अशफाक कायमखानी, सीकर (राजस्थान), NIT; राजस्थान में सियासी तिकड़म के गिने चुने माहिरीन में से एक अश्क अली टांक बिना किसी स्थायी सियासी जमीन होने के बावजूद वो अपनी तीकड़म के बल पर अक्सर कही ना कही से विधान सभा का टिकट मारने में सफल हो ही जाते हैं। चाहे उन्हें उस चुनाव में हार का मजा ही क्यों ना चखना पड़े। चुरु व किसनपोल से चुनाव हारने के बावजूद वो राज्य सभा की टिकट पाने में सफल होकर उन सभी तीस मारखां को मुहं धोये रख कर सांसद बन कर दिल्ली में अपनी सियासत की कड़ी को वो मजबूती प्रदान की जो अगले कुछ सालों तक टूटती नजर नहीं आ रही है। उसी कड़ी के बलबूते पर श्री टांक की नजर अब पूरी तरह सीकर पर आकर टीक गई है।छात्र जीवन में तत्तकालीन दिग्गज कांग्रेस नेता पंडित नवल किशोर शर्मा के चहेते बनकर 1985 में राजीव गांधी लहर में फतेहपुर से टिकट का जुगाड़ कर उस समय के सीकर के जनाधार वाले लीडर रामदेव सिंह महरिया की मदद से चुनाव जीतकर खेल विभाग के उपमंत्री बनकर खूब खेलकूद करने का नतीजा यह हुवा कि अगले 1990 के चुनाव में उनका इस कदर टिकट कटा कि उनके साथ प्रदेश के अनेक मंत्री भी टिकट कटवाकर हक्के भक्के रह गये थे। लेकिन टिकट कटने से हिम्मत नहीं हारने वाले अश्क अली उसके बाद भी चुरु व जयपुर से विधानसभा की टिकट का जुगाड़ विपरीत हालत मे भी करके आज तक सियासत के मजबूत स्तंभ बने हुये हैं। चुरु व जयपुर चुनावों मे पाड़ नहीं पड़ी तो राज्य सभा के सदस्य का जुगाड़ बैठाकर 6 साल बतौर संसद सदस्य निकाल कर अब सीकर विधानसभा को उपयोगी मानकर यहां से भाग्य अजमाते नजर आने की सम्भावना मजबूत नजर आती दिख रही है। कांग्रेस के शीर्ष स्तर पर यह माना जा चुका है कि सीकर में कांग्रेस का विरोध ना होकर केवल उम्मीदवार राजेन्द्र पारीक के विरोध के चलते कांग्रेस यहां से हारती है। इसी धारणा के मजबूत होने के चलते सियासी हलके में पारीक का टिकट कटना लगभग तय माने जाने के बाद से टांक व उनके समर्थकों की सीकर में अचानक सक्रीयता आसमान छुने लगी है।
कुल मिलाकर यह है कि राजेन्द्र पारीक की टिकट कटने की पुख्ता होती सम्भावनाओं को समय पूर्व भांपते हुये अनेक लोगों के साथ-साथ अश्क अली टांक की नजरें भी अब जा कर सीकर पर टीक गई है।
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