इंटरनेट की पहुंच से भारतीय बच्‍चों पर बढ़ता संकट: डॉ. निवेदिता शर्मा | New India Times

अबरार अहमद खान/मुकीज खान, भोपाल (मप्र), NIT:

इंटरनेट की पहुंच से भारतीय बच्‍चों पर बढ़ता संकट: डॉ. निवेदिता शर्मा | New India Times

देश में लगातार अपराध एवं अन्य घटनाएं बढ़ रही हैं, बड़ी संख्या में बच्चों को दोषी पाया गया है। भारत की आने वाली युवा पीढ़ी, भारत का भविष्य किस तरह से ऑनलाइन गेम और इंटरनेट की जद में न केवल अपराधी बन रहा है, बल्‍कि अनेक प्रकार की बीमारियों से घिर रहा है, इसके आंकड़े आज हमारे सामने मौजूद हैं। ऐसे में हम भविष्य के श्रेष्ठ और उज्जवल भारत की कल्पना करते हैं तो यह निश्चित ही बेमानी है। एक तरफ भारत का पड़ोसी मुल्क चीन है जो अपने यहां की युवा पीढ़ी को इंटरनेट की जद से बचाने और बच्‍चों को संवारने के लिए नए-नए नियम बना रहा है तो दूसरी तरफ भारत है, जहां इस प्रकार के नियम दूर-दूर तक दिखाई नहीं दे रहे कि कैसे बच्‍चों की पहुंच से इंटरनेट को दूर रखा जा सकता है।

यह गौर करनेवाली बात है कि विश्‍व भर में दो देशों भारत-चीन की तुलना लगातार होती है । प्रतिस्पर्धा के स्तर दुनिया में जब भी एशिया की बात आती है और यहां के देशों का परस्‍पर अध्ययन होता है, जिसमें फिर वह आर्थिक क्षेत्र हो, पॉपुलेशन की बात हो या फिर सभ्यता-संस्कृति, विविधता और विज्ञान की, हर स्तर पर चीन के साथ भारत का तुलनात्मक अध्ययन आपको देखने को मिलेगा, किंतु यदि चीन अपने बच्चों और भविष्य की पीढ़ियों को सुधारने के लिए कोई बड़ा कदम उठाता है तो उसमें भारत इस प्रकार का इनीशिएटिव लेते हुए फिलहाल दिखाई नहीं दे रहा है।

यहां बड़ा सवाल यह है कि जिस प्रकार से भारत ने चीन से आर्थ‍िक विषय में सबक लेकर अपने आयात-निर्यात को सुधारने के लिए खास कदम उठाए हैं। भारत सरकार ने इसी प्रकार अन्‍य विषयों पर संवेदनशील और सजगता दिखाई है, उसी तरह से क्या अपनी भावी युवा पीढ़ी को लेकर उसे जागरूक और सचेत नहीं रहना चाहिए? सवाल इसलिए भी यह बड़ा है क्योंकि हमारे बच्‍चों की यह पीढ़ी ऑनलाइन गेम की आराम तलबी से इतनी गुम होती जा रही है कि वह उससे बाहर ही निकलना नहीं चाहती।

दूसरा इसका नकारात्‍मक पक्ष यह सामने आया है कि इंटरनेट के प्रभाव के चलते बच्चे गलत रास्ते पर जा रहे हैं। आत्महत्या कर रहे हैं। ज़िद्दी हो रहे हैं। अपने माता-पिता और भाई-बहनों के प्रति हिंसात्‍मक हो गए हैं। दूसरे देशों में बातचीत करते हैं और घर की जो जानकारी या माता-पिता की व्‍यक्‍तिगत, व्‍यावसायिक या शासकीय जानकारी जो साझा नहीं करने की हैं वह भी बातों में आकर उन्‍हें बता दे रहे हैं, जिन्‍हें वे सामने से जानते तक नहीं। फिर वे कौन हैं, देश के दुश्‍मन तो नहीं, यह एक बड़ा खतरा आज हमारे सामने है। जहां तक कि देश में कन्वर्जन के लिए भी बच्‍चों के बीच गेमिंग का उपयोग करते हुए पाया गया है। दूसरी तरफ चीन है जोकि लगातार इस मामले को लेकर सचेत नजर आ रहा है।

