज विजयराघवगढ़ में सिर्फ वाहवाही करने वाले चाटुकारों की दुकानें चल रही हैं, शेष लोग घूटघूट कर मरने मर रहे हैं  अनेकों जानें रेत व्यापार में गईं तो अनेकों भूखे किसानों की जाने खेतों में गई। इस बात कि फ्रिक्र न जनप्रतिनिधियों को है और न ही मध्यप्रदेश के कानून व्यवस्थापकों को। सभी जनता जनार्दन को अपनी बातों के माया जाल मे फंसाकर राजनीति के राजा बने बैठे हैं।


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