रहीम शेरानी हिन्दुस्तानी, ब्यूरो चीफ, झाबुआ (मप्र), NIT:
रमजान का पवित्र मुकद्दस महीना 12 तारीख दिन मंगलवार से शुरू हुआ है 6 अप्रैल को बड़ा रोजा शबे कद्र के साथ संभवतः 10 अप्रैल को ईद की मिठास के साथ पूरा होगा ईद-उल-फितर की नमाज के साथ ही अमन,चेन भाईचारा का संदेश समाज की ओर से दिया जाएगा।
माहे रमजान माह की आखिर अशरे में शहरों में एक अच्छा माहौल नजर आने लगा है
मेघनगर के आलिम जनाब जुनैद साहब ने बताया की पूरे माह रोजों का एहतमाम किया जाता है। रोजे के मायने भूखे प्यासे रहना नहीं है बल्कि गुनाहों से खुद का बचाव भी है। नूरे मोहम्मदी मस्जिद, के हाफ़िज़ जनाब रिजवान सहाब, मरकज़ मस्ज़िद मेघनगर (झाबुआ) के हाफ़िज़ जनाब मोहसिन पटेल सहाब, जनाब सलमान दुर्वेश सहाब ने बताया की इस माह मस्जिदों में भीड़ तो बढ़ती ही है लेकिन आखिर अशरे में भीड़ बढ़ने के साथ साथ लोग इबादतों की खासतौर पर पाबंदी करते हैं।
तरावीह का पड़ना सुन्नत है
मौलाना सलमान के मुताबिक तरावीह के मामले में यह ख़्याल रखने की बात है की ये दो सुन्नतें अलग-अलग हैं। तमाम कलामुल्लाह शरीफ़ का तरावीह में पढ़ना या सुनना यह मुस्तकिल सुन्नत है और पूरे रमजान शरीफ़ की तरावीह मुस्तकिल सुन्नत है। तरावीह के पड़ने को कयामुल्लेल भी कहा गया है इसलिए भी तरावीह की नामाज़ का पड़ना मुस्तक़िल सुन्नत है।
रमज़ान में चार चीज़ों की कसरत रखें
नबी सल्ल. ने फरमाया की चार चीज़ों की इसमें कसरत रखा करो, जिन में से दो चीजें अल्लाह तआला की रजा के वास्ते और दो चीजें ऐसी हैं कि जिन से तुम्हें चारा-ए-कार नहीं। पहली दो चीजें जिन से तुम अपने रब को राजी करो, वह कलमा-ए-तय्यिबा और इस्तगफ़ार की कसरत है। और दूसरी दो चीजें यह हैं कि जन्नत की तलब करो और आग से पनाह मांगों। जो शख़्स किसी रोजेदारों को पानी पिलाए, हक तआला (कयामत के दिन) मेरी हौज़ से उस को ऐसा पानी पिलायेंगे जिस के बाद जन्नत में दाखिल होने तक प्यास नहीं लगेगी।
एतिकाफ की फ़ज़ीलत मोतकिफ़ के लिए
मौलाना जनाब हाफ़िज़ मोहसिन पटेल के मुताबिक एतिकाफ़ कहते हैं, मस्जिद में 10 दिन के लिए एतिकाफ़ की नीयत कर के ठहरने को। जो हज़रात एतिकाफ में मस्ज़िद में बैठता है उसे मोतकिफ़ कहते हैं साथ ही हनफ़ीया के नजदीक इस की तीन किस्में हैं दूसरी किस्म, सुन्नत है जो रमजानुल मुबारक के अख़ीर अशरे की है कि नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की आदते शरीफ़ा इन अय्याम’ के एतिकाफ़ फ़रमाने की थी।
• इब्ने क़य्यिम रह० कहते हैं कि एतिकाफ़ का मक़्सूद और उसकी रूह दिल को अल्लाह की पाक जात के साथ वाबस्ता कर लेना है, कि सब तरफ से हट कर उसी के साथ मुजतमा हो जाये और सारी मशगुलियों के बदले में उसी की पाक जात में मशगुल हो जाएं।
जुम्मतुल बिदा की तिन खुशुसियते हैं इसमे
• पहली नबी सल्लल्लाहो अलय वसल्लम ने जुमे के दिन को सय्यदुल अय्याम यानी दिनों का सरदार करार दिया है
• दूसरी ये की जुम्मा के दिन के इस रमज़ान को जिसे सय्यदुशुहुर करार दिया है यानि सारे महीनों का सरदार है इसलिए रमज़ान के इस आखिर जुम्मे की खुशुसियत बढ़ जाती है ।
• तीसरी ये की ये रमज़ान का आखिर जुम्मा है जो अगले रमज़ान तक नही आएगा इसलिए चाहिए कि इसमें खूब इबादतें करें अल विदाई जुम्मा है अब रमज़ान में रोज़ रहमतें हैं बरकतें हैं मगफिरतें हैं रमज़ान का आखिर जुम्मा है, हो सके तो ये जुम्मा अल्लाह के घर में गुजारे, कुरान की तिलावत में गुजारे, उस रब से लो लगाने में गुजारे, दुरूद पड़ने में गुजारे, हो सके तो आंसू बहाने में गुजारे अल्लाह से माफी मांगने में गुजारे मुल्क में अमन चैन की दुआ मांगने में गुजारे इसलिए कि अब रमज़ान बिदा होने को है आते साल का रमजान नशीब हो या न हो।
मुफ़्ती सलीम साहब इमामे मरकज़ झाबुआ
शबेक़द्र को रमजान के अख़ीर अशरे की ताक रातों में तलाश किया करो
हजरत आइशा रजियल्लाहु तआला अन्हा नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से नकल फ़र्माती हैं कि लैलतुल क़द्र को रमजान के अख़ीर अशरे’ की ताक रातों में तलाश किया करो। जम्हूर उलमा के नजदीक अख़ीर अशरा इक्कीसवीं रात से शुरू होता है। आम है महीना 29 का हो या 30 का, इस हिसाब से हदीसे बाला के मुताबिक शबे क़द्र की तलाश 21, 23, 25, 27, 29 की रातों में करना चाहिए।
फजीलत: हज़रत अय्युब अलैहिस्सलाम, हज़रत जकरिया अलै. युसैअ अलै., हज़रत हिज़्किल अलै., ने 80 बरस तक उस खुदा की याद से गाफिल नहीं हुए इस उम्मते मोहम्मदिया पर अल्लाह ने रहम फरमाकर शबे कदर जैसी रात अता फरमाइ जिसके मिलने का सवाब 833 बरस चार माह कामिल दिन इबादतों के साथ गुजार दिए हो।
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