अशफाक कायमखानी, जयपुर (राजस्थान), NIT; हालांकि भारत के अन्य भागों के मुकाबले राजस्थान की मुस्लिम सियासत का ढंग जरा निराला व अलग हटकर नजर आता है। राजस्थान के मुस्लिम सियासी लोग दिल के साफ मगर विषय वस्तू की जानकारी व ढंग का वक्ता होने के गुण से पूरी तरह एकदम खाली खाली नजर आते हैं। इसके उलट इन सभी सियासी नेतागण अपने आकाओं के प्रति अंधी श्रद्धा व जी हुजूरी के गुणों से लबालब नजर आते हैं। चाहे उनके बोल से पांच-दस मुसलमान ही जमा नही होते हों पर दुसरे समुदाय के दिग्गज नेताओं को जब जब भी मौका मिलता है तब तब वो नेतागण मुस्लिम नेताओं मे से ऐसे लोगों को उभारते नजर आते हैं, जिनमें विषय वस्तू की जानकारी व ढंग का वक्ता होने के गुणों का पूरी तरह अभाव हो। यानि उन मुस्लिम नेताओं में किसी भी विषय की बहस पर सामने वाले को निरुत्तर करने का साहस व तर्कों का पूरी तरह अभाव होना उनके आकाओं को अब तक खूब भाता आया है।
हालांकि भारत में पिछले कुछ सालों के इतिहास पर नजर डालें तो पाते हैं कि हाल ही में छात्र जीवन मे उभर कर आये एक आंगनवाड़ी वर्कर के बेटे व जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष रहे कन्हैया कुमार के पास विषय वस्तू की अच्छी जानकारी होने के साथ साथ उसका ढंग का वक्ता होने के अलावा बहस मे सामने वाले बडे बडे तीस मारखां को निरुत्तर करने की कला के होते ही आज पुरा भारत उनको जगह जगह बुलाकर उनको सूनने को बेताब नजर आ रहा है। कन्हैया व देश के प्रधानमंत्री मोदी की एक मंच पर खुली बहस होने को भारत की जनता को काफी इंतेजार है। उक्त कला की ताकत के बल पर आज भारत भर से कन्हैया के पास चुनाव लड़ने के सैकड़ो आफर मौजूद हैं, नाकि वह किसी के पिछे पिछे टिकट के लिये भाग रहा है, बल्कि उसके पीछे पीछे सियासी लोग अपने स्टेट से चुनाव लड़वाने के लिये दोड़ रहे हैं। इसी तरह गुजरात के बीस साला युवक हार्दिक पटेल ने मुद्दे की पहचान कर उसको लेकर जिस तरह से संघर्ष करते हुये अपनी शानदार भाषण शैली से जो अपना एक मुकाम आज बनाया है उसको सामने रखकर राजस्थान के मुस्लिम नेता अगर जरा अपनी तरफ भी झांक लें तो उनको अपने हृदय में झांक कर कुछ सोचने पर मजबूर जरुर होना पड़ेगा। आज के समय युवा हार्दिक पटेल की चाल से मोदी व उनकी पार्टी भाजपा व भारत के मीडिया में मौजूद भक्तों के पसीने छुटने लगते हैं। इन दोनों से पूरी तरह अलग हटकर लेकिन विषय वस्तू की ढंग की जानकारी के साथ साथ अच्छे वक्ता के वो सभी गुण जिनसे घंटों श्रोताओ को पिन डोप साइलेस माहौल में बांधे रखकर श्रोताओ के मुख से और बोलो और बोलो की आवाज को गुंजायमन करने वाले राजस्थान में छात्र जीवन के साथ साथ मजदूर नेता रहे ओर अब पत्रकारीता विश्वविधालय के विभागाध्यक्ष से सेवानिवृत होकर स्वतंत्र पत्रकार की हैसियत से काम कर रहे राजस्थान निवासी नारायण बारेठ को एक दफा सून कर जरुर देखो कि एक बार उन्हे सुन लेगा वो बार बार उनको सूनने के लिये दोड़ लगाता रहेगा। किसी भी बहस में सामने वाले को अपने तर्को की ताकत पर निरुत्तर कर अपना बना लेने की कला के धनी बारेठ से काफी कुछ सीखा जा सकता है।
