निष्पादन न्यायालय नहीं दिला सकता कोर्ट खर्च के 23 लाख ₹, म.प्र. हाईकोर्ट इंदौर की डिवीजन बेंच के इस त्रुटिपूर्ण आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगे डिक्री धारी के अधिवक्ता मनोज कुमार अग्रवाल | New India Times

मेहलक़ा इक़बाल अंसारी, ब्यूरो चीफ, बुरहानपुर (मप्र), NIT:

निष्पादन न्यायालय नहीं दिला सकता कोर्ट खर्च के 23 लाख ₹, म.प्र. हाईकोर्ट इंदौर की डिवीजन बेंच के इस त्रुटिपूर्ण आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगे डिक्री धारी के अधिवक्ता मनोज कुमार अग्रवाल | New India Times

टीवी के कई सीरियल्स की तर्ज़ पर पेचीदा केसेस की गुत्थी को कांटे को कांटे से निकालने की कहावत के आलोक में तर्क संगत ढंग से सुलझाने में माहिर हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट प्रैक्टिसिंग के एडवोकेट मनोज कुमार अग्रवाल का एक पेचीदा मामला सामने आया है। अधिवक्ता मनोज अधिवक्ता मनोज कुमार अग्रवाल ने बताया कि मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने अपने आप में एक महत्त्वपूर्ण मामले में दि. 23.08.2024 को सुनवाई के उपरांत रिज़र्व रख लिए गए आदेश को डिलीवर करते हुए याचिकाकर्ता/डिक्रीधारी की खर्च की राशि बढ़ाने की उनके अधिवक्ता मनोज कुमार अग्रवाल की दलील से असहमत होते हुए न केवल याचिका को निरस्त कर दिया बल्कि निर्णित- ऋणी केनरा बैंक की याचिका को मंज़ूर करते हुए, बैंक के विरूद्ध रु. 50,000/- खर्चा देने के जिला स्तरीय वाणिज्यिक न्यायालय के आदेश को भी निरस्त कर दिया। याचिकाकर्ता/डिक्रीधारी के अधिवक्ता श्री मनोज कुमार अग्रवाल ने कहा कि, उनके मतानुसार मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच का दि 23.8.2024 का आदेश पूरी तरह त्रुटिपूर्ण होकर, न केवल सर्वोच्च न्यायालय के सिद्धांत के विरुद्ध है बल्कि क़ानून के भी पूरी तरह विरुद्ध है।

डिक्रीधारी के अधिवक्ता मनोज कुमार अग्रवाल ने बताया कि उनके पक्षकार डिक्रीधारी के पक्ष में लगभग रु. 85 लाख की डिक्री पारित होने के उपरांत जब उन्होंने  डिक्री की उक्त राशि वसूली हेतु यह मामला इंदौर के निष्पादन न्यायालय में  प्रस्तुत किया तो निष्पादन न्यायालय में 4.5 साल में लगभग 115 से ज्यादा सुनवाई  होने के बाद केनरा बैंक की कुर्की के बाद उक्त राशि की वसूली हुई, किंतु इन 115 सुनवाई दिनांक की न्यायालय खर्चे के रूप में उनके द्वारा 23 लख रुपए की राशि मांगी गई थी जिसमें से जिला न्यायालय ने मात्र ₹ 50,000/- खर्च देने का आदेश पारित किया था, किंतु जब इस खर्च की राशि को बढ़ाने के लिए उनके द्वारा डिक्रीधारी की ओर से, मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय इंदौर में याचिका प्रस्तुत की गई तो मा. उच्च न्यायालय की डिवीजन बेंच इंदौर में न केवल डिक्रीधारी की राशि बढ़ाने की याचिका को खारिज कर दिया, बल्कि “जिला स्तरीय वाणिज्यिक न्यायालय” द्वारा उनके पक्ष में ₹ 50,000/-  खर्च की राशि देने के आदेश को भी निरस्त कर दिया। मा. मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की डिविजन बेंच (श्री जस्टिस विवेक रूसिया एवं श्री जस्टिस बिनोद कुमार द्विवेदी) के आदेश दि. 23.08.2024 को वे त्रुटि पूर्ण मानते हैं और इसके लिए उनके द्वारा उनके पक्षकार को मा. सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती देने की सलाह के उपरांत उनके द्वारा मा. हाईकोर्ट इंदौर की डिवीजन बेंच के उक्त आदेश दि. 23.08.2024 के विरुद्ध मा. सर्वोच्च न्यायालय में निकट भविष्य में चुनौती दी जा रही है।


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By nit

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