मेहलक़ा इक़बाल अंसारी, ब्यूरो चीफ, बुरहानपुर (मप्र), NIT:
ताप्ती मेगा रिचार्ज, यह एक अपनी तरह की अनूठी परियोजना है, जो सतपुड़ा पर्वत और विंध्य के मध्य हाइड्रोलॉजिकल फॉल्ट से सतपुड़ा रेंज में एक विशाल भूूमिगत तालाब बनेगा, जिसका क्षेत्रफल 250 वर्ग किलोमीटर होगा। हमने वर्तमान युग के खेती व उद्योग में अंधाधुन्ध जल उपयोग कर भूमिगत जल को अत्यंत गहराई में नीचे ढकेल दिया है। जिससे भूमि में पानी कम होता गया। हर साल तेज़ी से जल स्तर गिर रहा है।
इस भूमिगत पानी को फिर से पानी से भरने के लिए मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र सरकार ने संयुक्त रूप से ताप्ती मेगा रिचार्ज परियोजना बनाई है। इस परियोजना की खूबी यह है कि इसमें किसी को विस्थापित नहीं किया जाएगा और न ही किसी तरह की भूमि अधिग्रहण की आवश्यकता होगी। ताप्ती मेगा वॉटर रिचार्ज को पूरा करने के लिए हमारी सरकारें पूरी कोशिश कर रही है। इससे न केवल किसानों को ही फ़ायदा होगा, बल्कि प्रकृति और सामाजिक दृष्टि से प्रत्येक क्षेत्र हेतु यह योजना जरूरी है। निश्चित रूप से हमारे सामुहिक प्रयासों के परिणाम स्वरूप यह परियोजना अब मूर्तरूप ले रही हैं।
यह बात विधायक एवं पूर्व कैबिनेट मंत्री श्रीमती अर्चना चिटनिस (दीदी) ने इंदौर में डेवलपमेंट फाउंडेशन, अभ्यास मंडल एवं इंडियन वॉटर वर्क्स एसोसिएशन द्वारा ताप्ती मेगा रिचार्ज परियोजना के प्रस्तुतिकरण दौरान कही। उन्होंने कहा कि ताप्ती नदी धरती पर सबसे पुरानी पहली नदी है। इसका वैज्ञानिक कारण भी है कि सतपुड़ा पर्वत हिमालय से पूर्व इस भुगोल पर प्रकट हुए थे। ताप्ती नदी प्राचीनकाल में सर्वाधिक पूज्य होकर श्रद्धा की प्रतीक रही है।
इस नदी में इस योजना के तहत जो जमीन के अंदर पानी भेजने का काम होगा उस पानी को यदि हम जमीन के ऊपर संग्रहित करेंगे तो 2 लाख हेक्टेयर भूमि की आवश्यकता होगी, जो कि इस ताप्ती मेगा रिचार्ज योजना (भूमिगत जल संग्रहण) के क्रियान्वयन से बच सकेंगी। इंजीनियर मुकेश चौहान ने ताप्ती घाटी वृहद भूजल पुनर्भरण योजना पर अपना प्रस्तुतीकरण देते हुए कहा कि विश्व की सबसे बड़ी ताप्ती नदी जल पुनर्भरण योजना में जमीन के अंदर वॉटर हार्वेस्टिंग में प्रदेश के सबसे जागरूक शहर इंदौर से 40 गुना ज्यादा पानी भूमि में समाया जा सकेंगा। इस योजना का क्रियान्वयन होने से नर्मदा नदी में भी पानी का स्तर बढ़ेगा। विश्व की सबसे बड़ी वाटर हार्वेस्टिंग की योजना को प्रस्तुत करते हुए इंजीनियर मुकेश चौहान ने बताया कि इस योजना को तैयार करने से पहले बहुत सारी कोशिश की गई।
इस योजना से मध्यप्रदेश के दो जिले खंडवा और बुरहानपुर लाभान्वित होंगे। इसके साथ ही महाराष्ट्र के चार जिले भी इससे लाभान्वित होंगे। केंद्रीय भूजल बोर्ड के द्वारा सबसे पहले 1995 में महाराष्ट्र के जलगांव के यावल में एक योजना लाई गई थी। इसके बाद में 1999 में इस पर स्टडी कराई गई। फिर वर्ष 2003-04 से इस योजना को नेपानगर विधायक होकर श्रीमती अर्चना चिटनिस ने शासकीय स्तर पर देश-प्रदेश की सरकारों तक ले जाने का बीड़ा उठाया। वर्ष 2014 में भारत सरकार के द्वारा एक कमेटी बनाई गई जिसे ताप्ती नदी क्षेत्र में भूजल संवर्धन के कार्य को स्टडी करने की जिम्मेदारी सौंपी गई। इस कमेटी के द्वारा 2016 में अपनी रिपोर्ट दी गई। इस योजना से दो राज्यों को लाभ मिलना है। ऐसे में महाराष्ट्र सरकार के द्वारा इस योजना के क्रियान्वयन के लिए डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार करवाई गई है।
