अली अब्बास, ब्यूरो चीफ, मथुरा (यूपी), NIT:
बाईपास स्थित जयगुरुदेव आश्रम में चल रहे पांच दिवसीय सत्संग-मेला के समापन के दिन बाबूराम, सतीश चन्द्र उपदेशकों ने प्रवचन किया। बाबूराम जी ने कहा भक्ति करने के लिये संसारी इच्छाओं का त्याग करना पड़ता है। समर्थ सत्गुरु का सानिध्य मिल जाता है तो उनके सत्संग से विवेक जागृत होता है और अधिकारी शिष्य मिल जाते हैं तो ‘गूढ़ऊ तत्व न साधु दुरावें।’ इसलिये श्रद्धा व समर्पण भाव से भक्ति करने की आवश्यकता है। ‘मांस, मद्य, मिथ्या तजि डारो’ का पालन करना होगा। यही भजन की रीति है।
सतीश चन्द्र जी ने कहा दादा गुरु जी महाराज में बर्दाश्त की बहुत बड़ी क्षमता थी। वे ‘सरल स्वभाव न मन कुटिलाई’ के महापुरुष थे। उनकी शिक्षा थी ‘‘गाली कोई दे जाय, क्षमा कर चुपके खड़ा है। देखने की जरूरत है। उन्होंने ‘‘काल ने अजब जगत भरमाया, मैं क्या-क्या करूँ बखान’’ पंक्तियों को उद्धृत करते हुये कहा काल प्रभु ने जगत के लोगों को तरह-तरह भटका और भरमा दिया। मूढ़ मति वाले लोग जल और पाषाण में उलझ गये और जो अति बुद्धिमान लोग हैं उनको विद्या का अहंकार आ गया तो वे लोग संत और सत्संग को नहीं मानते।
वास्तव में मन हमारा सबसे बड़ा दुश्मन है उसकी कार्यवाहियों से दुनिया में हमारा फंसाव होता रहता है इसलिये ‘‘मन के कहे न चालिये, मन के मते अनेक। मन पर जो असवार है सो साधू कोई एक।’’ इन पांच दिनों में सुरत-शब्द योग साधना करने और गुरु की महिमा पर बहुत प्रकाश पड़ा है। आप इससे प्रेरणा प्राप्त करके साधन-भजन का लाभ प्राप्त करें। इस सत्संग मेला को सफलतापूर्वक सम्पन्न कराने में अधिकारियों-कर्मचारियों, बुद्धिजीवियों, क्षेत्रवासियों को संस्थाध्यक्ष पंकज जी महाराज ने सबको साधुवाद दिया।
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