नरेन्द्र कुमार, ब्यूरो चीफ़, जलगांव (महाराष्ट्र), NIT:
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा प्रणीत महायूती और कांग्रेस प्रणीत महाविकास आघाड़ी ने आधिकारिक प्रत्याशियो की पहली लिस्ट जारी कर दी है। कही सीट तो कही टिकट नहीं मिलने पर नाराज नेताओं के विद्रोह ने नेतृत्व को परेशान कर रखा है। जलगांव जिले की 11 सीटों को लेकर महायुति में कोई गड़बड़ नहीं है। जामनेर से महाविकास आघाड़ी मे बिघाडी की पहली खबर ने बीजेपी को मुस्कुराने का मौका दे दिया है। जामनेर सीट से राष्ट्रवादी कांग्रेस शरदचंद्र पवार पार्टी के प्रत्याशी दिलीप खोड़पे सर ने कांग्रेस और शिवसेना UBT के नाराज तत्वों से मुलाकात कर उन्हें मनाने का प्रयास किया।
मुंबई से लेकर दिल्ली और दिल्ली से फिर मुंबई तक सीट शेयरिंग की प्रक्रिया में कई चरणों में मेरिट के आधार पर सीट गंवा बैठे आघाड़ी के सहयोगी दलों के नेताओं के रवैये ने आपसी असमन्वय का परिचय दिया। कांग्रेस की पारंपारिक आघाड़ी में जामनेर सीट कौन लड़ेगा इस का फैसला उम्मीदवार के चेहरे को देख कर उसे मिले वाले वोटों से होता है। 2004 में NCP के राजू बोहरा को 24 हजार, निर्दलीय लड़ने वाले संजय गरुड़ को 42 हजार वोट मिले। 2009 को आघाड़ी गठबंधन मे कांग्रेस के टिकट पर संजय गरुड़ ने 83 हजार वोट हासिल किए। 2014 में इसी कांग्रेस की ज्योत्स्ना विसपुते को महज 2 हजार और NCP के डी के पाटिल को 68 हजार वोट मिलते है।
क्षेत्र का समझदार वोटर प्रत्याशी को उसका चेहरा और जाती हि नहीं बल्कि प्रत्याशी ने अतीत मे बीजेपी से कैसे संघर्ष किया, विचारधारा, जनसंपर्क, लोकप्रियता और साफ सुथरी सोच जैसे पैमाने पर परखता है। दिलीप खोड़पे को लोग कितना पसंद करते है यह तो नतीजे आने पर पता चलेगा। दिलीप खोड़पे के मैदान में उतरने के कारण बीजेपी के कद्दावर नेता गिरीश महाजन के प्रभाव वाली इस सीट के नतीजे को लेकर आम जनता के बीच परिवर्तन की बहस को जगह मिली है। 29 अक्टूबर तक नामांकन दाखिल करने है फिर नामांकन वापसी की प्रक्रिया के बाद सारा माजरा साफ़ होगा।
कार्रवाई से बचती पार्टियां: टिकट ओर सीट को लेकर सबसे अधिक अनबन बीजेपी और उसके गठबंधन में है। आघाड़ी में शिवसेना UBT और कांग्रेस आमने सामने तो कांग्रेस NCP (SP) में छिपा संघर्ष है। फ़िलहाल सारे दल अपनी अपनी पार्टियों के उपद्रवियों को मनाने में लगे है। लोकतंत्र के समर्थकों की राय है कि विधायक बनने का तसव्वुर रखने वाले महायुति और महाआघाड़ी की भीड़ मे टिकट और सीट से महरूम रहे राजनीतिक पार्टियों के सदस्यों को पार्टी के बागी की शक्ल में नहीं बल्कि फ्रेशर के रूप में चुनाव लड़कर अपने व्यक्तिगत जनाधार को टटोल लेना चाहिए।
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