आचार संहिता घोषित होने के बाद भी नहीं सुधरा प्रशासन का आचरण, क्या नियम का हवाला देकर नहीं मिटाया जाएगा दीवारों पर उकेरा हुआ कमल? कई शहरों में शुरू की जा चुकी है पुताई मुहिम | New India Times

नरेन्द्र कुमार, ब्यूरो चीफ़, जलगांव (महाराष्ट्र), NIT:

आचार संहिता घोषित होने के बाद भी नहीं सुधरा प्रशासन का आचरण, क्या नियम का हवाला देकर नहीं मिटाया जाएगा दीवारों पर उकेरा हुआ कमल? कई शहरों में शुरू की जा चुकी है पुताई मुहिम | New India Times

18वीं लोकसभा के चुनाव सात चरणों में घोषित किए जा चुके हैं चुनाव आयोग द्वारा पुरे भारत में आदर्श आचार संहिता लागू कर दी गई है। भाजपा की ओर से कुछ महीनों पहले किए गए दीवार लेखन से सारा मुल्क 1990 के उस दौर में चला गया है जहां राजनैतिक दल प्रचार के लिए दर्शनी इलाकों की दीवारों को नारों और छापों से पोत दिया करते थे। आचार संहिता लागू होने के बाद महाराष्ट्र में स्थानीय प्रशासन ने सार्वजनिक जगहों तथा निजी संपत्तियों पर रंगों से उकेरे हुए कमल छाप निशान, स्लोगन को मिटाने का काम शुरू कर दिया है। दीवारों पर छापे गए विज्ञापनों की सफाई का यह काम कहीं तेज तो कहीं धीमा और कहीं पर ठप है। जिन नगरों में भाजपा का प्रभाव है वहा निकायों के अधिकारियों को इस मुहिम के कार्यपालन को लेकर साप सुंग गया है। हम जलगांव की बात करेंगे यहां महानगर समेत जिले के सभी मुख्य शहरों की निजी और सार्वजनिक इमारतों को अपनी संपत्ति समझकर ” फिर एक बार मोदी सरकार ” के नारे से रंग दिया गया है। अगर यही हरकत UPA की सरकार के रहते कांग्रेस करती तो भाजपा चुनाव आयोग के खिलाफ़ सुप्रीम कोर्ट चली जाती और आयोग के नाक में दम कर देती। लोकल मराठी अख़बार में छपी ख़बर में बताया गया था कि मतदान केंद्र के 100 मीटर के दायरे में ऐसे विज्ञापनों को मनाही है। मान लीजिए मतदान केंद्र से 500 मीटर दूर रहने वाला कोई मतदाता जो यह निर्णय कर चुका है कि उसे किस पार्टी को वोट देना है वह वोट देने के लिए घर से निकला मतदान केंद्र पर आते आते उसने भाजपा के इस विज्ञापन को किसी दीवार पर लिखा देखा। देखने के बाद आत्मा अंतर- आत्मा का कनेक्शन वगैरा भीतर कुछ ऐसा हो गया कि वोटर का मन अचानक बदल गया तो यकीनन किसी एक दल को एक वोट का नुकसान होगा। इससे यह साफ़ पता चलता है कि प्रशासन किस पार्टी के फायदे के लिए इन विज्ञापनों को सरंक्षण दे रहा है जवाब आप सबको पता है। नई सरकार के गठन तक विधायिका और कार्यपालिका पॉवर में नहीं है यानी फ्रिज हो चुकी है। बावजूद इसके चुनाव आयोग पॉवर में होने के बाद भी पॉवर में है या फिर किसी विकसित व्यक्तित्व के प्रभाव में है इस आरोप का जवाब CEC राजीव कुमार को कविताएं और शेर पढ़कर देना चाहिए।


Discover more from New India Times

Subscribe to get the latest posts sent to your email.

By nit

Discover more from New India Times

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading