झाँसी नगर अज़ाखान ए अबुतालिब मोहल्ला मेवातीपुरा में 18 बनी हाशिम के प्रोग्राम का आयोजन किया गया, जिसमें हदीसे किसा से आगाज़ आली जानाब इंतेज़ार हुसैन सहाब ने किया एवं हिंदुस्तान के मशहूर व मारूफ़ निज़ामतकार आदिल मोहम्मदपुरी ने की और मौला के अजादारों को पुरसुकून अंदाज़ में मदहे एहलेबैत का ज़िक्र करते हुए अपने अशआरों से मोमिनों का दिल जीत लिया, वही मर्सिया खुआनी बुलबुले हिन्द हसन अली साहब मुज़फ्फर नगरी ने जानाबे सकीना की शहादत पर अपने बाबा हुज़ूर के नवासे पर जो कर्बला में ज़ुल्म ढाए गए उनको बयान करते हुए हुज़ूर को अश्कों से नज़रानाए अक़ीदत पेश की एवं पेश खुआनी हिंदुस्तान के मशहूर डाॅक्टर जानाब नायाब हल्लोरी साहब ने मदहे एहलेबैत में अपने अशआरों से सामाईनो का दिल जीत लिया। वही मौजूद मजालिस में रसूल के नवासों के चाहने वालों ने अली अली के नारों से अज़ाख़ने अबुतालिब गूंज उठा। हिन्दुस्तान के साथ साथ साउथ अफ्रीका से आए मुफ़स्सिरे तारीख़े कर्बला अल्लामा आसिफ़ रज़ा नक़वी साहब ने मिम्बर अफ़रोज़ होकर हुज़ूर स,व,स,की उम्मत पर रौशनी डालते हुए बताया कि हम अमन पसंद इंसान हैं और हमको रसूल और उनके एहलेबैत और क़ुरआन शरीफ़ के बताए रास्ते पर चलना है जो कि हक़ है एवं कर्बला में हक़ और बातिल की जंग थी जिसमें कर्बला की सर ज़मीन पर रसूल के चहेते नवासे हुसैन इब्ने अली ने अपना पूरा भरा घर हक़ पर कुर्बान कर दिया जिसमें एक नन्ना छ:महीने का सशमः जनाबे अली असगर और चार साल की नन्नी बाली सकीना को एक बूंद पानी नहीं दिया गया। जनाबे अली अकबर जिनको शबिहे रसूल कहा जाता था और जानाबे अब्बास अलंबरदार जो के इमामे हुसैन के लशकर के अलमदार थे, जब मौला अब्बास जंग को गए तो हज़ारों मलऊनों को वाइसे जहन्नम किया। आख़िरकार एक ऐसा वक्त भी आया जब मौला अब्बास घोड़े से ज़मीन पर गिरे एक ज़ालिम ने मौला अब्बास के सरे मुबारक़ पर एक गुर्ज मारा जिससे मौला अब्बास अपने अस्फे बफादार घोड़े से बाज़ू कटे हुए ज़मीन पर गिरे, एक आंख में तीर था और बाज़ू कटे हुए थे तभी मौला अब्बास ने एक आवाज़ इस्तिगज़ा बुलंद की अस्सलामो अलैका या अबा अब दिल्ला अस्सलामो अलैका यबना रसूल लुल्ला जब शहादते आखिर में जब कोई न रहा तब इमामे हुसैन कर्बला की जलती ज़मीन पर जंग को निकले, लाखों के लश्कर को मिस्मार करते हुए आगे बढे तभी आवाज़ आई बस हुसैन बस ए हुसैन तुम्हारे सब्र का इम्तहान है “इन्नल्लाहा माअस साबरीन” यह सुनते ही हुसैन रुके भागी हुई फौजे वापस पलटी तो किसी ने रसूल के चहिते नवासे को भला मारा किसी ने नेज़ो से वार किया अली का बेटा फ़ातिमा के आँखों का नूर खून में लतपत भूक पियास कर्बला की तप्ती ज़मीन पर तीरों के ऊपर जिसको कहा जाए कि न हुसैन का जनाज़ा ज़मीन पर था और न आसमान पर बल्कि जब हुसैन अपने अस्फे बफादार ज़ुल्जनाः से ज़मीन पर गिरे तो उनका जनाज़ा तीरों पर था। यज़ीद को फिर भी सुकून नहीं आया और रसूल के नवासे हुसैन इब्ने अली के गले पर कुन्द खजर फेरना शुरू किया। जब यज़ीद हुसैन के गले पर खंजर चलता था तब हुसैन कहते थे बाबा अली मेरी चार साल की सकीना के कानों से बालियां छीनी जाएगी, तमांचे मारे जायेंगे। बाद शहादत इमामे हुसैन रसूल के नवासे हुसैन जब हुसैन शाहिद हो चुके, 18 बानी हाशिम हो चुकी तब यज़ीदी फौज ने इमामे हुसैन कीे नन्नी बच्ची जो कि चार साल की थी उनको अपने बाबा हुसैन पर रोने तक नहीं दिया, जब सकीना अपने बाबा हुसैन को याद