नरेन्द्र कुमार, ब्यूरो चीफ़, जलगांव (महाराष्ट्र), NIT:
देश के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा राज्य सरकार को असंवैधानिक करार दिए जाने के बाद डेढ़ साल से केंद्र सरकार और भाजपा के संरक्षण में महाराष्ट्र में एक ऐसी व्यवस्था का निज़ाम कायम किया गया है जो लोकतंत्र के भीतर भाजपा के विस्तारवाद का बेजा उदाहरण है। इस व्यवस्था का सीधा असर रियासत की आवाम के जीवनयापन पर हो रहा है। मराठवाड़ा, पश्चिमी विदर्भो, उत्तर महाराष्ट्र समेत राज्य के 25 ज़िलों में सुखा पड़ गया है। बड़े-बड़े जलाशयों का जलस्तर प्रतिदिन घटता जा रहा है, मई की तरह अगस्त सितंबर में गर्मी से जनजीवन अस्तव्यस्त है। मानसून की बारिश पर निर्भर फसलें बर्बाद होने की कगार पर है। सबसे ज्यादा तीन कैबिनेट वाले जलगांव ज़िले के 16 डैम मे से अग्नावती, मन्याड, हिवरा खाली है।
वाघुर 57% , हतनुर 60% , गिरणा 36%, गुल 74% , मोर 62% , अंजनी 45% , तोंडापुर 40%, बहुला 08% , सुकी, मंगरूल, अंभोरा, भोकरबारी मे 100% पानी है! कैबिनेट नेताओ के निर्वाचन क्षेत्रो के सैकड़ो गांवों को टैंकर से पीने का पानी पहुंचाया जा रहा है जिसमें जामनेर के क़रीब 25 गांव शामिल है। राज्य में पैदा होने वाली सूखे की संभावित स्थिती के बारे में सबसे पहले New India Times ने शासन को सचेत किया था। विधानभवन में चुप और DPDC में दहाड़ने वाले जिले के एक भी नेता ने सूखे को गंभीरता से नहीं लिया है। 18 से 22 सितंबर के दौरान होने वाले संसद के विशेष सत्र को लेकर गोदी मिडिया में वन नेशन – वन इलेक्शन पर निवेदकों का लंबा चौड़ा भाषण चलाया जा रहा है। जब कि मोदी सरकार ने सत्र के कामकाज को लेकर कोई विषय अजेंडा सार्वजनिक नहीं किया है। फिर भी एक बात तो साफ़ तौर पर पता चल रही है कि भाजपा दिसंबर – जनवरी में लोकसभा के आम चुनाव करवाने के मूड़ में है।
वैसे देखा जाए तो कायदे से महाराष्ट्र के गवर्नर को प्याज़, कपास की गिरती कीमतें और सूखे की समस्या पर राज्य विधानसभा की विशेष सभा बुलानी चाहिए। भाजपा के कॉटन मेड लीडर किसानो के सवालों और अपनी जिम्मेदारियों से भाग रहे हैं। पानी के अभाव के कारण राज्य में बिजली की कटौती शुरू की गई है इस पर सत्ता पक्ष के किसी भी नेता का कही कोई बयान नहीं है। अगर आज उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री होते तो सत्तापक्ष के यही नेता MSEB दफ्तरों के बाहर ओपन ट्रक पर खड़े रहकर सड़क जाम कर घंटो तक आंदोलन करते प्याज, सुखा, कपास के लिए कोहराम मचा देते। इस बरस राज्य में कपास के बोगस संकरीत बीज प्रचंड रूप से बेचे गए किसी भी व्यापारी ने किसानों को जीएसटी वाले पक्के बिल नहीं दिए किसानों पर फिर से बुआई की दोहरी आर्थिक मार पड़ी है। सितंबर के मध्य और अक्टूबर के अंत तक वापसी के मानसून की वर्षा की उम्मीद बरकरार है लेकिन इससे देश के अमृत काल में महाराष्ट्र में छाई अकाल की तस्वीर पूरी तरह से बदलेगी इसकी कोई गुंजाइश नहीं है।
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