मेहलक़ा इक़बाल अंसारी, ब्यूरो चीफ, बुरहानपुर (मप्र), NIT:
बुरहानपुर के सपूत लांस नायक शहीद मोहम्मद साबिर की शहादत 08.04.2002 को कारगिल युद्ध के दौरान हुई थी।शहीद की पत्नी और उनके परिवार न्याय के लिए दर-दर भटक रहा था। शासन प्रशासन सहित महामहिम राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री के द्वारा तक अपनी गुहार पहुंचाई लेकिन न्याय नहीं मिल पाया। आखिरकार न्याय के लिए न्यायालय का दरवाज़ा बुरहानपुर के वरिष्ठ अधिवक्ता एवं हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के प्रैक्टिसिंग एडवोकेट मनोज कुमार अग्रवाल के मार्गदर्शन पीड़ित परिवार के सदस्यों ने न्याय के लिए अदालत का दरवाज़ा खटखटाया, जहां शहीद लांस नायक मोहम्मद साबिर के परिवार को स्टेप बाय स्टेप में न्याय मिल पाया। इस प्रकरण में पैरवी कर्ता अधिवक्ता मनोज कुमार अग्रवाल ने बताया कि एटीएम कोर्ट जबलपुर में मो. साबिर को न्याय की पहली किस्त के आदेश में, शहादत के 16 साल बाद मिला था दि. 07.03.2018 को शहादत का कानूनी दर्जा मिलने के बाद आर्म्ड फोर्सेस ट्रिब्यूनल जबलपुर ने ऐतिहासिक आदेश पारित करते हुए, ना केवल सेना के आदेश को पलट दिया बल्कि कानूनी आदेश की इस दुसरी किश्त में 2 मदो में लगभग 4.25 लाख (चार लाख पच्चीस हजार रुपए) रूपए भी शहीद लांस नायक मोहम्मद साबिर के परिवार को देने का आदेश दि. 20.09.2023 पारित किया। पैरवी कर्ता अधिवक्ता श्री मनोज अग्रवाल ने बताया कि वर्ष 2014 में लखनऊ में लगाए गए इस प्रकरण में अब जाकर 8 साल बाद यह आदेश पारित हुआ है।
अधिवक्ता श्री अग्रवाल ने यह भी बताया कि इससे पूर्व दि .03.07.2018 को पारित आदेश की पहली किस्त में उक्त माननीय आर्मी कोर्ट के द्वारा सेना का आदेश पलटते हुए रिकॉर्ड में से गैरकानूनी टिप्पणी हटाकर शहीद लांस नायक मोहम्मद साबिर की शहादत को कंफर्म किया था और अब इस दूसरी किस्त में पारित आदेश में उनकी शहादत के 21 साल बाद जाकर बकाया राशि की पहली किस्त के रूप में यह उक्त सवा चार लाख रुपए भुगताने का आदेश पारित हुआ है। अधिवक्ता श्री मनोज अग्रवाल ने यह भी बताया कि शहीद मोहम्मद साबिर की शहादत के 21 साल बाद प्राप्त होने वाली इस उक्त राशि (4.25 लाख रूपए) के बाद शेष बकाया राशि की प्राप्ति के लिए कुछ कानूनी प्रक्रिया और बाकी है , इसके पश्चात शेष हक़ भी प्राप्त होने की उम्मीद है। अधिवक्ता श्री अग्रवाल ने कहा कि उन्हें खुशी है कि वे शहीद लांस नायक मोहम्मद साबिर के परिवार को 21 साल बाद पिछले 8 साल की मेहनत से दो किस्तों में उपरोक्त हक़ दिलाने में सफ़ल हुए हैं। अधिवक्ता मनोज कुमार अग्रवाल ने उम्मीद जाहिर की कि उनके प्रयासों से शहीद को उस का शेष हक़ भी जल्द ही प्राप्त हो सकेगा। कहा जाता है कि एक अच्छा वकील कानून के दांव पेंच के ज़रिए, जंग लगे बंद ताले को अपने बौद्धिक ज्ञान से खोल देता है और बुरहानपुर के बड़े केसेस में बुरहानपुर के अधिवक्ता मनोज कुमार अग्रवाल इसी भूमिका का निर्वहन करके बड़े-बड़े मामले को अपने कानूनी दांव पेंच के जरिए सुलझाने में और पीड़ित पक्ष को न्याय दिलाने में फिलहाल अग्रणी भूमिका में हैं।
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