
अबरार अहमद खान/मुकीज खान, भोपाल (मप्र), NIT:
जमीयत उलमा मध्य प्रदेश के अध्यक्ष हाजी मोहम्मद हारून ने एक बयान जारी कर कहा है कि वक्फ संशोधन विधेयक मुसलमानों पर एक अत्याचार है , जो मौजूदा सरकार का बेहद अन्यायपूर्ण कदम है । लोकतंत्र में सरकार के हर कार्य में लोकतंत्र दिखना चाहिए। लोकतांत्रिक प्रणाली में निर्णय बलपूर्वक नहीं बल्कि जनता के परामर्श से लिए जाते हैं । जो कानून सीधे तौर पर जनता से या किसी विशेष सम्प्रदाय या धर्म से संबंधित होते हैं ऐसे मामलों में सीधे तौर जनता की राय जानना चाहिए । वक्फ का सीधा संबंध मुसलमानों के धार्मिक मामलों से है, लेकिन मौजूदा सरकार ने मुसलमानों और उनके संगठनों से परामर्श किए बिना यह विधेयक उन पर थोप दिया है। ब्रिटिश काल में भी इस तरह से कानून नहीं बनाये गये थे। उस दौरान भी मुसलमानों के सबसे बड़े प्रतिनिधि समूह जमीयत उलमा-ए-हिंद की बात सुनी जाती थी और सरकार परामर्श करती थी । 1954 का जो वक्फ अधिनियम लागू किया गया था , वह भी जमीयत उलमा-ए-हिंद के परामर्श से बनाया गया था, लेकिन वर्तमान सरकार तानाशाही रवैया अपना रही है, जिससे न केवल अल्पसंख्यकों के संवैधानिक अधिकार प्रभावित हो रहे हैं, बल्कि उनके अधिकारों का भी स्पष्ट उल्लंघन हो रहा है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में सरकार बनने के बाद भी जनता से परामर्श किया जाता है । लोकतंत्र का मतलब सिर्फ चुनाव तक सीमित नहीं है , बल्कि असली लोकतंत्र तो यह है कि चुनाव के बाद भी सरकार के हर काम में लोकतंत्र दिखाई देना चाहिए।लेकिन मौजूदा सरकार वक्फ बिल के मुद्दे पर कोई भी परामर्श सुनने के लिए तैयार नहीं है, हम इसकी कड़ी निंदा करते हैं।
उन्होंने आगे कहा कि केवल मुसलमानों ने ही संपत्ति वक़्फ़ नहीं की है , बल्कि हिंदुओं ने भी संपत्ति वक़्फ़ की है , विशेष रूप से शिवाजी महाराज के वंशज साहूजी महाराज ने अन्य धर्मों के साथ-साथ मुसलमानों की शिक्षा के लिए भी अपने राज्य कोल्हापुर में एक मुस्लिम बोर्डिंग स्कूल बनाया और उसके लिए जमीन और दुकानें वक़्फ़ की ताकि भविष्य में मुस्लिम बच्चों की शिक्षा में कोई बाधा न आए इतिहास में ऐसे कई उदाहरण मौजूद हैं।
उन्होंने आगे कहा कि चूंकि वक्फ का सीधा संबंध मुसलमानों से है, इसलिए वक्फ बोर्ड में सदस्यों को चुनने का अधिकार केवल मुसलमानों को होना चाहिए , न कि उन्हें सरकारी स्तर पर नामित किया जाना चाहिए। वक्फ बोर्ड में सदस्यों का मनोनयन सरकारी स्तर पर होने के कारण सदस्य सीधे तौर पर सरकार के इशारों पर चलते है तथा जनता की सलाह से दूर होकर काम करते हैं , जिससे वक्फ बोर्ड में गड़बड़ियां पैदा हो रही हैं। मुसलमानों को वक्फ बोर्ड के सदस्यों को चुनने का अधिकार मिलना चाहिए।
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