नरेन्द्र कुमार, ब्यूरो चीफ़, जलगांव (महाराष्ट्र), NIT:
हमने एक रिपोर्ट में लिखा था कि लोकतंत्र में किसी पार्टी का कोई गढ़ वगैरा नहीं होता है। हालात समझौते और धन के कारण दशकों तक जीतते आ रहे नेता समय बीतने के साथ साथ लोगों को अप्रिय लगने लगते हैं। महाराष्ट्र में विधानसभा की 50 सीटें ऐसी है जिनके क्षेत्र इन नेताओं के उपनिवेश बन चुके हैं। जामनेर से बीजेपी नेता गिरीश महाजन सातवीं बार मैदान में हैं। महाजन के कट्टर विरोधी संजय गरुड़ को बीजेपी में शामिल कर चुनाव को एकतरफा जीतने की बीजेपी की रणनीति ध्वस्त होती नज़र आ रही है।
गांव कस्बों में हो रही सभाओं में संजय गरुड़ बीजेपी और गिरीश महाजन का पक्ष इतनी ताकत से रख रहे है कि लोग गरुड़ द्वारा अतीत में महाजन के विरोध में दिए भाषणों को याद कर रहे हैं। 2004 से बीजेपी की ओर से क्षेत्र मे अपनाया जा रहा गैर मराठा जातीय ध्रुवीकरण का फार्मूला इस बार काम नहीं कर रहा है। पुरोगामी विचारों के पैरोकार बताते है कि महाराष्ट्र में जो रूढ़िवादी शक्तियां है वह मराठा समुदाय को सत्ता में आने से रोकने के लिए धार्मिक राष्ट्रवाद को हवा देती है। मनोज जरांगे के मराठा आरक्षण आंदोलन के कारण धनगर मुस्लिम लिंगायत बंजारा समाज के सामाजिक न्याय की संवैधानिक लड़ाई को बल मिला है।
चौंकाने वाले घटनाक्रम: जामनेर की राजनीत में आने वाले कुछ दिनों में चौंकाने वाले घटनाक्रम होने जा रहे है। दो साल पहले बीजेपी ने NCP शिवसेना को तोड़ा था। इसी तर्ज पर जामनेर में रसूखदार परिवारों के सदस्यों को तोड़कर अपने पाले में लाने के प्रयासों पर काम चल रहा है। दिलीप खोड़पे सर के नामांकन के बाद गिरीश महाजन के विशेष प्रभाव वाले इस क्षेत्र की राजनीत में काफ़ी कुछ तेजी से बदल रहा है।
MVA की ओर से प्रस्तावित रोहित पवार की सभा पर राजनीति के जानकारों की नजरे टिकी है। Democracy dies in Darkness मतलब सही सूचना के अभाव से अंधकार फैलता है और लोकतंत्र की हत्या हो जाती है। चाउस ए मसलहत के बड़े बड़े हिमायती नेताओं के हमराज बन चुके है। महाराष्ट्र के 9 करोड़ 70 लाख 25 हजार 739 वोटरों को सरकार के चयन के साथ साथ अपना भविष्य संवारना है।
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