अरशद आब्दी, झांसी ( यूपी ), NIT;
झांसी अमन की नगरी में आज आठ मोहर्रम की मजलिसे इमाम हुसैन के सेनापति हज़रत अब्बास को समर्पित की गईं। वफादारी हज़रत अब्बास की विरासत आज शहर झांसी में आठ मोहर्रम की मजलिसे-इमाम हुसैन के सेनापति हज़रत अब्बास को समर्पित की गईं। विशेष मजलिस “हसन मंज़िल” इतवारी गंज में दोपहर एक बजे आयोजित की गई, जिसमें “अलमे मुबारक” की ज़ियारत और नज़रे हज़रते अब्बास (लन्गर) का प्रबन्ध किया गया। जिसमें हजारों श्रृध्दालुओं ने शिरकत की एवं मर्सियाख्वानी इं0 काज़िम रज़ा, आबिद रज़ा, सईदुज़्ज़मां, अस्करी नवाब, तक़ी हसन और साथियों ने की और “ जब चला अपने वतन से बादशाहे करबला” मर्सिया पढा पांच वर्षीय वज़ाइम अब्बास ने रुबाई ”कहती थी सकीना क़त्ले बाबा देखा” पढ़ कर सबको आश्चर्य चकित कर दिया। संचालन करते हुये सैय्यद शहनशाह हैदर आब्दी ने सलाम “आने न पाये घर में मेरे कोई बेवफा- दीवारो दर पे इसलिये अब्बास लिख दिया” पढकर श्रृध्दांजली अर्पित की। पेश ख़ानी, जनाब फैज़ अब्बास, अल्बाश आब्दी, आबिद रज़ा और साजिद मेहदी, ने कर कलाम पढ़े। विशेष अतिथि के रूप में (नई दिल्ली), से विशेष निमंत्रण से पधारे मौलाना मौलाना अली हैदर ग़ाज़ी ने,” शिक्षा पर ज़ोर देते हुऐ रसूले ख़ुदा की हदीस “ गहवारे (पालने) से क़ब्र के मुहाने तक इल्म हासिल करो” और हज़रत अली की हदीस, “ जाहिलियत (अज्ञान और अशिक्षा) सबसे बड़ी समस्या है” बयान की और कहा हम कामयाब तभी होंगे, जब हम शिक्षित होंगे और विलायते रसूल और अली को समझें तभी दुनिया के साथ दीनी एतबार से भी मजबूत होंगे इसके बाद मौलाना साहब ने हज़रत अबूल्फ़ज़लिल अब्बास के बारे में बताया कि वली-ए-ख़ुदा हज़रत अली के बहादुर पुत्र थे, जिन्हें हज़रत अली ने ख़ुदा से विशेष दुआ के बाद प्राप्त किया था। आप बाफज़ीलत, ज्ञानी, आबिद, ज़ाहिद, फ़क़ीह और अल्लाह से अधिक भय रखने वाले थे। आसमानी निर्देश के तीन आफताबों इमाम अली, इमाम हसन और इमाम हुसैन से परवरिश पाई थी। अत: न केवल आप विद्वान और बहादुर थे बल्कि इतने ख़ूबसूरत थे आपको “क़मरे बनी हाशिम” अर्थात हाशिम के घराने का चांद कहते हैं। वफादारी हज़रत अब्बास की विरासत है। हमें उनकी बहादुरी और वफादारी से शिक्षा लेकर मुल्क क़ौम और समाज का भला करना चाहिऐ।इसके पश्चात मौलाना ने हज़रत अब्बास की मुश्किलों और अत्याचारों का वर्णन किया और इमामे ज़ैनुलआबेदीन के कथन को नक़्ल करते हुऐ कहा: “ख़ुदा मेरे चचा अब्बास पर अपनी रहमत नाज़िल करे उन्होंने राह खुदा में अपनी जान को निसार करके, महान युद्ध प्रदर्शन करके अपने भाई पर फिदा हो गए। यहाँ तक कि उनके दोनों बाज़ू अल्लाह की राह में कट गए। जिससे उपस्थित जन समुदाय शोकाकुल हो गया। इसी ग़मगीन माहौल में “हाय-हुसैन, प्यासे हुसैन, हाय सकीना- हाय प्यास “ की मातमी सदाओं के साथ “अलमे मुबारक” की ज़ियारत कराई गई। नौहा-ओ-मातम अंजुमने सदाये हुसैनी के मातम दारों ने किया। नौहा ख़्वानी सर्वश्री अली समर, अनवर नक़्वी, तशब्बर बेग, आबिद रज़ा ने की। मातमी जुलूस बरामद हुआ। संचालन सैय्यद अता अब्बास आब्दी ने और आभार सग़ीर मेंहदी ने ज्ञापित किया। इस अवसर पर सर्व श्री वीरेन्द्र अग्रवाल, शाकिर अली, रईस अब्बास, सरकार हैदर” चन्दा भाई”, नज़र हैदर “फाईक़ भाई”, सलमान हैदर, नज्मुल हसन, ज़ाहिद मिर्ज़ा, मज़ाहिर हुसैन, आलिम हुसैन, ताहिर हुसैन, ज़ीशान अमजद, राहत हुसैन, ज़मीर अब्बास, अली जाफर, काज़िम जाफर, नाज़िम जाफर, नक़ी हैदर, वसी हैदर, अता अब्बास, क़मर हैदर, शाहरुख़, ज़ामिन अब्बास, ज़ाहिद हुसैन” “इंतज़ार””, हाजी कैप्टन सज्जाद अली, जावेद अली, अख़्तर हुसैन, नईमुद्दीन, मुख़्तार अली, ताज अब्बास, ज़ीशान हैदर, अली क़मर, फुर्क़ान हैदर, निसार हैदर “ज़िया”, मज़ाहिर हुसैन, आरिफ रज़ा, इरशाद रज़ा, ग़ुलाम अब्बास, असहाबे पंजतन, जाफर नवाब के साथ बडी संख्या में इमाम हुसैन के अन्य धर्मावलम्बी अज़ादार और शिया मुस्लिम महिलाएं बच्चे और पुरुष काले लिबास में उपस्थित रहे।Discover more from New India Times
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