इमोशनल हथकंडों से संवर रही है नेताओं की राजनीति, दशकों बाद नहीं बदली निर्वाचन क्षेत्रों की सूरत, बिजली, पानी, स्वास्थ, सड़क, सिंचाई के आसपास घूम रहा है विकास का पहिया | New India Times

नरेन्द्र कुमार, ब्यूरो चीफ़, जलगांव (महाराष्ट्र), NIT:

इमोशनल हथकंडों से संवर रही है नेताओं की राजनीति, दशकों बाद नहीं बदली निर्वाचन क्षेत्रों की सूरत, बिजली, पानी, स्वास्थ, सड़क, सिंचाई के आसपास घूम रहा है विकास का पहिया | New India Times

हमारे लोकतंत्र में अलग अलग राजनीतिक पार्टियां अपने अपने उम्मीदवार घोषित करती है मतदाताओं को इन सब में से किसी एक प्रत्याशी को वोट देकर विधानसभा, लोकसभा में भेजना होता है। सिलेक्टेड ऑफ द इलेक्टेड पर्सन के इस सिस्टम में लोगों के पास अपनी खुद की पसंद बेहद सीमित होती है। ग्रामीण इलाकों में नेता और मतदाताओं का आपसी संपर्क काफी हद तक सुख-दुःख की प्रासंगिकताओं से संबंधित होता है। जन्म – मृत्यु, शादी – ब्याह – मंगनी समेत कई किस्म के धार्मिक दृष्टिकोण त्योहार – संस्कारों जैसे कार्यक्रमों में नेताओं और उनके परिवारजनों का व्यक्तिगत तौर पर शरीक होने के सामाजिक दायित्व को सर्वोपरी तथा सब कुछ मान बैठे लोग भावनीक हो कर समग्र विकास से जुड़े मुद्दों से खुद को और अपनी आने वाली पीढ़ी को वंचित रखते है।

इमोशनल हथकंडों से संवर रही है नेताओं की राजनीति, दशकों बाद नहीं बदली निर्वाचन क्षेत्रों की सूरत, बिजली, पानी, स्वास्थ, सड़क, सिंचाई के आसपास घूम रहा है विकास का पहिया | New India Times

महाराष्ट्र के 288 विधानसभा सीटों में 50 से अधिक निर्वाचन क्षेत्र ऐसे है जहां बीते तीन दशकों से सड़क, पानी, बिजली, स्वास्थ, किसानी, सिंचाई जैसे बुनियादी ढांचे को लेकर वोट मांगे जाते आ रहे है। इन सिट्स का नेतृत्व करने वाले नेता पांच से सात बार के विधायक है जो अपने लंबे पॉलिटिकल करियर में कभी न कभी सरकार में जरूर आए है। बावजूद इसके वे उनके निर्वाचन क्षेत्रों में खेती को समृद्ध कर औद्योगिक क्रांति से कृषि उपज पूरक कारखाने खड़े करने, रोजगार के अवसर पैदा करने में नाकाम रहे है। इन ब्लॉक्स के पुलिस स्टेशन कोर्ट कचहरीयो में छोटी छोटी बातों को लेकर जमा होने वाली तमाशबीन भीड़ से वहा के विकास का अंदाजा लगाया जा सकता है। ऐसे इलाकों में राजनेताओं के ईच्छा शक्ति से निर्मित किसी भी प्रकार की कोई सृजनात्मकता नहीं जिससे की नागरिकों की “प्रति व्यक्ति आय” इतनी हो की हर वोटर आर्थिक रूप से “आत्मनिर्भर” बने। इसके विपरित शहरी इलाको में मतदाताओं की सोच राजनीत को लेकर तार्किक ढ़ंग से अलग राय रखती है। उद्योगों से महरूम रखे गए निर्वाचन क्षेत्रों के संसदीय चुनावों में धार्मिक बिंदू महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भारत का संविधान जनता को मौलिक अधिकारों के आज़ादी के साथ साथ वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देने का संकल्प देता है। विचारकों के मुताबिक मतदाताओं की प्रासंगिक भावनाएं नेताओं के लिए अनुकंपा के साथ वोट की गारंटी पैदा करती है विकास नहीं।


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