वी.के. त्रिवेदी, ब्यूरो चीफ, लखीमपुर खीरी (यूपी), NIT:
विद्या भारती विद्यालय पं0 दीनदयाल उपाध्याय सरस्वती विद्या मन्दिर इन्टर कालेज (यू.पी. बोर्ड) लखीमपुर खीरी में गुरू तेगबहादुर जी के बलिदान दिवस का कार्यक्रम मनाया गया। कार्यक्रम का शुभारम्भ विद्यालय के प्रथम सहायक कुन्तीश अग्रवाल ने मॉं सरस्वती व गुरू तेगबहादुर जी के चित्र पर दीप प्रज्ज्वलन व पुष्पार्चन कर किया। शारीरिक आचार्य प्रवेन्द्र कुमार सिंह ने बताया कि आज का दिन उत्साह शौर्य और देश प्रेम तथा अपने आप को देश के लिए समर्पण को याद दिलाता है।
यह कहानी बड़ी पुरानी है यह वीरों वाली वाणी है
ये शीश धरा पर धरा नहीं शीश कटा पर झुका नहीं
उस समय धर्मांतरण का कार्य बहुत तेजी से चल रहा था। 1675 में गुरु तेग बहादुर जी से भी कहा आप मुस्लिम बन जाएं हम तुम्हें छोड़ देंगे परंतु गुरु तेग बहादुर जी ने अपना शीश कटवा लिया लेकिन इस्लाम धर्म को स्वीकार नहीं किया। कक्षा 12 के छात्र संदर्भ दीक्षित ने बताया 21 अप्रैल 1621 में पंजाब के अमृतसर में इनका जन्म हुआ था। इनके बचपन का नाम त्यागमल था। इनके पिता का नाम हर गोविंद जी और माता का नाम ननकी था। 1665 में गुरु कृष्णा साहब के बाद नौवें गुरु बने। छात्र ने बताया औरंगजेब कश्मीर में धर्मांतरण करवाकर हिन्दुओं को मुस्लिम बनवा रहा था तब कुछ कश्मीरी हिन्दू गुरू तेगबहादुर जी के पास आये और अपना दुख वयक्त किया जिस पर गुरु तेग बहादुर जी ने कहा कि औरंगजेब से कहिए कि पहले गुरु तेग बहादुर जी का धर्मांतरण करवाए।
गुरू तेगबहादुर जी नें मुगल सैनिकों का धर्मांतरण के विरूद्ध विरोध किया इसके बाद मुगल सैनिकों नें गुरू तेगबहादुर जी को बंदी बना लिया और औरंगजेब ने गुरु जी से कहा कि मुस्लिम धर्म स्वीकार कर लीजिए नहीं तो मृत्यु दंड दिया जाएगा लेकिन गुरु जी ने मुस्लिम धर्म स्वीकार नहीं किया। जिस कारण औरंगजेब नें इनका शीश दिल्ली के चांदनी चौक में 24 नवंबर 1675 को कटवा दिया। उनकी याद में अब वहां पर शीशगंज गुरुद्वारा है। इनकी बहादुरी के कारण ही इन्हें हिंद दी चादर कहा जाता है कक्षा 9 के छात्र प्रवीण कुमार नें अंग्रेजी में भाषण दिया। विद्यालय के प्रथम सहायक कुन्तीश अग्रवाल ने बताया कि औरंगजेब अपने दरबार में हर धर्म के जानने व बताने वाले लोग रखे थे एक पंडित जी रोज उसे गीता के श्लोक पढ़कर सुनाते थे व अर्थ भी समझाते थे लेकिन वह पंडित जी सभी श्लोक का अर्थ नहीं समझाते थे।
एक दिन पंडित जी बीमार पड़ गए तब उन्होंने अपने लड़के को दरबार में भेजा लेकिन पंडित जी अपने लड़के को ये बताना भूल गये कि सभी श्लोकों के अर्थ नहीं बताना है। लड़के ने सभी श्लोक पढ़कर अर्थ सहित समझाएं तभी से औरंगजेब को यह समझ में आया कि हिन्दू धर्म से अच्छा धर्म कोई हो नहीं सकता इसलिए उसने हिन्दू धर्म को खत्म करने हेतु सभी को मुस्लिम धर्म स्वीकार करने को कहा। उसने गुरु तेग बहादुर जी को कई प्रलोभन दिए जब वह नहीं माने तो उसने उनका शीश दिल्ली के चांदनी चौक में काटने का आदेश दिया। उनकी याद में आज वहां शीशगंज गुरुद्वारा है। इस अवसर पर समस्त विद्यालय परिवार उपस्थित रहा।
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