चौहान ने बताया कि इस नदी के बेसिन में यदि हम बारिश के पानी के संग्रहण की योजना तैयार करते हैं तो कई मिलियन गैलन पानी को समुद्र में जाकर मिलने से रोक सकेंगे। बुरहानपुर क्षेत्र में जहां केले की खेती सबसे ज्यादा होती है वहां पानी की समस्या भी सबसे ज्यादा है। इस योजना के क्रियान्वयन से इस समस्या का काफी हद तक समाधान हो जाएगा। उन्होंने कहा कि इंदौर शहर के तीन लाख मकान का यदि पूरा पानी जमीन के अंदर भेज दिया जाए तो भी 18 एमसीएम पानी जमीन के अंदर जाता है। इस ताप्ती योजना से इससे 40 गुना पानी जमीन के अंदर जाएगा। सरकार द्वारा बनाए गए सरदार सरोवर बांध और इंदिरा सागर बांध में मिलाकर जितना पानी है उससे ज्यादा पानी ताप्ती नदी में है।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए महाराष्ट्र राज्य के पूर्व सूचना आयुक्त वी डी पाटील ने कहा कि इस प्रोजेक्ट की डीपीआर बनाने का काम वर्ष 2014 में शुरू किया गया था। महाराष्ट्र में तो अभी भी जमीन में 300 फीट के अंदर पानी आ जाता है लेकिन बुरहानपुर में यह पानी 700 फीट के बाद में आता है। यदि हम कहीं पर छोटा तालाब बनाकर पानी का संग्रहण करते हैं तो यह पाते हैं कि जब तालाब भरा जाता है तो उसका 30 दिन के अंदर वह अपनी जमीन के अंदर चला जाता है।
इस योजना को लेकर अब तक 52 बैठक हो चुकी है। लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के प्रमुख अभियंता के.के.सोनगरिया ने कहा कि यह योजना इस समय की मांग है। हम ज़मीन के अंदर से जितना पानी लेते हैं उतना पानी पुनर्भरण के माध्यम से ज़मीन के अंदर नहीं भेज पा रहे हैं। इस स्थिति का तकनीकी अध्ययन किया जाना चाहिए। बुरहानपुर एकमात्र ऐसा जिला है जहां पर सभी एक लाख घरों में नल से जल जाता है। यह जल जो जाता है वह भूजल वाला ही जल है इसे स्थाई सोर्स नहीं माना जा सकता है। बुरहानपुर में केले की खेती होने के कारण कई क्षेत्रों में जमीन में पानी 1500 फीट नीचे पहुंच गया है।
कार्यक्रम में वरिष्ठ समाजसेवी मुकुंद कुलकर्णी, इंदौर के सांसद शंकर लालवानी, नगर निगम के पूर्व सभापति अजय सिंह नरूका, पूर्व पार्षद सूरज केरो, इंदौर विकास प्राधिकरण के पूर्व उपाध्यक्ष हरिनारायण यादव, इंदौर नगर निगम के पूर्व आयुक्त सी बी सिंह, इंजीनियर अतुल सेठ, यूके जैन, जीएसआइटीएस के डायरेक्टर विजय रोडे उपस्थित थे।
कार्यक्रम के शुभारंभ के मौके पर अतिथियों के द्वारा इंजीनियर डे के अवसर पर स्व विश्वेश्वरय्या जी के चित्र पर माल्यार्पण किया गया। प्रारंभ में अतिथियों का स्वागत शफी शेख, रामेश्वर गुप्ता, नूर मोहम्मद कुरैशी, कमलेश पारे, वीएस सोलंकी ने दिया। संस्था का परिचय आलोक खरे ने दिया। कार्यक्रम का संचालन इंजीनियर कोमल प्रसाद और डॉक्टर संदीप नारुलकर ने किया। अंत में आभार प्रदर्शन रामेश्वर गुप्ता ने किया।
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