अशफ़ाक़ क़ायमखानी, ब्यूरो चीफ, जयपुर (राजस्थान), NIT:
हमेशा की तरह अपने ही दल में मोजूद अन्य धड़े के उम्मीदवारों को चालाकी से निपटाने मे माहिर पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत इस दफा किसी को निपटाने में कामयाब नहीं हो पाये लेकिन उनके जीत का अंतर जरूर करने में कामयाब रहे। इसके साथ ही गहलोत अपने बेटे वैभव गहलोत की जालोर-सिरोही से हार को भी नहीं बचा पाये। इन सब को देखते हुये लगता है कि राजस्थान की राजनीति में गहलोत अध्याय खातमे की तरफ चलने लगा है।
हालांकि गहलोत के मुख्यमंत्री रहते 2003, 2013, व 2023 में हुये विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को सत्ता से बाहर होना पड़ा वही पहले परशराम मदेरणा फिर सीपी जोशी व 2018 के चुनाव में सचिन पायलट ने नाम पर विधानसभा चुनाव होने पर कांग्रेस को मिली जीत पर दिल्ली सेटिंग्स के बल पर अशोक गहलोत मुख्यमंत्री ज़रूर बन गये। पर वो सरकार रिपीट नहीं कर पाये।
कल आये लोकसभा परिणाम पर नज़र दौड़ाये तो देखते हैं कि कांग्रेस के जीते आठ सांसद सचिन पायलट समर्थक है। जिनकी पैरवी पायलट ने की थी। जबकि गहलोत समर्थक सभी उम्मीदवार गच्चा खा गये। इण्डिया गठबंधन के अन्य घटकों के जीते कामरेड अमरा राम, हनुमान बेनीवाल व राजकुमार रोत भी सचिन पायलट के करीबी है। इनके लिये चुनाव में पायलट ने कड़ी मेहनत की है। गुर्जर बिरादरी ने सचिन पायलट को नेता मानते हुये उनके इशारे पर इण्डिया गठबंधन उम्मीदवारों के पक्ष में भारी मतदान किया। जबकि माली समुदाय अशोक गहलोत को नेता तो मानते हैं। लेकिन उन्होंने भाजपा उम्मीदवारों के पक्ष में भारी मतदान किया। जिसके कारण इण्डिया गठबंधन उम्मीदवारों के जीत का अंतर कम ज़रूर हुआ पर वो जीत गये।
झूंझुनू, चूरु, सीकर, बाडमेर, दौसा व नागौर सहित अन्य जगह के परिणाम व बूथों के मतदान पर नज़र दोड़ाये तो स्थिति साफ हो जाती है। इसी तरह गहलोत के पूत्र वैभव सहित अन्य उनके समर्थक उम्मीदवारों के पक्ष में सचिन पायलट द्वारा सभा ना करने से गठबंधन को नुकसान हुवा। गठबंधन के सीकर से जीते माकपा उम्मीदवार कामरेड अमरा राम व नागौर से रालोपा के जीते उम्मीदवार हनुमान बेनीवाल का सड़क से लेकर संसद तक संघर्ष व जनहित में आवाज़ उठाने की उम्मीद राजस्थान की जनता के दिलों में है।
कुल मिलाकर यह है कि खाते सीज होने व मीडिया सहित अन्य साधनों से भाजपा को बढ़ा-चढ़ाकर पैश करने के बावजूद कांग्रेस ने राज्य में अच्छा चुनाव लड़ा। कांग्रेस ने कृषि आधारित बिरादरियों के साथ एससी एटी व अल्पसंख्यक मतदाताओं को फिर से अपने पक्ष में इकट्ठा करके खोया वोटबैंक बनाया है। आगामी दिनों में राज्य की राजनीति में पायलट का दबदबा बढ़ेगा ओर गहलोत का प्रभाव कम होता चला जायेगा।
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