दांतारामगढ़ विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के वीरेंद्र सिंह भाजपा उम्मीदवार गजानंद पर पड़ रहे हैं भारी | New India Times

अशफ़ाक़ क़ायमखानी, सीकर/जयपुर (राजस्थान), NIT:

दांतारामगढ़ विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के वीरेंद्र सिंह भाजपा उम्मीदवार गजानंद पर पड़ रहे हैं भारी | New India Times

सीकर जिले की दांतारामगढ़ विधानसभा क्षेत्र से सात दफा कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर चौधरी नारायण सिंह के चुनाव जीतने के साथ साथ उन्होंने अभी तक भाजपा का खाता तक यहां नहीं खुलने दिया है। जबकि चौधरी नारायण सिंह का क्षेत्र में एकछत्र दबदबा कायम रहने के चलते 2018 के चुनाव में उनके पूत्र वीरेंद्र सिंह ने भी यहां से चुनाव जीतकर वर्तमान कांग्रेस सरकार में क्षेत्र में रिकॉर्ड तोड़ विकास करवा कर एवं हरदम मतदाताओं को उपलब्ध रहने से मतदाताओं पर खासा प्रभाव जमाया है। क्षेत्र के अनेक गांव व कस्बे में दौरा करने के बाद वीरेंद्र सिंह भाजपा उम्मीदवार गजानंद पर भारी पड़ते दिखाई दे रहे है। माकपा उम्मीदवार कामरेड अमरा राम के सिमटते दायरे ने वीरेन्द्र सिंह की जीत का अंतर पहले के सैंकड़ो के मुक़ाबले हजारों में कर सकता है।

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कुल 2 लाख 83 हजार 795 मतदाताओं वाले दांतारामगढ़ क्षेत्र में 1 लाख 47 हजार 878 पुरुष व 1 लाख 33 हजार 277 महिला मतदाता हैं। जिनमें सबसे अधिक 90 हजार जाट मतदाता हैं। जो जाट परम्परागत रुप से कांग्रेस का वोटर रहा हैं। 2008 के चुनाव में जाट मतदाताओं का एक भाग वामपंथी उम्मीदवार की तरफ हुआ जो बाद में फिर कांग्रेस की तरफ लोट आया। उसके बाद 2013 में कांग्रेस उम्मीदवार चौधरी नारायण सिंह व 2018 में उनके पूत्र वीरेन्द्र सिंह भाजपा उम्मीदवारों को हरा कर विधायक बने। कामरेड अमरा राम तीसरे नम्बर पर लूढक गये।

क्षेत्र में जाट मतदाताओं के अलावा कुमावत वोट 40 हजार है। एससी-एसटी 52 हजार, ब्राह्मण 23 हजार, राजपूत 20 हजार, वेश्य 15 हजार, मुस्लिम 13 हजार, गूर्जर 10 हजार व अन्य मतदाताओं में अन्य पिछड़ा वर्ग की जातियाँ बताते हैं। 2013 में कांग्रेस उम्मीदवार चौधरी नारायण सिंह को 60 हजार 926 व भाजपा उम्मीदवार हरीश कुमावत को 60 हजार 351 मत मिले थे। जीत अंतर मात्र 575 मतों का था। इसी तरह 2018 के चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार वीरेन्द्र सिंह को 64 हजार 931 व भाजपा उम्मीदवार हरीश कुमावत को 64 हजार 011 मत मिले थे। जीत का अंतर 920 मतों का था।

भाजपा का राजनीतिक रुप से गठन होने के बाद उसकी तरफ से ब्राह्मण, राजपूत, जाट, व अब लगातार तीन दफा कुमावत को उम्मीदवार के तौर पर मैदान में उतारा लेकिन भाजपा का यह उपयोग अभी तक सफल नहीं हो पाया है।जबकि कांग्रेस ने जाट चेहरे पर ही दावं चलाया। 1972 से 2013 तक लगातार कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ने वाले चौधरी नारायण सात दफा चुनाव जीते हैं। 1977- 1990 व 2008 में मदनसिंह, अजय सिंह व अमराराम से चुनाव हारे भी हैं। 1980 के पहले भैरोंसिंह शेखावत व मदन सिंह राजपूत विधायक रहे हैं। नारायण सिंह प्रदेश सरकार में मंत्री व कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष भी रह चुके हैं। वो अभी पुत्र वीरेंद्र सिंह के चुनाव प्रचार में भी सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं। वर्तमान चुनाव की स्थिति को देखकर भांपा जा सकता है कि अबकी कांग्रेस उम्मीदवार वीरेंद्र सिंह सेंकड़ो के अंतर के बजाय हजारों के अंतर से चुनाव जीत सकते हैं।


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