नरेन्द्र कुमार, ब्यूरो चीफ़, जलगांव (महाराष्ट्र), NIT:
NDA 1.0 के मुखिया नरेन्द्र मोदी जी द्वारा लिए गए फैसले के तहत सरकारी कर्मचारियों को सांस्कृतिक तर्ज़ पर संघ में शामिल होने की छूट दे दी गई है। महाराष्ट्र सरकार को भी इसी प्रकार का कोई निर्णय घोषित कर देना चाहिए जिस से राज्य सरकारी कर्मचारियों पर भारत के संविधान में निहित धर्म निरपेक्ष मूल्यों का कोई अंकुश न रहे। जलगांव जिला परिषद के ग्राम विकास और शिक्षा विभाग में कार्यरत ग्राम सेवक तथा शिक्षकों को खुले आम भगवा पार्टी के कार्यक्रमों में देखा जा रहा है फिर वो किसी पदाधिकारी के जन्म दिवस पर केक कटना ही क्यों न हो। कांग्रेस सरकारों के दौर में अगर ऐसा होता तो कर्मचारियों के आचरण को लेकर सेवा, शास्ती अनुशासन नियमों का हवाला दे कर उनके खिलाफ़ शिकायतों का अंबार लग जाता, निलंबन और तबादले तक हो जाते। लगातार पांच पांच, छह छह बार विधायक के रूप में चुने जाने वाले नेताओं के जीत में ज़िला परिषद के कर्मचारीयों का मैकेनिज्म संगठित तौर पर काम करता है।
महाराष्ट्र में सभी पार्टीयों के कुल 100 नेता ऐसे हैं जो इस मैकेनिज्म से चुनाव जीतते आ रहे हैं। गांव की ग्राम पंचायत के प्रशासनिक कामकाज को सरपंच और सरपंच के नेता के मन मुताबिक हांका जाता है। केंद्र और राज्य सरकार की सैकड़ों विकास योजनाओं से मिलने वाला करोड़ों रूपयों के फंड का पैसा वोटों की खेती सींचने में खाद का काम करता है। गांव कस्बों के सरकारी पाठशालाओं में शिक्षक विद्यार्थियों के अभिभावकों को सालभर राजनीतिक स्तर पर प्रबोधित करते रहते हैं। इस कर्तव्य कर्मठता के बदले में नेताजी कर्मचारियों को लंबी दूरी के तबादलों से बचाते हैं। शहरों की रिहायशी कॉलोनियों में ग्रेड 2 ग्रेड 3 के कर्मियों के करोड़ों रूपयों से बने आलीशान घरों को देख कर ” Give Vote Take Security and Money” सिस्टम का अंदाजा लगाया जा सकता है।
हिन्दी बेल्ट खास कर उत्तर प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में सांप्रदायिक राजनीती करने वाली विचारधारा को मज़बूत करने में सरकारी शिक्षकों का योगदान महत्वपूर्ण रहा है इसी मॉडल को महाराष्ट्र में चलाया जा रहा है। जलगांव जिला परिषद के अंतर्गत आने वाले श्रेणी 2, 3 के कर्मचारियों के रूटीन तबादलों का डेटा खंगालने पर पता चलता है कि 70% कर्मचारी पिछले 25 सालों से जिले के बाहर नहीं गए हैं अभी तो आरोग्य विभाग में कार्यरत कई TMOs सालों साल एक हि जगह की कुर्सी पर जमकर महीनों के लाखों रुपए कमाने में मशगूल हैं। किसी भी पार्टी की सरकार सत्ता में आए शासन और प्रशासन के भीतर अनुशासन को लेकर कर्मचारियों को प्रदान की जाने वाली छूट से भुगतना तो आखिर गरीब जनता को हि पड़ता है।
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