यूसुफ खान, ब्यूरो चीफ, धौलपुर (राजस्थान), NIT:
जिले में भाई दूज जिसे भैया दूज या भातृ द्वितीया के नाम से भी जाना जाता है भारतीय परंपरा में भाई-बहन के रिश्ते को और गहरा करने का एक महत्वपूर्ण पर्व है। यह दिवाली के ठीक दो दिन बाद मनाया जाता है और इसे कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि पर मनाया जाता है। भाई दूज का पर्व रक्षाबंधन के समान ही है लेकिन इसमें कुछ अलग परंपराएं और रीति रिवाज शामिल हैं। इस दिन बहनें अपने भाइयों की लंबी उम्र सुख-समृद्धि और खुशियों के लिए प्रार्थना करती हैं और भाई अपनी बहनों की सुरक्षा और खुशियों का वचन देते हैं।
भाई दूज की परंपराएं: भाई दूज के दिन, बहनें अपने भाई को तिलक लगाती हैं। तिलक का यह संस्कार भाई की लंबी उम्र और समृद्धि की कामना के प्रतीक के रूप में किया जाता है। इसके बाद भाई बहन को उपहार या शगुन के रूप में कुछ भेंट देते हैं। इस पर्व पर एक विशेष रसम भी होती है जिसे “भात” कहा जाता है, जिसमें भाई बहन के घर भोजन करने जाते हैं। यह रसम भाई-बहन के बीच के रिश्ते को और भी मजबूत करने का एक प्रतीक है।
भाई दूज की कथा: भाई दूज की एक लोकप्रिय कथा के अनुसार, भगवान सूर्य की पत्नी छाया की संतान यमराज और यमुनाजी हैं। यमुनाजी ने अपने भाई यमराज से यह वचन लिया कि वह हर साल कार्तिक मास की द्वितीया तिथि पर अपनी बहन से मिलने आएंगे। यमराज के आशीर्वाद से यमुना ने अपने भाई की लंबी उम्र और स्वास्थ्य की कामना की। तभी से यह मान्यता बन गई कि जो भाई इस दिन अपनी बहन के घर भोजन करते हैं और बहनें उनका तिलक करती हैं, उनकी उम्र लंबी होती है और वे सदा स्वस्थ रहते हैं।
भाई दूज का महत्व: भाई दूज न केवल एक धार्मिक उत्सव है, बल्कि यह भाई-बहन के रिश्ते में प्रेम, आदर और सामंजस्य को बढ़ावा देने का एक पर्व भी है।
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