मंत्रियों के निर्वाचन क्षेत्रों में जनता पर थोपा जा रहा है  सुख-दुःख का नरेटिव: बुनियादी विकास से पिछड़ा औद्योगिक दृष्टिकोण | New India Times

नरेन्द्र कुमार, ब्यूरो चीफ़, जलगांव (महाराष्ट्र), NIT:

मंत्रियों के निर्वाचन क्षेत्रों में जनता पर थोपा जा रहा है  सुख-दुःख का नरेटिव: बुनियादी विकास से पिछड़ा औद्योगिक दृष्टिकोण | New India Times

स्थानीय राजनीतिक समीकरणों और समझौतों से बार बार विधायक बनने वाले दर्जनों नेता है जो लोगों के सुख दुःख में शामिल हो कर हमेशा जनता के संपर्क में रहते हैं। इन नेताओं का कार्यकर्ता- केडर सरकारी तिज़ोरी से जारी की जाने वाली सामाजिक न्याय की विकास योजनाओं के अमल से गांव कस्बों, देहातों, तांडों-बस्तियों में मिशनरी की तरह काम करता है। हर पांच साल बाद चुनाव आता है तब नेता जी मतदाताओं को उनके द्वारा जनता पर किए परोपकार को याद दिलाते हैं। गोदी मीडिया नेता जी को हिन्दू मुस्लिम एकता और जातीगत सद्भाव का सबसे बड़ा पैरोकार बनाकर पेश करता है। अभी तो पांच साल नेता जी अपनी पार्टी के धार्मिक और धार्मिक सेक्युलर ऐजेंडे के अनुसार सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को हवा देते रहते हैं।

मंत्रियों के निर्वाचन क्षेत्रों में जनता पर थोपा जा रहा है  सुख-दुःख का नरेटिव: बुनियादी विकास से पिछड़ा औद्योगिक दृष्टिकोण | New India Times

इन सब के बीच क्षेत्र के सर्वव्यापी आधुनिक विकास का दृष्टिकोण बड़ी चालाकी के साथ चुनावी कैंपेन से गायब कर दिया जाता है। एक दूसरे के सुख दुःख में शामिल होने की इंसानी भावना को जनता के ऊपर नरेटिव की तरह थोपा जाता है। सरकार के कई मंत्री, विपक्ष के पूर्व मंत्री उनके अपने निर्वाचन क्षेत्र में औद्योगिक विकास, IIT MIT अनुसंधान केंद्र, मेडिकल और एजुकेशन हब, सहकारी समितियों की मजबूती से किसानी में किए दूरगामी बदलावो और प्रति व्यक्ति आय पर बात हि नही करते। महाराष्ट्र में ऐसे दर्जनों निर्वाचन क्षेत्र है जिनका समग्र विकास करने में बीस-बीस, तीस-तीस सालों से प्रतिनिधित्व करने वाले मिशनरी छाप नेता सरासर नाकाम साबित हुए हैं।

मराठवाड़ा और विदर्भ में इस प्रकार की राजनीति का असर काफी कम है। पश्चिम महाराष्ट्र, मुंबई बेल्ट में केंद्रित कारखानों के चलते रोजगार के मुफीद अवसर होने से नेता सेवाभाव में राजनीतिक भविष्य तलाशने से बचते है। उत्तर महाराष्ट्र में इमोशनल राजनीत की जड़े इतनी मजबूत है कि इसके सहारे कार्यकर्ता से नेता बने लोकनेता आज हजारों करोड़ रुपए के मालिक है। इसी राजनीत का शिकार हजारों बेरोजगार रोजी-रोटी और बेहतर जिंदगी की तलाश में मुंबई और पश्चिम महाराष्ट्र का रुख कर रहे हैं।


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