वी.के. त्रिवेदी, ब्यूरो चीफ, लखीमपुर खीरी (यूपी), NIT:
रुद्र अर्थात भूत-भावन भगवान शिव का अभिषेक शिव और रुद्र परस्पर एक-दूसरे के पर्यायवाची है। शिव को ही ‘रुद्र’ कहा जाता है, क्योंकि रुतम्-दु:खम् द्रावयति-नाशयतीतिरुद्र: यानी भगवान शिव सभी दु:खों को नष्ट कर देते हैं।
संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसीने रुद्राभिषेक का महत्व बताते हुए कहा कि हमारे धर्मग्रंथों के अनुसार हमारे द्वारा किए गए पाप ही हमारे दु:खों के कारण है। रुद्रार्चन और रुद्राभिषेक से हमारी कुंडली से पातक कर्म एवं महापातक भी जलकर भस्म हो जाते हैं और साधक में शिवत्व का उदय होता है तथा भगवान शिव का शुभाशीर्वाद भक्त को प्राप्त होता है और उनके सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं। ऐसा कहा जाता है कि एकमात्र सदाशिव रुद्र के पूजन से सभी देवताओं की पूजा स्वत: हो जाती है।
रुद्रहृदयोपनिषद में शिव के बारे में कहा गया है कि सर्वदेवात्मको रुद्र: सर्वे देवा: शिवात्मका अर्थात सभी देवताओं की आत्मा में रुद्र उपस्थित हैं और सभी देवता रुद्र की आत्मा हैं। हमारे शास्त्रों में विविध कामनाओं की पूर्ति के लिए रुद्राभिषेक के पूजन के निमित्त अनेक द्रव्यों तथा पूजन सामग्री को बताया गया है। साधक रुद्राभिषेक पूजन विभिन्न विधि से तथा विविध मनोरथ को लेकर करते हैं। किसी खास मनोरथ की पूर्ति के लिए तदनुसार पूजन सामग्री तथा विधि से स्वयं या किसी योग्य ब्राह्मण की सहायता के द्वारा रुद्राभिषेक किया जाता है।
परंतु विशेष अवसर पर या सोमवार, प्रदोष और शिवरात्रि श्रावण मास आदि पर्वो पर रुद्राभिषेक करने से विशेष फल की प्राप्ति इस प्रकार विविध द्रव्यों जैसे गाय के दूध , दही,घी,गन्ने के रस,कुश के जल,गंगा जल भस्म युक्त जल,से इसके अतिरिक्त विजय भांग से,सरसो के तेल आदि द्रवों से शिवलिंग पर विधिवत अभिषेक करने पर अभीष्ट कामना की पूर्ति होती है।
इसमें कोई संदेह नहीं कि किसी भी पुराने नियमित रूप से पूजे जाने वाले शिवलिंग का अभिषेक बहुत ही उत्तम फल देता है किंतु यदि पारद के शिवलिंग का अभिषेक किया जाए तो बहुत ही शीघ्र चमत्कारिक शुभ परिणाम मिलता है। और लिंग महापुराण में पार्थिव शिवलिंग के पूजन का भी विशेष महत्व बताया गया है।
किसी पवित्र नदी के समीप अभी अभिषेक करने से विशेष अनन्त फल प्राप्त होता है।
रुद्राभिषेक का फल बहुत ही शीघ्र प्राप्त होता है।
वेदों में विद्वानों ने इसकी भूरि-भूरि प्रशंसा की है। पुराणों में तो इससे संबंधित अनेक कथाओं का विवरण प्राप्त होता है। वेदों और पुराणों रामचरित्र मानस में रुद्राभिषेक के बारे में कहा गया है।
भगवान श्री रामचन्द्र जी ने लंकाधिपति रावण पर विजय प्राप्त करने से पहले पार्थिव शिवलिंग बनाकर भगवान शिव का पूजन व अभिषेक किया था जो कि आज भी श्रीरामेश्वरम के नाम से स्थापित है।
रावण ने अपने दशो सिरों को काटकर उसके रक्त से शिवलिंग का अभिषेक किया था तथा सिरों को हवन की अग्नि को अर्पित कर दिया था जिससे वो त्रिलोकविजयी हो गया।भस्मासुर ने शिवलिंग का अभिषेक अपनी आंखों के आंसुओं से किया तो वह भी भगवान के वरदान का पात्र बन गया।
रुद्राभिषेक से:-कुंडली में अरिष्ट ग्रह कालसर्प योग, गृहक्लेश, व्यापार में नुकसान, शिक्षा में रुकावट विजय प्राप्ति यश प्राप्ति,रोगनाश आदि सभी कार्यों की बाधाओं को दूर करने के लिए रुद्राभिषेक निसन्देह आपके अभीष्ट सिद्धि के लिए फलदायक है।रुद्राभिषेक में किस जगह नही होता है शिववास का विचार।
ज्योतिर्लिंग क्षेत्र एवं तीर्थस्थान तथा शिवरात्रि प्रदोष, में हमारे परमपूज्य गुरुदेव का कहना है कि श्रावण मास आदि पर्वों में शिववास का विचार किए बिना भी रुद्राभिषेक किया जा सकता है। वस्तुत: शिवलिंग का अभिषेक आशुतोष शिव को शीघ्र प्रसन्न करके साधक को उनका कृपापात्र बना देता है और उनकी सारी समस्याएं स्वत: समाप्त हो जाती हैं। अत: हम यह कह सकते हैं कि रुद्राभिषेक से मनुष्य के सारे पाप-ताप धुल जाते हैं।
स्वयं सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने भी कहा है कि जब हम अभिषेक करते हैं तो स्वयं महादेव साक्षात उस अभिषेक को ग्रहण करते हैं।
संसार में ऐसी कोई वस्तु, वैभव, सुख नहीं है, जो हमें रुद्राभिषेक करने या करवाने से प्राप्त नहीं हो सकता है।
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