नरेन्द्र कुमार, ब्यूरो चीफ़, जलगांव (महाराष्ट्र), NIT:
किसी गिरोह के फर्जी होने की बात तब पता चलती है जब शिकायतो के आधार पर प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया मे हवाबाज खबरे चलती और छपती है। इन दिनों जलगांव जिले में फर्जी समाज सेवियों द्वारा सेवा के नाम पर की जा रही पैसों की उगाही की खबरों और ऑफ रेकॉर्ड मामलों ने जनता के बीच काफ़ी जगह बना ली है। गले में रिबन उसमें पहचान पत्र पिरोकर किसी पेशेवर कंपनी एंप्लॉयी की तरह संगठित रूप से सरकारी अधिकारी और व्यापारियों से मुखातिब होने वाले जाने पहचाने चेहरे किक फ़िल्म के सलमान की भूमिका को जी रहे है। फ़िल्म किक में नायक निस्वार्थ रूप से अनाथ बच्चों के इलाज़ और भविष्य के लिए रिस्क लेता है। लेकिन यहां झुंडी किरदारों की ओर से मासूम बच्चों की शिक्षा से जुड़ी ज़रूरतों को अपनी जेब गर्म करने के लिए बड़ी बेशर्मी से इस्तेमाल किया जा रहा है।
सालभर किसी न किसी बहाने सरकारी अधिकारी, व्यापारी वर्ग, ठेकेदारों और दो नंबरी लोगों से आर्थिक सहायता लूटने वाले तत्वों की इमेज उन अंधभक्त यंत्र मानव की श्रेणी में सूचीबद्ध हो चुकी है जो अपने नेता के इर्द गिर्द चमचागिरी करते हुए सिर्फ़ और सिर्फ़ खुद का स्वार्थ साधते हैं। मानव समाज को इन लोगों से उन्नति और दिशा निर्देशन में कोई लाभ नहीं है अभी तो हानी हि है। भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने तथा सरकारी कामकाज को जानने का अधिकार प्रदान करने वाले सूचना अधिकार कानून की नोक पर वसूली का यह सारा खेल चलाया जा रहा है। कई बार लेनदेन का यह मामला कर्मियों की ओर से फिजूल जवाबदेही को टालने के लिए भी स्वीकार कर लिया जाता है। सरकार को अपने प्रत्येक विभाग में दायर RTI और उस पर की जाने वाली कार्यवाही आवेदनों से जुड़ा डेटा सार्वजनिक करना चाहिए। जिला सूचना कार्यालय को ऐसी व्यवस्था बनानी चाहिए जिससे कि नकली पत्र विकारों का सत्यापन किया जा सके।
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