अली अब्बास, ब्यूरो चीफ, मथुरा (यूपी), NIT:
बाईपास स्थित जयगुरुदेव आश्रम मथुरा पर चल रहे वार्षिक भण्डारा सत्संग मेला के तीसरे दिन संस्थाध्यक्ष पंकज जी महाराज ने अपने प्रवचन में कहा कि खुदा, प्रभु जब दुनिया के जीवों को अपने पास बुलाना चाहता है तो वह किसी संत फकीर के जरिये अपना भेद जाहिर करता है। संसार के परोपकारियों के कार्य से संसार रूपी जेलखाने में बंद जीवों को थोड़ा आराम जरूर मिलता है लेकिन वे जन्म-मरण के बन्धन से आजाद नहीं होते। जब संत महात्मा जैसे परोपकारी मिल जाते हैं जिनके पास नामधन की दौलत होती है। वे उस दौलत की बख्शीश जब जीवों को कर देते हैं तो जीव संसार रूपी जेल खाने से सदा के लिये आजाद हो जाता है और प्रभु में समा जाता है। जो संसार रूपी जेलखाने से निकलना चाहते हैं उनको संत सत्गुरु की खोज कर नाम भेद प्राप्त करके उसकी कमाई करनी चाहिये। श्वांस श्वांस पर नाम का सुमिरन करते रहना चाहिये।
इन्सानी स्वभाव है कि वह जिस चीज का सुमिरन करता है उसी की शक्ले उसके आंखों के सामने आ जाती हैं। जब शक्ल आंखों में आ जाती है तो उसे ध्यान करना कहते हैं। जीवन भर जिसका सुमिरन करेंगे उसी की शक्लें मौत के समय आंखों में आती हैं और उसी में जन्म मिल जाता है। दुनियाबी सुमिरन ही जीव को दुनिया में बार-बार ले आती है। इसलिये व्यक्ति को हमेशा उस चीज का सुमिरन करना चाहिये जो कभी फना नहीं होता है, जिसका कभी नाश नहीं होता है।
सतगुरु ने जिनको धुरधाम जाने का नाम रूपी टिकट दे दिया तोे वह एक दिन अपने घर पहंच जायेगा। उसे भरोसे और विश्वास के साथ नाम की सुमिरन करते रहना चाहिये। ‘नाम’ भेद पाया जीव कभी नर्कगामी नहीं होता है। गुरु पर भरोसा और विश्वास तब होगा जब अन्दर में गुरु के नूरानी रूप का दर्शन हो जायेगा। हमेशा सत्गुरु की मौज में रहना चाहिये। मुर्शिद का जो हुक्म होता है वही तालिब के लिये हदीश, वेद और कुरान होता है। गुरु का काम केवल दुनियाबी इच्छाओं को पूरा करना नहीं होता है, बल्कि सतलोक पहुंचाना है। सत्गुरु बेगरज होते हैं, वह निःस्वार्थ भाव से सेवा करते हैं इसलिये कभी सतगुरु से रूठना नहीं चाहिये। सन्तमत कोई मजहब नहीं है, यहाँ हिन्दू, मुसलमान, सिख, इसाई के लिये कोई लिहाज नहीं है।
उन्होंने कहा कि शंकर भगवान नाम के नशे, भक्ति के नशे में लीन थे। यह महान देवता कभी गांजा भांग नहीं पीते हैं। जब भजन करोगे तो खिंचाव होगा और जीवात्मा का फैला हुआ प्रकाश नौ दरवाजों से सिमट कर दसवें द्वार पर एकत्रित हो जायेगा और नाम (शब्द) जीवात्मा को पकड़ लेगी, शरीर से निकल जायेगी। दुनिया का विज्ञान जहाँ समाप्त होता है उसके चोटी से अध्यात्मवाद शुरू होता है। यही सच्चा सनातन विज्ञान है जिसे दुनिया भूल गई है। आज सनातन विज्ञान को जानने की जरूरत है।
उन्होंने आगाह करते हुये कहा कि इन्सानों का काम रूहों पर रहम करना है। सभी से अपील किया कि शाकाहार का प्रचार करते रहना है। इसी से देश दुनिया में भारी परिवर्तन आयेगा। मध्य रात्रि में पंकज जी महाराज के मन्दिर में पूजन के बाद श्रद्धालु कतारबद्ध होकर पूजन कर प्रसाद लेते हुये, दया, दुआ की याचना करते हुये देखे गये। पूजन व प्रसाद वितरण का कार्य निरन्तर 12 दिसम्बर तक चलता रहेगा। आगामी होली कार्यक्रम 13 से 15 मार्च 2025 तक मथुरा में आयोजित किये जाने की घोषणा करते हुये लोगों को उसमें भाग लेने का निमन्त्रण दिया।
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