अपने भाषण में मोतियों की तरह एक एक शब्द को पिरोकर बोलने वाले छात्र नेता से भारत की जनता का नेता बने कन्हैया कुमार, मुद्दे की तलाश कर उसकी ठीक से जानकारी करके उसको अपने भाषण के मार्फत आम जनता के दिलों में बखुबी मजबूती से उभारने वाले गुजरात के कम उम्र के युवा हार्दिक पटेल ने आज मुश्किल हालात में वो सब कुछ कर दिखाया है जिसकी शायद किसी ने कल्पना भी नही की होगी। अपने भाषण में सितारों की बरसात करके उनके मध्य चांद की तरह चमकते रहने वाले राजस्थान के समाजी चिंतक व स्वतंत्र पत्रकार नारायण बारेठ की भाषण शैली व विषय वस्तू की जानकारी के साथ साथ बहस में सामने वालों को तर्को की ताकत पर निरुत्तर करने की कला से काफी कुछ सीखने को मिलता रहता है।
हालांकि राजस्थान के पिछले तीस सालों के सियासी इतिहास में मरहुम माहिर आजाद व मरहुम डा.अबरार अहमद ने जो कुछ सियासत में पाया था, उसमें अहम रोल केवल उनके ढंग के भाषण देने की कला का ही बडा योगदान माना जाता है। जबकि राजस्थान की सियासत में आज अलग थलग पड़े अलीगढ मुस्लिम युनीवरसीटी छात्रसंघ के साबिक सदर डा. आजम बेग की शानदार भाषण शैली की शानदार झलक उनके अलावा किसी भी अन्य मुस्लिम सियासी लीडर के भाषण में दूर दूर तक नजर नहीं आती है। डा.आजम बेग की कार्यशैली से कौन कितना इत्तेफाक रखता है यह दिगर बात है लेकिन बेग की भाषण देने की कला को पहचान कर 1989 में सीकर लोकसभा का जनतादल की टिकट पर चुनाव लड़ रहे चौधरी देवीलाल ने उन्हें उस अपने चुनाव में सीकर बुलाकर उनकी अनेक सभाएं करवाई थी।हालांकि राजस्थान में मुस्लिम धार्मिक विद्वानों में खूब शानदार व ढंग के श्रोताओं को बांधे रखने वाले एक पटरी पर चलने वाले वक्ताओं की भरमार है। लेकिन वो सीरत व मदरसे के जलसों में तो खूब जलवाफरोश तकरीरें करके श्रोताओं को बांधे रखते हैं, लेकिन उनमें से किसी का भी सियासत की बारीकियों को समझ कर देश प्रदेश के मुद्दों की पहचान कर उन पर बोलने का चलन उनमें कतई नहीं पाया जाता है। डा.आजम बेग का हाफिज-ऐ-कुरान होने के साथ साथ मेडीकल की डीग्री लेने के कारण दीनी व दुनियावी तालिम से सरोबोर होना भी उनकी भाषण शैली को तराशने में मदगार बना हुआ है। अगर धार्मिक विद्वान सियासत को अछूत नहीं मानकर मानव सेवा का संकल्प लेकर दुनियावी तालीम के जेवर से आरास्ता होकर सेक्यूलर सियासत में कदम रखें तो एक साफ सूथरी लीडरशिप आम जनता को मिलने का अवसर प्रदान हो सकता है।
भारत की जानी मानी शख्सियत नारायण बारेठ, हार्दिक पटेल व कन्हैया कुमार का जिक्र केवल मैंने एक मात्र उदाहरण व उनकी काबलियत से जरा सबक लेकर उनकी कला को अपनाने मात्र के लिये लिखा है। लेकिन मैं स्वयं इन तीनों से काफी प्रभावीत हुआ हूँ। अगर राजस्थान के मुसिलम सियासी लोग अपने ज्ञान में जरा इजाफा व जबान में जरा तोल मोल कर कड़ी को कड़ी से मिलाते हुये भाषण देने की कला में परिपूर्ण होने की कोशिश करने लगें तो एक दिन ऐसा होगा कि सियासत के कदमों में वो नही बल्कि सियासत उनके कदमों में होगी।
कुल मिलाकर यह है कि राजस्थान की मुस्लिम सियासत में ढंग से उभरने के लिये रोजाना गठित होने वाली घटनाओं व इतिहास का ठीक ठीक ज्ञान होने के साथ साथ उर्दू-हिन्दी व अंग्रेजी भाषा में पढत-लिखत में जितनी माहिरता होगी उतने ही पैर सियासत में उस शख्स के जमते जायेंगे। रोजाना अलग अलग अखबारत को ठीक से पढना व उसमें लिखी अनेक उपयोगी घटनाओ का जेहन मे संकलन करके उनका सही दिशा में उपयोग करना एक अहम कदम होगा।
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