अरशद आब्दी / सूरज कुमार, झांसी (यूपी), NIT;
“चेहल्लुम-ए-शोहादा-ए-कर्बला” के ग़मगीन अवसर पर ‘अंजुमन-ए-अलविया’ के तत्वाधान में ‘इमाम बारगाह –नूर मंज़िल’ दरीगरान में अंतिम मजलिसे अज़ा हुई। जिसमें सैकड़ों शोकाकुल श्रृध्दालुओं ने शिरकत की।मर्सियाख्वानी में इं0 काज़िम रज़ा, साहबे आलम, हाजी तक़ी हसन और साथियों ने “ आज है चालीसवां हज़रते शब्बीर का- तशनादहन कुश्ता-ए-ख़ंजरो तक़दीर का” मर्सिया पढा।संचालन करते हुऐ सैयद शहनशाह हैदर आब्दी ने कहा,” हमारे मज़हब ने मुल्क से मुहब्बत को ईमान की निशानी बताया है। अत: यह हमारी न केवल सामाजिक बल्कि धार्मिक ज़िम्मेदारी भी बन जाती है कि हम धार्मिक आयोजनों में भी ऐसे कार्यों को प्राथमिकता दें जिनसे आपसी प्रेम और विश्वास बढे साथ ही देश और समाज का भी भला हो।तदोपरांत सेथल से विशेष निमंत्रण से पधारे मौलाना सैय्यद इक्तिदार अली “फ़राज़” वास्ती साहब ने कहा,” इमाम हुसैन ने करबला के मैदान में मज़हब, इंसानियत, इंसाफ, सब्र, क़ुर्बानी, अमन, मोहब्बत और आपसी यक़ीन की नई तारीख़ लिखी I नौ जवानो तुम देश और समाज का मुस्तक़बिल हो इसलिये याद रखो “नारा-ए-हुसैनी –या हुसैन “ केवल एक नारा नही है I बल्कि इसके पीछे इंसानियत, इंसाफ, सब्र, क़ुर्बानी, अमन, मोहब्बत और आपसी यक़ीन की पूरी दास्तान है, भूखों और प्यासों की मदद का पैगाम है I I इस पर अमल कर देश और समाज का भला करो और इंसानियत की राह में अपना निशान छोड़ो I यही सच्चा नज़राना-ए-अक़ीदत है इमाम हुसैन की शान में I इसके पश्चात मौलाना साहब ने करबला में इमाम ज़ैनुल आबेदीन और बीबी ज़ैनब अलैहिस्सलाम और आले रसूल पर हुऐ बर्बरता पूर्ण अत्याचार का वर्णन किया Iजिसे सुनकर अज़दारों की आंखों से बेसाख़ता आंसू निकल पड़े। इसी ग़मगीन माहौल में “गम है सकीना को यह अब्बास का, नहर से अबतक नहीं आये चचा ।“ की मातमी सदाओं के साथ नौहा-ओ-मातम हुआ I अंजुमने अब्बासिया, अनजुमने अकबरिया, हुसैनी ग्रुप, अंजुमने हुसैनी और अंजुमने सदाये हुसैनी के मातम दारों ने किया।
अध्यक्षीय भाषण में मौलाना सैयद शाने हैदर ज़ैदी इस प्रकार शिक्षाप्रद और प्रेरणास्पद कार्यक्रमों के आयोजनों देश और समाज के उत्थान के लिये आवश्यक बताया । अंत में श्री तक़ी हसन ने प्रेस, प्रशासन, पुलिस, सहयोगी अंजुमनों और अज़ादारों का आभार ज्ञापित किया और मौलाना साहब ने समस्त विश्व के कल्याण के लिये प्रार्थना की और अज़ादारों ने “आमीन” कहा I इस अवसर पर सर्व श्री हाजी सईद साहब, सग़ीर मेंहदी, ताज अब्बास, अता अब्बास, मोहम्मद अब्बास, हाजी कैप्टन सज्जाद अली, वीरेन्द्र अग्रवाल, रईस अब्बास, सरकार हैदर” चन्दा भाई”, नज़र हैदर “फाईक़ भाई”, आरिफ गुलरेज़, नजमुल हसन, ज़ाहिद मिर्ज़ा, मज़ाहिर हुसैन, आलिम हुसैन, ताहिर हुसैन, ज़ामिन अब्बास, राहत हुसैन, ज़मीर अब्बास, आबिस रज़ा, सलमान हैदर, अली जाफर, अली क़मर, फुर्क़ान हैदर, निसार हैदर “ज़िया”, मज़ाहिर हुसैन, आरिफ रज़ा, इरशाद रज़ा, असहाबे पंजतन, जाफर नवाब, काज़िम जाफर, वसी हैदर, नाज़िम जाफर, नक़ी हैदर, जावेद अली, क़मर हैदर, शाहरुख़, ज़ामिन अब्बास, ज़ाहिद हुसैन” “इंतज़ार”, अख़्तर हुसैन, नईमुद्दीन, मुख़्तार अली, ज़ीशान हैदर के साथ बडी संख्या में इमाम हुसैन के अन्य धर्मावलम्बी अज़ादार और शिया मुस्लिम महिलाऐं बच्चे और पुरुष काले लिबास में उपस्थित रहे।
“रोयें न क्यूंकर ग़ुलाम- हो गया चेहल्लुम तमाम “ की गमगीन सदाओं के साथ चेहल्लुम के चार दिवसीय कार्य क्रम का समापन हो गया I
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