विवेक जैन, बागपत (यूपी), NIT:
इंसानियत को गौरवान्वित करने वाली प्रमुख समाज सेविका सोहनबीरी देवी को परोपकार के क्षेत्र में अतुलनीय योगदान के लिए नीरा अमृत सम्मान से सम्मानित किया गया। नीरा अमृत सम्मान समिति की ओर से प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ता व नेशनल अवार्डी विपुल जैन ने समाज सेविका सोहनबीरी देवी को शॉल, मोती की माला, पटका, पगड़ी पहनाकर, नीरा अमृत सम्मान का प्रतीक चिन्ह व उपहार भेंट कर सम्मानित किया। नीरा अमृत सम्मान धार्मिक, शैक्षिक, सामाजिक आदि विभिन्न मानवता भलाई और परोपकार के क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान करने वाली महान शख्सियतों को प्रदान किया जाता है।
सम्मान समारोह के आयोजनकर्त्ता डाक्टर हिमांशु शर्मा ने बताया कि सोहनबीरी देवी महिला सशक्तिकरण का अनुपम उदाहरण है। उनका जन्म वर्ष 1950 में जनपद बागपत के गांव ढ़िकौली में हुआ। यह 4 बहन और 3 भाईयों में दूसरे नम्बर की है। इनकी माता चन्द्री और पिता गुद्दड़ भी परोपकारी प्रवृत्ति के थे। सोहनबीरी देवी जब 2 वर्ष की थी, उस समय इनकी बुआ इनके माता-पिता की सहमति से इनको मीरपुर गांव में ले गयी और इनकी परवरीश की। बाद में सोहनबीरी देवी ने आठवीं तक की शिक्षा ढ़िकौली रहते हुए खेकड़ा से प्राप्त की। 19 मई वर्ष 1967 को शनिवार के दिन इनका विवाह जनपद बागपत के मऊ उर्फ मवी खुर्द गांव के निवासी सूरजमल जी और इंद्रावती जी के पुत्र मास्टर उदयभान जी से हुआ। मास्टर उदयभान जी बिजवाड़ा के इंटर कॉलिज में शिक्षक थे।
डा हिमांशु शर्मा ने बताया कि सोहनबीरी देवी द्वारा वर्ष 1967 से वर्ष 1988 तक की गयी अपनी सास की निस्वार्थ सेवा की जितनी प्रशंसा की जाये उतनी कम है। वह आज की पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। सोहनबीरी देवी के दो पुत्र व दो पुत्रियां है। सबसे बड़ी पुत्री ब्रिजेश ने डबल एमए किया है और वह अमेरिका में रहती है। दूसरे नम्बर पर इनके पुत्र अजीत सिंह ने बीएससी की शिक्षा प्राप्त की है और वह भी अमेरिका में रहते है। तीसरे नम्बर पर इनकी पुत्री राकेश ने एमएससी और बीएड़ किया है और वह भी अमेरिका में रहती है।
इनके चौथे पुत्र मंजीत सिंह ने एमएससी और एमसीए किया है और वह मेरठ के जाने-माने प्रापर्टी डीलर है। सोहनबीरी देवी अब तक 7 विदेश यात्राएं कर चुकी है। सोहनबीरी देवी बचपन में होश संभालने के बाद से अब तक वह अनगिनत लोगों की निस्वार्थ भाव से सहायता कर चुकी है, जिसमें उनके पति मास्टर उदयभान जी उनका कदम से कदम मिलाकर साथ देते है और इनके बच्चे भी अपने माता-पिता के नक्शे कद्मों पर चलते हुए परोपकार के कार्यो में लगे हुए है और समाज की भलाई में महत्वपूर्ण योगदान करते है।
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