मेहलक़ा इक़बाल अंसारी, ब्यूरो चीफ, बुरहानपुर (मप्र), NIT:
शहर की शाही जामा मस्जिद बुरहानपुर के पेश इमाम हज़रत सैयद इकराम उल्लाह शाह बुखारी शुक्रवार को अपने धर्म संबोधन के माध्यम से, अनेक धार्मिक विद्वान और उलेमा हज़रात विभिन्न अवसरों पर मस्जिद, खानकाओं सहित विभिन्न मजालिस के माध्यम से इस्लाम धर्म के उपदेशानुसार अपना आचरण सुधारने के लिए और इस्लाम के बताएं मार्ग अनुसार जीवन यापन करने के लिए और इस्लाहे मआशरा (सामुदायिक सुधार) के लिए हमेशा उपदेशित करते रहते हैं। धार्मिक विद्वान हज़रात का यह सिलसिला निरंतर जारी है। जिस पर अमल करना हम सब की जिम्मेदारी है। यह बताते हुए इंदौर से बुरहानपुर पधारे जमीलउद्दीन निजामुद्दीन ने बताया कि बुरहानपुर के युवा धार्मिक विद्वान एवं शाही जामा मस्जिद बुरहानपुर के नायब इमाम हज़रत सैयद अनवार उल्लाह शाह बुखारी ने हाशिमपुरा में सोमवार को आयोजित एक निकाह समारोह में इसलाहे मआशरा (सामुदायिक सुधार) पर अपना उमदा और नफीस खुतबा (संबोधन) देते हुए बताया कि अल्लाह तआला का फरमान है: ए ईमान वालो, ईमान लाओ, जैसा कि ईमान लाया अंबिया अलैहिस्सलाम ने, सहाबा ए इकराम ने। यह दीन ए शरिअत का तक़ाज़ा है। दीन ए शरीयत ने मोमिन की जिंदगी को दो हिस्सों में तकसीम किया है जिसका 25 % हिस्सा आमाल आते हैं और 75% में हिस्सा मामलात आते हैं। देखा यह गया है कि मोमिन की जिंदगी का 25% हिस्सा(भाग) तो किसी हद तक आमाल पर अमल पैरा हैं। मस्जिद आबाद हो रही है, नमाज़ों का एहतेमाम हो रहा है। मगर 75% पर इच्छाएं (खाहिशात) हावी हैं। आमतौर पर यह देखा जा रहा है कि अवामुननास का एक बड़ा हिस्सा ख्वाहिशात (इच्छाओं)का गुलाम हो चुका है। शादी ब्याह जैसे एक अहम फरीजे में गैर शरई रस्मो रिवाज का बोलबाला है। कहीं डीजे बज रहे हैं, तो कहीं नाच गाने तक हो रहे हैं। जब इनसे इस मामले में बातचीत की जाए तो यह कहा जाता है कि क्या करें बच्चों का अरमान है। वह इसी में खुश है। मुस्लिम समाज में रिवाज और परंपरा के नाम पर फैल रहे इस नासूर पर अंकुश लगाने की ज़रूरत है। जिसके लिए हर जगह समझाइश देकर रोकने के प्रयास तो किए जा रहे हैं लेकिन समाज के लोग विशेष कर युवा वर्ग भी इस पर अमलपैरा होकर इसमें सहयोगी बने, तब ही हमारा समाज उन्नति कर पाएगा। समाज हित में हम को हमारे समाज में राइज इन रिवाज को एक मिशन के तहत बदलने और समाप्त करने की ज़रूरत है। हमारे उलेमा, हमें जो रास्ता बता रहे हैं उसे अपनाना ही होगा। उसी में हमारी भलाई है।
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