करके रोती थी तब यज़ीदी हुसैन की नन्नी बेटी को तमाचे मरते थे। कानों से बालियां छीन ली, जिससे नन्नी सकीना के नन्ने नन्ने कानों से खून जारी हो गया और उनकी सरों से चादरें छीनी गई और उनके घराने की औरतों को शाम के बाज़ार में गली व कूचा घुमाया गया। कर्बला में रसूल के घराने को फ़तिमा के घराने को बिना पानी के शहीद कर दिया गया, बाद इन मसायब को सुनकर मौजूद लोगों में गिराओ ज़ारी होने लगी। वही बाद मजालिस 18 बनी हाशिम मसाएब तक़रीर हिंदुस्तान के मशहूर व मारूफ़ ख़ातिबे मवद्दत मौलाना इंतिख़ाब अलाम साहब कानपुरी ने 18 बनी हाशिम ताबूत की तक़रीर के साथ साथ उनकी शहादत की तफसील के साथ ताबूत बरामद कारके मौजूद लोगों को बताया कि आने वाला ताबूत किस का है और ज़ियारत कराई जिसमें मौजूद लोगों ने ज़ियारत के साथ अपने अश्कों हुज़ूर के घराने पे ढाए हुए ज़ुल्म पर नज़राना पेश किया। वहीं बाद ज़ियारत 18 बनी हाशिम के नौहा खुआनी बरीदे अज़ा वसीम मंगलौरी हरदुआर से आए जिन्होंने अपनी दर्द भरी आवाज़ से नौहा खुआनी करते हुए कर्बला में ज़ुल्मों सितम पर मातम ज़नी कराई, वहीं दूसरी तरफ जानाब काज़िम ज़ैदी साहब मध्य प्रदेश के दतिया से आए, उन्होंने नौहा खुआनी करते हुए मातमी दस्ता अंजुमने सदाए हुसैनी के एवं दतिया की अनुमान मातमी दस्ते ने मातम ज़नी करते हुए हुज़ूर के नवासे हुसैन इब्ने अली को इस अज़ीम शहादत पर मातम ज़नी करके और अश्कों से नज़रानए अक़ीदत पेश की। बाद नौहा खुआनी के क़ुरा अंदाज़ी हुई जिसमें जावरा शरीफ़ जोगिरामपुरा एवं कर्बला की ज़ियारत की पर्चियाँ डाली गई जिसमें जोगिरामपुरा की क़ुरा ज़ाहिद रज़ा आब्दी को एवं जावरा शरीफ़ की क़ुरा एक बच्ची को निकला, अतः कर्बला की ज़ियारत का शरफ़ मरहूम एहसान आहाब की हलिया कर्बला की पाक सर ज़मी जाने का शरफ़ हासिल हुआ।
इस क़ुराअंदाज़ी का ज़ेर अल्हाज अली नवाब साहब ख़ातिबे मिम्बर ज़ाकिरे एहलेबैत नावेद हैदर आब्दी एवं उनके सहयोगी ने किया। क़ुरा अंदाज़ी के ज़ेल फ़राइज़ जाकीरे एहलेबैत नावेद हैदर के फ़रज़न्द बेटे जो कि 08 माह के है और कर्बला के जायर रह चके है क़ुरा अंदाज़ी नावेद करबलाई के सफ़ज़न्द ने की जिसमें मौजूद बाँदा से आए पी ,एन, एन, न्यूज़ ग़ज़नफर अली साहब मौजूद रहे एवं फ़ायक साहब शाहिद रज़ा आब्दी, इरशाद रज़ा आब्दी, गुलफ़ाम रज़ा आब्दी, काशिफ़ रज़ा आब्दी, नदीम ज़ैदी, वकार नक़वी, शादाब मेंहदी, अली मिया ज़हूर मेंहदी, शाहूर मेंहदी, दिलशाद हैदर, शान हैदर, शेरू साहब, अतहार समर आब्दी, राहत आब्दी, रफ़ी आब्दी, समर आब्दी, आस्कर अली आब्दी, वासिफ अली आब्दी, नक़ी अली आब्दी, मोहोम्मद हसनैन हैदर अली आब्दी अब्बास ज़ैदी, वसीम ज़ैदी, नज़र अब्बास चाँद मियां साहब, शेरिफ साहब, शबलु साहब, मूसा रज़ा, जाफर नवाब सहाब, जुल्फिकार साहब, फ़िरोज़ साहब, सरवर साहब, बकार साहब, ज़मीन साहब, साहिबे आलम, नौहा खा शहीम साहब, नौहा खा सानू साहब, नौहा खा शाकिर साहब, सग़ीर साहब, ताज आब्दी, तकिउल साहब, राजू अली वाले, नईमुद्दीन राजू आब्दी, लाला भाई साहब, आलम साहब, नदीम हैदर साह पत्रकार सुल्तान आब्दी, क़मर अब्दी, फुरकान हैदर, बनिए अंजुमन सदाए हुसैनी रौशन आब्दी साहब, सलीस आब्दी साहब, मनाज़िर साहब, ग़ज़नफर साहब, लड्डन साहब, मऊरानीपुर से सुख़नवर अली, नादिर अली एवं मुक़ामी और बेरूनी और दूसरे शहरों से आए लोगों ने इस 18 बनी हाशिम के ताबूतों की ज़ियारत की। बाद ज़ियतर नज़रे ईमाम का एहतिमाम किया गया।