अशफ़ाक़ क़ायमख़ानी, ब्यूरो चीफ, जयपुर (राजस्थान), NIT:
तीन हिन्दी भाषी राज्यों में कांग्रेस की हार के बाद छत्तीसगढ़ व मध्यप्रदेश में प्रदेश अध्यक्ष व विपक्षी नेता के नये तौर पर मनोनयन के बाद राजस्थान में उक्त पदों पर नये तौर पर मनोनयन में पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने पेच फंसा कर लटका दिया है। गहलोत उक्त पदों पर सचिन पायलट को दूर रख कर अपने समर्थक नेताओं का मनोनयन करवाना चाहते हैं जो अभी तक मुमकिन नहीं हो पा रहा है जबकि उक्त पदों पर मनोनयन के साथ राहुल गांधी सचिन पायलट की भूमिका तय करना चाहते हैं।
विपक्षी नेता के लिये बायतु विधायक हरीश चौधरी का नाम तय होने लगा तो गहलोत ने आदिवासी नेता महेन्द्रजीत मालवीय का नाम इस पद के लिये आगे बढ़ा दिया। प्रदेश अध्यक्ष के लिये सचिन पायलट का नाम चला तो गहलोत ने डोटासरा को ही पद पर बने रहने का दवाब बनाना शुरू कर दिया।
19 दिसम्बर के इण्डिया गठबंधन की मिटिंग के बाद 21-22 दिसम्बर को अपनी हार को लेकर मंथन करने के लिए कांग्रेस वर्किंग कमेटी की मिटिंग करने जा रही है। गहलोत वर्किंग कमेटी के सदस्य नहीं है। वो बतौर मुख्यमंत्री इसकी मिटिंग में शामिल होते रहे हैं जबकि सचिन पायलट सदस्य हैं। गहलोत कोशिश में लगे हैं कि उन्हें वर्किंग कमेटी में विशेष आमंत्रित सदस्य बनाया जाये ताकि वो वर्किंग कमेटी की मिटिंग में भाग लेते रहें। इसके अलावा गहलोत राजस्थान में कोई पद नहीं लेना चाहते बल्कि वो संगठन में राष्ट्रीय महामंत्री बनकर अपनी चौधराहट को कायम रखना चाहते हैं। इसके विपरीत सचिन पायलट को प्रदेश में अध्यक्ष बनाकर हाईकमान रखती है या फिर दिल्ली ले जाकर संगठन में पद देकर राष्ट्रीय राजनीति में उपयोग करना चाहता है यह सब राहुल गांधी जल्द तय कर लेंगे।
विधानसभा चुनाव सम्पन्न होने के साथ ही अब लोकसभा चुनाव की तैयारी शुरू हो चुकी है। गहलोत चाहते हैं कि लोकसभा चुनाव के लिये राजस्थान के उम्मीदवार चयन करने में उन्हें हाईकमान खुली छूट दे, यानि उनके नेतृत्व में लोकसभा चुनाव लड़ा जाये। जबकि पायलट चाहते हैं कि उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बनाया जाये तो फिर लोकसभा चुनाव में प्रदेश में गहलोत का किसी तरह का दखल ना होकर उन्हें ही सारे अधिकार दिये जायें ताकि वो अच्छी परफॉर्मेंस दे सकें।पायलट लोकसभा चुनाव में जाट-मुस्लिम, एससी-एसटी व गूर्जर का गठजोड़ बनाकर अन्य वर्गों को साथ लेकर कांग्रेस को अधिक से अधिक सीट दिलवाना चाहते हैं। गहलोत अपने उसी पूराने ढर्रे पर चुनाव लड़ेंगे। 2019 के चुनावों में गहलोत की सरकार होने के बावजूद उनके नेतृत्व में लड़ने पर सभी पच्चीस सीटों पर भाजपा उम्मीदवार जीत गये थे। मुख्यमंत्री पूत्र वैभव गहलोत स्वयं भी चुनाव हार गये थे।
कुल मिलाकर यह है कि अशोक गहलोत स्वयं को राष्ट्रीय संगठन में हमेशा की तरह फिर से अस्तित्व कायम करने व राजस्थान की कांग्रेस राजनीति में पकड़ बनाये रखने की भरपूर कोशिश में लगे हुए हैं। वो हार की जिम्मेदारी लेने के बजाये भाजपा द्वारा जातीय बंटवारे करने व गुर्जर मतदाताओं का भाजपा की तरफ चले जाने को प्रमुख कारण बताते थक नहीं रहे हैं। देखना होगा कि लोकसभा चुनाव में राजस्थान में कांग्रेस उम्मीदवार चयन करने व चुनाव संचालन की जिम्मेदारी उन्हीं पूराने हाथों में रहेगी या फिर नये हाथों में जायेगी।
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