विश्व प्रसिद्ध संत कमल किशोर नागर की भिंड में चल रही श्रीमद् भागवत कथा के चतुर्थ दिवस पर श्री कृष्ण का जन्मोत्सव मनाया गया | New India Times

अविनाश द्विवेदी, भिंड ( मप्र ), NIT; ​विश्व प्रसिद्ध संत कमल किशोर नागर की भिंड में चल रही श्रीमद् भागवत कथा के चतुर्थ दिवस पर श्री कृष्ण का जन्मोत्सव मनाया गया | New India Times
विश्व प्रसिद्ध संत कमल किशोर नागर की भिंड में चल रही श्रीमद् भागवत कथा के चतुर्थ दिवस आज शब्द ब्रह्म अथार्त श्री कृष्ण भगवान का जन्मोत्सव मनाया गया। अत्यंत हर्ष और उल्लास और संगीतमयी पावन पुनीत ध्वनियों के बीच मां यशोदा और पिता वसुदेव के सिर पर पुष्पों से सजी डलिया में बैठकर जब भगवान श्रीकृष्ण का बाल रूप कथा में अवतरित हुआ तो सभी हजारों श्रद्धालु आत्म विभोर होकर नाचने और गाने लगे।संत कमल किशोर नागर ने बाल रूप श्री कृष्ण के चरणों में नमन किया और साथ ही में दंदरौआ धाम के प्रसिद्ध संत महामंडलेश्वर रामदास महाराज जी ने भी भगवान के बाल स्वरूप का दर्शन किया। इससे पहले श्रीमद्भागवत कथा का वाचन करते हुए समाज सुधारक संत नागर जी महाराज ने कहा कि हर व्यक्ति इस भागवत रूपी परम पुरुषार्थ को करने में समर्थ हो। ईश्वर हमारे निकट है,लेकिन ब्रह्म ज्ञान न होने से उसे प्राणी जान नहीं पाता,प्रभु को भजते रहो और उसकी। प्राप्ति के पात्र बन जाओ तो भगवान स्वतः कभी भी आपके निकट आ ही जाएगा, अपनी छवि नही उसकी छवि बनाओ, उसी का प्रचार प्रसार करो, वो आपकी छवि खुद ही बना देगा, पुरुषार्थ करो। भजन करो और उसी प्रभु का चिंतन मनन करो। कर्म अवश्य करो। कर्म करते दाग लग जाए तो उपासना करो।​विश्व प्रसिद्ध संत कमल किशोर नागर की भिंड में चल रही श्रीमद् भागवत कथा के चतुर्थ दिवस पर श्री कृष्ण का जन्मोत्सव मनाया गया | New India Timesनागर जी ने आगे कहा कि अपनो को कपड़े देना कर्म और सर्दी में ठंड से सुकुड़ते गरीब को कम्बल देना सत्कर्म है, सेवा धर्म बहुत कठिन है। कर्म करने में स्वयम को दाग न लगने दो, और हर क्षण हर पल भज गोविन्दम भज गोविन्दं, गोविन्दं भज मूढ़मते । नागर जी ने कहा कि पृथ्वी का एक हिस्सा प्रभु का भजन कर रहा है और धरती पर एक हिस्सा तो मानने को ही तैयार नहीं के अयोध्या थी या राम थे। अपने आप पर भारतीय संस्कृति का रंग चढ़ाओ। धोती, चोटी, तिलक, माला और यज्ञोपवीत देव चिन्ह हैं। यह सब देव चिन्ह शरीर पर अवश्य धारण करें। यह सब हमारे अमिट निशान हैं। यह ईश्वर तक पहुंचने का पास टिकट है, पूजा पाठ करते समय देव चिन्ह धारण करें। इन चिन्हों से प्राणी ईश्वर का प्राणी दिखाई देता है। लगता हैं कि यह ईश्वर के यहां से आया है और ईश्वर के पास ही जाएगा। पवित्रता पावनता और सतीत्व के चिन्ह हैं। चूड़ी, मंगल सूत्र, विछुआ, सिंदूर, पायल, जिनके पास यह हैं। उसे उस नारी को कोई नजर उठाकर नहीं देख सकता। इसी प्रकार पुरुष भी यज्ञोपवीत, माला, तिलक, धोती और तिलक धारण करते हैं उनसे काल भी डरता है। देव चिन्ह धारण कर संस्कृति बचाओ। अपना, भेष, अपनी भाषा अपना भोजन और अपने मन्त्रों का मान रखो। सूट-सलवार के पहनावे का सख्त विरोध किया। तब आजादी से पहले झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की तलवार चली और अब बाजारों में सलवार का बोलबाला है। माताओं बहिनों का कुछ भी बिगाड़ना पर जोड़ी ना बिगाड़ना प्रभु पति पत्नी का नाता अजर अमर, आदि अनंत है। ठाकुर पूजा धर्म हमारा..काम न दुनियादारी से जीवन संवाद करके निकालो विवाद करके नहीं। 

बुढापे में माता पिता और बुजुर्गों का सम्मान करो, व्रद्धावस्था में मान सम्मान को चेष्टा ज्यादा रहती है, इसलिए उनको सम्मान दो। स्वाभिमान नष्ट होना शरीर पर आघात है, इसलिए कभी भी अपना स्वाभिमान नष्ट ना होने दे, संघर्ष ही जीवन है। बड़े आफिसर वहीं बने, जिन्होंने विद्यार्थी जीवन में संघर्ष किया, जिस देश में रहते हैं। उसके लिए भी नाम प्रभु का लो, देश की सीमा पर रक्षा कर रहे सैनिकों की सुरक्षा के लिए प्रभु का स्मरण करो। देश की सीमा, वहाँ पर डटा सैनिक आपकी भक्ति से समर्पण से सुरक्षित रहेगा।
कथा सुनने से ऋषि ऋण से मुक्ति मिलती है, इसी प्रकार मातृ पितृ ऋण को भी चुकाने का काम करें, भाग्य ने तो बहुत साथ दिया, भाग्य भजन से बना, भजन से लोग भाग्यवान हो गए और जिससे तुम भाग्यवान हुए। उसी भजन को फिर भजो, भजन से मनुष्य भाग्यवान बनता है। भाग्यवान को जीवन सार्थक करने के लिए भी भजन ही करना चाहिए, विषम परिस्थिति में दान पूण्य काम आता है, भजन में जो बाधक बन उसका त्याग करो, नागर जी ने श्रद्धालुओं से भीख मांगते हुए कहा कि कभी भी अपने माँ-पिता और सास ससुर को जबाब मत देना, अगर माता पिता को जबाब दे दिया तो वे फूंके हुए पंखे जले हुए वायर के समान हो जाते हैं माता पिता ।


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