कई केस स्‍टडी हमारे सामने हैं। उत्‍तर प्रदेश के एक केस में 16 साल के लड़के ने अपनी मां की सिर्फ इसलिए हत्या कर दी क्योंकि वो उसे मोबाइल पर खेलने से रोकती थी। मध्य प्रदेश के सागर में 12 साल के बच्चे ने फांसी लगा आत्महत्या कर ली। इसी प्रकार से बिहार से खबर आई कि दसवीं क्लास में पढ़ रहे छात्र ने अपनी खुद की किडनैपिंग का ही नाटक रच दिया था, पुलिस पूछताछ में पता चला कि उस बच्चे को वीडियो गेम खेलने के लिए महंगा फोन खरीदना था। पंजाब में एक 17 वर्षीय युवक ने पबजी खेलने के लिए पिता के अकाउंट से 17 लाख रुपये निकाल लिए थे। मोहाली में अपने दादा के बैंक अकाउंट से एक बच्चे ने दो लाख रुपये निकालकर ऑनलाइन गेम में लगा दिए। एक केस में तो फ्री फायर और पबजी में पैसे लगाने के लिए नाबालिग ने अपने चचेरे भाई जो एक बच्‍चा था उसकी न सिर्फ गला दबाकर हत्या की बल्‍कि उसे जमीन में दफना भी दिया था।

देश भर में आज इस प्रकार के अनेक प्रकरण देखने को मिलेंगे। किंतु यह जो इंटरनेट का मायाजाल है और गेम्‍स के कारण बच्‍चे बर्बाद हो रहे हैं, इसे चीन ने तो जान लिया और अपने यहां इसके समाधान के उपाय शुरू कर दिए हैं, क्‍या भारत इसके लिए तैयार है? चीन की इंटरनेट निगरानी संस्था ने बच्चों के ज्यादा समय तक स्मार्टफोन इस्तेमाल करने पर अंकुश लगाने के लिए नियम तैयार किए हैं। चीन अपने साइबरस्पेस प्रशासन (सीएसी) के माध्‍यम से अपने बच्‍चों के लिए जो नीति लेकर आया है, उस पर भारत को भी विचार करना चाहिए। यहां 16 से 18 साल तक के बच्‍चे के लिए इंटरनेट इस्तेमाल के दो घंटे निर्धारित किए गए हैं। आठ से पंद्रह साल आयु वर्ग एक घंटे ही स्मार्टफोन चलाएंगे। आठ वर्ष से कम उम्र के बच्चों को केवल 40 मिनट की अनुमति देना तय हुआ है।
चीन ने अपने बच्‍चों में इंटरनेट के अधिक उपयोग और मोबाइल के दुष्प्रभाव के तौर पर पाया है कि इससे बच्‍चों की नींद सबसे अधिक प्रभावित हुई, वे सुबह उठने के बाद थकान और सुस्ती महसूस करते हैं। आंखें जल्द बूढ़ी हो रही हैं, पुतलियां सिकुड़ रही हैं। नजरें कमजोर होने से बहुत कम आयु में अधिकांश बच्चों को चश्‍में लगाए गए हैं। शारीरिक और मानसिक विकास रुक गया है। बच्चों के फोकस, अटेंशन और मेमोरी बुरी तरह प्रभावित हो रही है। व्यवहार में चिड़चिड़ापन आने के साथ बच्चों का इंटरेक्शन कम हुआ है। वास्‍तव में यह चीन अकेले देश के बच्‍चों की समस्‍या नहीं है, भारत के बच्‍चों में भी समान रूप से यही नकारात्‍मक लक्षण इंटरनेट के अ‍त्‍यधिक उपयोग से बच्‍चों में देखे जा रहे हैं।

के.पी.एम.जी. फर्म और नॉर्टन लाइफ लॉक इंक की इंडिया डिजिटल वेलनेस रिपोर्ट हमारे सामने है। प्रकार की अन्‍य कई रिपोर्ट भी हैं, जो यह साफ बता रही हैं कि भारत की 50 से लेकर 57 प्रतिशत बच्‍चों की जनसंख्‍या ऑनलाइन गेम्स की गिरफ्त में है। यदि सरकार इस दिशा में कोई कड़े कदम नहीं उठाती तो इस साल के अंत तक यह आंकड़ा अनुमानत: 60 प्रतिशत को पार कर जाएगा। इसमें भी चिंता की बात यह है कि बच्चे ज्यादातर शूटिंग वाले गेम्स खेल रहे हैं। जिसके कारण से उनके जीवन में हिंसा साफ झलकती है। जिद्दी होने के साथ उनकी आदत में गुस्‍सेल प्रतिक्रिया शुमार हो गई है। पचास फीसदी माता-पिता अपने बच्चों की इस आदत से परेशान हैं, वह उन्‍हें कंट्रोल करने में अपने को असक्षम पा रहे हैं।

ऐसे में यह जरूरी हो गया है कि चीन की तरह ही भारत भी अपने यहां इस दिशा में कठोर कदम उठाए। यदि हम आज चूक गए तो भारत के सामने भविष्‍य के अपने युवाओं को लेकर बहुत बड़ा संकट सामने खड़ा है।


Discover more from New India Times

Subscribe to get the latest posts sent to your email.

By nit

This website uses cookies. By continuing to use this site, you accept our use of cookies. 

Discover more from New India Times

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading