नरेन्द्र कुमार, ब्यूरो चीफ़, जलगांव (महाराष्ट्र), NIT:
जलगांव जिले के किसी भी शहर में चले जाइए आपको पेशाब करने के लिए कोई कोना ढूंढना पड़ेगा। सारे जिले में प्रायवेट सेक्टर की मदद से बनाए गए सार्वजनिक शौचालय अब मूतने तक का दो रुपया लेने लगे हैं। तीस साल से विधायक साढ़े सात साल मंत्री और अब फिर से मंत्री बनने के लिए तैयार बैठे गिरीश महाजन का गृह नगर जामनेर जो सिर्फ एक सड़क से शुरू हो कर उसी एक सड़क पर खत्म हो जाता है उस एकमात्र सड़क पर नगर परिषद का एक भी शौचालय वाश रूम पेशाब घर नहीं है।
निजी पाइप इंडस्ट्रीज की ओर से CSR फंड से बना एक प्रसाधन केंद्र रात 8 बजे बंद हो जाने के बाद प्रवासी नागरिकों को खुले मैदान खोजने पड़ते हैं। बस अड्डे को पोर्ट बुलाने से वो एयर पोर्ट तो बनेगा नहीं हां इसे बनाने वाला अवश्य एयर पोर्ट ट्रांसपोर्ट का भोगी और अपार संपत्ति का योगी है। इसी बस अड्डे पर कंपनी द्वारा बनाई गई बंद पड़ी प्याऊ की इमारत के पीछे का हिस्सा लोगों ने पेशाब घर बना डाला है। बस अड्डे का प्रसाधन केंद्र जो पे एंड यूज है वो शाम को बंद कर दिया जाता है। गांधी चौक में धार्मिक ट्रस्ट की जमीन बरसों से खुला शौचालय बनी हुई है। BOT के नाम पर बनाए गए तमाम सरकारी कार्यालयों मे वॉश रूम्स और सफाई घरों की हालत बेहद खराब है। चुनाव के दौरान सोशल मीडिया यूजर्स ने इस विषय पर कई विडियो बनाए शेयर किए।
कर्मियों का शोषण: नगर परिषद में काम करने वाले सफाई कर्मचारियों के डेली बेसिस मजदुरी के पैसों में गरीब गुरबा नेताओं द्वारा कट लेने की बात को विपक्ष ने विधानसभा चुनाव में प्रचार का मुद्दा बनाया था। सफाई ठेके के आबंटन से लेकर दिहाड़ी में कट जैसी अन्याय जनक बातें वंचित समाज का सालों से आर्थिक शोषण कर रही है। आने वाले नगर परिषद चुनाव में सार्वजनिक स्वच्छता का विषय सत्ता पक्ष बीजेपी के लिए परेशानी का कारण बन सकता है।
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