नरेन्द्र कुमार, ब्यूरो चीफ़, जलगांव (महाराष्ट्र), NIT:
किसी तीर्थ स्थल को सरकारी दफ्तर में तीर्थ क्षेत्र का दर्जा प्राप्त होने के बाद बुनियादी ढांचे के विकास के लिए केन्द्र सरकार और राज्य सरकार के तमाम मंत्रालयों से विभिन्न योजनाओं के तहत भरपुर फंड दिया जाता है। भारत में जहां जहां सिंहस्थ कुंभ मेले लगते हैं उनके प्रबंधन के लिए केन्द्र सरकार सांस्कृतिक मंत्रालय की ओर से संस्कृति के संवर्धन तथा संरक्षण के नाम पर सरकारी खजाने से हजारों करोड़ रुपया देती है। हमने अपनी पिछली रिपोर्ट में आपको सिंहस्थ कुंभ भूमी नासिक-त्र्यंबकेश्वर में 2015-2016 में कुंभ के दौरान प्रशासन द्वारा कराए गए बोगस, घटिया गुणवत्ता वाले कामों के बारे में जानकारी दी थी।
30 हजार आबादी वाली त्र्यंबक नगरी में बीते कई दशकों में कुंभ के अलावा सरकारी खजाने से अपार धन खर्च किया गया है। खबर में प्रकाशित कोनशिलाओ के फोटोज को आप जूम कर के पढ़ सकते हैं। विकास से संबंधित जितने भी काम हुए हैं सारे के सारे कामों के ठेकों को नेताओं ने अपने कार्यकर्ताओं को देकर कमीशन का गोबर लूटा है। इस संगठित लूट के आलीशान निशान नासिक के बाहर बंगलों, रो हाउसेस, फार्म हाउसेस, फलाना ठिमका नाम से बने सामाजिक भवन, पांच पांच मंजिला अपार्टमेंट्स की शक्ल में देखे जा सकते है।
कुंभ के आशीर्वाद और प्रसाद से नासिक के एक ख़ास इलाके को बीते एक दशक में स्मार्ट सिटी की तरह खड़ा किया गया है। तूलना में नासिक के नेमानी बस स्टैंड, अंबड, सातपुर, आडगाव नाका परीसर, सरकारी दफ्तरों की दर्जनों जर्जर इमारतें जस की तस है।
सुप्रीम कोर्ट राजनीतिक दलों को मिलने वाले बेनामी चंदे के बॉन्ड को असंवैधानिक करार दे कर “जेम्स” बांड का घोटाला जनता के सामने ला सकती है तो टीम विश्वगुरु के नेताओं द्वारा कुंभ के फंड में किया गया कांड बाहर क्यों? नहीं आ सकता है।
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