नरेन्द्र कुमार, ब्यूरो चीफ़, जलगांव (महाराष्ट्र), NIT:
महाराष्ट्र विधानसभा के शीत सत्र में सरकार ने धर्मांतर से संबंधित एक आदेश ज़ारी किया जिसके तहत आदिवासियों को डिलिस्टिंग कराने की मंशा व्यक्त हुई। हम लोग इस आदेश को नहीं मानते भारत में आरक्षण धर्म के आधार पर नहीं जाति के आधार पर मिलता है और आदिवासियों का कोई धर्म नहीं होता है। हमें दिया गया हक और अधिकार हमको अंग्रेजो के राज में हि दे दिए गए थे। आज़ादी के बाद संविधान की पांचवीं और छठी अनुसूची से हमें संरक्षित किया गया है ऐसा प्रतिपादन सुधाकर सोनवाने ने किया। जामनेर में निकले गए मोर्चा में शामिल हजारों आदिवासियों ने डीलिस्टिंग के मसले का तीव्र विरोध किया।
रणजीत तड़वी ने कहा कि एक लाख पांच हजार बोगस आदिवासी सरकार के भीतर विभिन्न महकमों में नौकरी कर रहे हैं अगर सरकार में दम है तो उनको खोजकर सेवा से बाहर करे। डीलिस्टिंग का आदेश गैर कानूनी है, देश का संविधान हर नागरिक को धर्म को चुनने की आज़ादी प्रदान करता है। केंद्र और राज्य सरकारें आदिवासी के मालिक नहीं है संविधान के मुताबिक आदिवासियों पर सिर्फ और सिर्फ राष्ट्रपति के आदेश का प्रभाव होता है। आन्दोलन में अफसर तड़वी, हुसैन तड़वी, प्रवीण ठाकरे, भगवान मोरे समेत भारी संख्या में महिलाएं शामिल हुई। विदित हो कि जलगांव यूनिट में मुख्य रूप से जामनेर विंग की ओर से आदिवासी समुदाय के हक और अधिकारों को लेकर बीते दो सालों से लगातार आन्दोलन किए जा रहे हैं। मणिपुर की नस्लीय हिंसा के शिकार कुकी आदिवासियों के दर्द को सबसे पहले जामनेर में महसूस किया गया था। आज भी मणिपुर जल रहा है और प्रधानमंत्री लक्ष्यद्वीप में समंदर किनारे फोटो सेशन में मशगूल हैं। दक्षिणपंथी विचारों के दुष्प्रभाव से देश के दूसरे इलाके असमानता की भावना में सुलग रहे हैं।
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