नरेन्द्र कुमार, ब्यूरो चीफ़, जलगांव (महाराष्ट्र), NIT:
मंत्री जी ने यह काम मंजूर कराया, मंत्री जी ने वह काम मंजूर कराया, इतने करोड़ होगे खर्च, अब बदलेगा चेहरा-मोहरा, विकास ने ढहाया कहर जनता में खुशी की लहर चंद विज्ञापनों के लिए इसी प्रकार की खबरे छापकर चरणदास पत्रकार प्रस्थापित नेता को जनता के बीच लगातर मज़बूती से स्थापित करते रहते है। लेकिन सच्चाई कुछ और हि होती है, हम बात कर रहे हैं जामनेर की ऐसी हि एक समस्या के बारे में जिसको लेकर मीडिया ने तीस सालों में कभी भी खबरे नहीं बनाई। आदीवासी छात्रों के लिए किराए पर चलाए जा रहे छात्रावास में नरक जैसी व्यवस्था का आलम है। इस मामले को लेकर कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं।
सरकार से मोटी रकम लेकर लीज पर चलाए जा रहे पलासखेड़ा के आदीवासी होस्टल में कुल 300 नन्हे छात्र रहते है। 300 छात्रों के लिए 30 सीट्स का शौचालय है जिसमें पानी का अभाव है। सिट्स के बर्तनों में मैला भरा पड़ा है, खुले में नहाना साबुन कंघी तेल का अतापता नहीं। दो वक्त का भोजन जो बच्चों को चार्ट के मुताबिक मिलना चाहिए उसके ठीक विपरीत मिलता है। रसोई के बड़े बड़े बर्तन बच्चों से जबरदस्ती धुलवाए जाते हैं। होस्टल का वार्डन बच्चों के साथ सख्ती के नाम पर अंग्रेजों के जमाने के जेलर से भी कई गुना ज्यादा क्रूरता से पेश आता हैं। New India Time’s ने उच्च माध्यमिक आदिवासी होस्टल को लेकर तीन स्टोरी की थी हमने बताया था कि किस तरह एक व्यक्ति को सरकारी तिज़ोरी से किराए के रूप में पांच करोड़ रुपया दिया गया।
उक्त स्टोरी में किराए का एंगल है पर सरकारी तिज़ोरी से धन का लाभधारी व्यक्ति दूसरा है। विदित हो कि जामनेर में सरकार की ओर से अपनी मिल्कियत वाला आदिवासी छात्रालय इमारत अभी तक बनाया नहीं गया है। आदिवासी हॉस्टल्स आदिवासी प्रकल्प कार्यालय यावल के न्यायक्षेत्र में आते हैं इस कार्यालय के निरीक्षक ड्यूटी के नाम पर अपनी जेब भरते हैं। इतना कुछ अस्तव्यस्त है, तो क्या ? जिलाधिकारी इस हॉस्टल की एक सरप्राइज़ विजिट नहीं कर सकते हैं। छात्रों के अभिभावकों को सरकार और उसमें शामिल मंत्रियों से कोई उम्मीद नहीं क्योंकी राज्य में सरकार नाम की संस्था को सुप्रीम कोर्ट द्वारा असंवैधानिक करार दिया गया है। पलासखेड़ा के इस छात्रावास के मसले पर संबंधित विभाग के सचिव की ओर से तत्काल प्रभाव में कार्रवाई करने की आवश्यकता है।
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