बुलढाना महाराष्ट्र की फरियादिया ने शाहपुर थाना प्रभारी का शॉल, श्रीफल से किया स्वागत | New India Times

मेहलक़ा इक़बाल अंसारी, ब्यूरो चीफ, बुरहानपुर (मप्र), NIT:

बुलढाना महाराष्ट्र की फरियादिया ने शाहपुर थाना प्रभारी का शॉल, श्रीफल से किया स्वागत | New India Times

बात शाहपुर थाने की है। गत दो जुलाई को शाहपुर थाना क्षेत्र में महाराष्ट्र की एक महिला के साथ सनसनी ख़ेज़ लूट की घटना घटित हुई थी। बुलढाना जिले के ग्राम वरवट वकाल की श्रीमती अनुपमा गुड़गिला नामक एक महिला अपनी खाद बीज की दुकान का सामान  लेने बुरहानपुर अपने निजी वाहन से आईं थीं, जब रात्रि क़रीब 10 बजे वह अपने ड्राइवर गजानन और घरेलू महिला कर्मी के साथ वापस अपने गाँव जा रहीं थी तब करौली घाट पर दो अज्ञात  मोटर सायकल सवारों ने उनकी गाड़ी रोक कर पिस्तौल की नोक पर सोने की चेन और मंगलसूत्र छीन लिया था, जब रात दो बजे महिला घबराई हुई रिपोर्ट करने थाना शाहपुर आई तो शाहपुर थाना प्रभारी अखिलेश मिश्रा ने न केवल रिपोर्ट दर्ज की, बल्कि रोती हुई महिला से कहा कि आप चिंता मत करो आप हमारी बहन की तरह हो हम भाई की तरह आपकी मदद करेंगे।

घटना के बाद मात्र छः सात दिनों में ही शाहपुर पुलिस ने अज्ञात आरोपियों को महाराष्ट्र से पता लगाकर पकड़ लिया तथा महिला के ज़ेवरात बरामद कर लिए। घटना की प्रार्थिया श्रीमती अनुपमा को जब पता चला कि उनके ज़ेवरात बरामद हो गए हैं तो वे गदगद हो गईं। उन्होंने थाने पर आकर बोला कि टी आई शाहपुर ने सही में भाई की तरह मेरी मदद की। वे अपने गाँव से  अपनी 75 वर्षीया मां को लेकर थाने आई और थाना प्रभारी को शॉल, श्रीफल और मीठा भेंट किया। उन्होंने गाँव वाले गजानन महाराज की पादुका भेंट कर आभार व्यक्त किया। 75 साल की मां ने जब थाना प्रभारी को गले लगाकर आशीर्वाद दिया तो थाना प्रभारी भी भावुक हो गए और उन्होंने भी माताजी के चरण स्पर्श कर लिए, थाने मे घटित इस हृदयस्पर्शी  वाक़ये ने उपस्थित सभी लोगों की आंखें नम कर दीं।

सामान्य रूप से अपने रूखे व्यवहार के लिए पहचाने जाने वाली पुलिस का यह संवेदनशील रूप निश्चित तौर पर अनुकरणीय है। श्रीमती अनुपमा शाहपुर पुलिस की तारीफ़ करते नहीं थक रहीं थीं, उन्होंने कहा कि टी आई अखिलेश मिश्रा आज से उनके लिए पुलिस अधिकारी नहीं बल्कि हमेशा के लिये भाई बन गए हैं। उन्होंने श्री मिश्रा को सपरिवार घर आने का निमंत्रण दिया। जिसे उन्होंने स्वीकार करते हुए कहा कि जब भी समय मिलेगा वे बहन के हाथ का भोजन करने अवश्य आएँगे। भावनात्मक फ़िल्मी सीन की तरह घटित यह वाक़या बताता है कि संवेदना सबके भीतर होती है और सही अवसर पर वह व्यक्त भी होती है।


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